साल 2016 में जंगलों की आग ने बड़ी मात्रा में वन्य क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाया. एक अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन समेत अल नीनो जैसे प्राकृतिक कारकों के चलते लगी आग ने दुनिया में न्यूजीलैंड बराबर जंगल जला दिये.
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ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के नये डाटा के मुताबिक, दुनिया में 7.34 करोड़ एकड़ जंगल साल 2016 में तबाह हो गये. इस तबाही की सबसे बड़ी वजह रही जंगलों में लगने वाली आग. जंगलों की आग को अब तक एक प्राकृतिक आपदा माना जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ अध्ययन बताते हैं कि इसके लिए जलवायु परिवर्तन और तमाम मानवीय कारक भी जिम्मेदार हैं. जलवायु परिवर्तन ने आग के खतरों को बढ़ाया है, साथ ही कुछ क्षेत्रों के तापमान में असमान्य रूप से वृद्धि हुई है. साल 2015 और 2016 में सक्रिय रही मौसमी प्रक्रिया अल नीनो ने भी इस आग के फैलने में योगदान दिया है.
अल नीनो, दक्षिणी मॉनसून को प्रभावित करने वाली मौसमी दशा है. इसके चलते प्रशांत महासागर के एक हिस्से मसलन दक्षिण अमेरिका में भारी वर्षा होती है लेकिन उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र इससे अछूता रहता है.
अमेरिकी थिंक टैंक वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट में शोध विश्लेषक मिकायेला वाइसे कहती हैं, "2016 में हमने ऐसी आग लगने की घटनाओं में नाटकीय और अप्रत्याशित उछाल देखा और ये आग ब्राजील, इंडोनेशिया और पुर्तगाल जैसे देशों में अधिक नजर आयी." ब्राजील के अमेजॉन क्षेत्र के जंगलों समेत इंडोनेशिया के वर्षा वनों में लगी आग ने दुनिया के कुल वन्य क्षेत्र के नुकसान में एक चौथाई हिस्से का योगदान दिया. ब्राजील की आग ने तकरीबन 37 लाख हेक्यटेयर वन्य क्षेत्र का खात्मा किया, जो साल 2015 के मुकाबले तीन गुना अधिक था. इंडोनेशिया में साल 2015 की आग ने तकरीबन दस लाख हेक्टयेर क्षेत्र में लगे पेड़ों को खत्म कर दिया. 2015 के दौरान जंगलों में बड़े स्तर पर आग लगी, लेकिन इंडोनेशिया में साल 2016 के शुरुआती दिनों तक वृक्षों के नुकसान को दर्ज ही नहीं किया गया.
कार्बन सिंक
धधकते जंगलों का इतिहास
कनाडा के अलबर्टा प्रांत में भीषण दावानल की चपेट में आकर 5 लाख एकड़ से ज्यादा जंगल और उस दायरे में आने वाली रिहाइशें खाक हो गई हैं. एक नजर उन लपटों पर जिनसे इतिहास में कई जंगल खाक हो गए.
तस्वीर: Reuters/Mark Blinch
पेशटिगो दावानल, 1871
अमेरिका का सबसे बुरा अग्निकांड 'ग्रेट पेशटिगो दावानल' उत्तरपूर्वी विस्कॉन्सिन और मिशिगन के घने जंगलों में 8 अक्टूबर 1887 को फैला. 12 लाख एकड़ जंगल इसकी भेंट चढ़ गया और तकरीबन 2500 जानें गईं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Berger
बिग बर्न, 1910
वॉशिंगटन, इडाहो और मोंटाना के जंगलों में हुए 'बिग बर्न' में 30 लाख एकड़ जंगल आग की चपेट में आया. इसके चलते एक बड़े इलाके में धुंध की परत छा गई.
तस्वीर: AP
क्लोक्वेट दावानल, 1918
इस दौरान विश्वयुद्ध चल रहा था, मिनेसोटा के जंगलों में आग लग गई और इसमें 453 लोग मारे गए और 85 लोग गंभीर रूप से झुलसे. साथ ही 10 कस्बे भी पूरी तरह तबाह हो गए. यह आग पटरी में हुई तकनीकी दिक्कत से रेल में हुए एक स्पार्क के चलते लगी थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ब्लैक फ्राइडे ब्रशफायर्स, 1939
ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया जंगल में 1939 में हुए इस दावानल ने 49 लाख एकड़ का इलाका प्रभावित किया. इस हादसे में कम से कम 71 लोग मारे गए. इस हादसे के बाद 1944 में देश में अग्नि प्राधिकरण गठित किया गया.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
मान घाटी, 1949
मोंटाना हेलेना राष्ट्रीय वन की मान घाटी में 5 अगस्त 1949 को आग लग गई. वाग्नर डोज के नेतृत्व में 15 सदस्यों वाले अग्निशामन दल ने इसे बुझाने की कोशिशें की लेकिन तेज हवा और सूखी जमीन के चलते यह बुझ नहीं पाई. दल आग की चपेट में आ गया और 13 सदस्यों की मौत हो गई.
तस्वीर: Reuters/N. Berger
डैक्सिंग एनलिंग दावानल, 1987
6 मई 1987 को चीन के डैक्सिंग एनलिंग पहाड़ियों में लगी आग ने देश के उत्तरपूर्वी हेइलोंगजिआंग प्रांत को काफी तबाह किया. इसमें तकरीबन 24 लाख एकड़ इलाका जल गया, 200 लोग मारे गए और 50 हजार से अधिक लोग बेघर हुए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Edelson
इंडोनेशिया, 1997
1997 में इंडोनेशिया के जंगलों में फैली आग ने भयानक रूप ले लिया. आग इतनी भयानक थी कि धुआं ब्रूनेई, थाईलैंड, वियतनाम और फिलीपींस की फिजाओं में तैरने लगा. जब इस पर काबू पाया जा सका तब तक इसने 80 लाख हैक्टेयर का इलाका झुलसा दिया था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सेडार दावानल, 2003
कैलिफोर्निया प्रांत में 14 अलग अलग जगहों पर लगी आग में से सेडार में सबसे भयानक आग लगी. यह आग 2,73,246 एकड़ तक में फैल गई और 2 हजार घर तबाह हुए.
तस्वीर: Reuters/G. Blevins
ग्रीस, 2007
2007 की गर्मियों में ग्रीस के जंगलों में आग लगती रही और इसकी चपेट में 6 लाख 70 एकड़ का इलाका आया. इस दौरान कम से कम 84 लोग मारे गए. जिसमें से अकेले अगस्त के महीने में 67 लोग मारे गए.
तस्वीर: Reuters/A. Konstantinidis
ब्लैक सेटर्डे ब्रशफायर्स, 2009
7 फरवरी 2009 को ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया जंगल में 400 अलग अलग जगहों पर आग लगी. इसने 11 लाख एकड़ जमीन को अपनी चपेट में लिया. 173 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए.
तस्वीर: AP
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साल 2015 की तुलना में 2016 में वैश्विक वन नुकसान में हुई 51 फीसदी की वृद्धि ने पर्यावरणविदों को चिंता में डाल दिया है. ग्रीनपीस से जुड़े जेन्स स्टॉपेल कहते हैं कि यह आंकड़ा भयावह है, "पेरिस सम्मेलन में तय लक्ष्यों को पाने के लिए हम जंगलों का और नुकसान सहन नहीं कर सकते, साथ ही हमें इनकी क्षमता कार्बन डॉयआक्साइड के बढ़ते स्तर को कम करने के लिए बढ़ानी होगी." पेड़ कार्बन डायऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और जंगलों को प्राकृतिक कार्बन डॉयआक्साइड सिंक बनाते हैं. लेकिन आग ऐसे कार्बन सिंक को खत्म कर देती है और वातावरण में भी कार्बन उत्सर्जन को बढ़ा देती है.
कार्बन सिंक, कार्बन और कार्बन से जुड़े रासायनिक यौगिक (कैम्किल कंपाउड) पदार्थों का असीमित प्राकृतिक और कृत्रिम भंडारण है. पेड़, मिट्टी, समुद्र तल में पाये जाने वाले पदार्थ कार्बन सिंक के उदाहरण हैं. कार्बन सिंक में लगातार आ रही गिरावट को इंडोनेशिया के उदाहरण से समझा जा सकता है. इंडोनेशिया के जंगलों में लगी आग ने बड़े स्तर पर कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन किया और इंडोनेशिया, दुनिया में कार्बन उत्सर्जनकर्ता देशों की सूची में महज छह हफ्ते में रूस को पछाड़ते हुए चौथे स्थान पर पहुंचा गया. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जंगलों में आग लगना, मतलब वातावरण में अधिक कार्बन उत्सर्जन जो जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारक है.
आगे भी मुश्किलें
शोधकर्ताओं को चिंता है कि साल 2017 में ऐसे और भी रिकॉर्ड बन सकते हैं. आग ने दक्षिणी यूरोप, पश्चिमी कनाडा और अमेरिका के कई जंगलों को अब तक तबाह कर दिया है. पुर्तगाल के जंगलों में साल 2016 के दौरान लगी भीषण आग ने देश के तकरीबन 4 फीसदी जंगलों को बर्बाद कर दिया था लेकिन अब एक बार फिर इस पर खतरा मंडरा रहा है. साल 2016 में कनाडा के जंगलों में लगी आग ने 7.5 अरब यूरो का नुकसान किया था. लेकिन हालात अब भी बेहतर नहीं हुए है. स्टडी के मुताबिक इस साल कनाडा के पश्चिमी प्रांतों में लगी आग अब तक की सबसे भीषण आग है और अक्टूबर मध्य तक इस क्षेत्र के तकरीबन 12.6 लाख हेक्टयेर जंगल आग की भेंट चढ़ गये हैं. ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के मुताबिक, जंगलों की आग, साल 2016 में पेड़ों की संख्या कम करने, वन्य क्षेत्र घटाने की सबसे बड़ी वजह रही. लेकिन कृषि, खनन और अन्य वन्य गतिविधियां भी जंगलों को नुकसान पहुंचाती हैं. पर्यावरणविद् दुनिया भर की सरकारों से वन्य संरक्षण और वन्य क्षेत्रों को बहाली के लिए अधिक निवेश की अपील करते हैं.
खतरे में धरती, खतरे में जीवन
चाहे भारत के बाघ हों या चीन के पांडा, वर्षावन हों या फिर कोरल रीफ, सभी को इंसानी गतिविधियों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. पर अगर ये लुप्त हो गए, तो क्या इंसानों के जीवन पर असर नहीं होगा?
तस्वीर: CC/Korall
कहां जा रहे हैं बाघ
आमुर टाइगर जैसे जानवर अचानक लुप्त होते जा रहे हैं. भारत के हैदराबाद में जैव विविधता पर हुए सम्मेलन में शामिल लोगों ने इस दिशा में कदम उठाने का भरोसा दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गायब होते जंगल
हमारे ग्रह पर वर्षावन बहुत अहम माने जाते हैं. इसे धरती का हरा फेफड़ा कहा जाता है. लेकिन पिछले 50 साल से इसके आधे हिस्से को साफ कर दिया गया. लकड़ी के लिए या तेल के लिए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
गायब होते ओरांगउटन
वर्षावन को नष्ट करने से ओरांगउटन को भी नुकसान पहुंचा है. लगभग 80 फीसदी ओरांगउटन वर्षावन वाले इलाके में रहते हैं और जंगल कटने से उन्हें नुकसान हुआ है.
तस्वीर: AP
ताड़ से नुकसान
भले ही तेल के लिए इन पेड़ों की बहुत जरूरत महसूस होती हो लेकिन ये स्वास्थ्य के लिए खराब हैं. इंडोनेशिया और मलेशिया के जंगल इन पेड़ों के लिए साफ किए जा रहे हैं.
तस्वीर: AP
कोरल रीफ गायब
इन्हें समुद्र का वर्षावन कहा जाता है. इनमें हजारों जानवर और पौधे बसर करते हैं. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से 20 फीसदी कोरल रीफ गायब हो गए हैं.
सिर्फ 1600 पांडा
चीन की पहाड़ियों में अब सिर्फ 1600 विशाल पांडा बचे हैं. प्रकृति की लड़ाई लड रहे लोगों का कहना है कि उनके लिए नई जगह तैयार करने की जरूरत है.
तस्वीर: AP
शेर को जहर
अफ्रीका के कई लोग शेरों से नफरत करते हैं क्योंकि शेर उनकी गायों और बकरियों को खा जाते हैं. इस वजह से वे उन्हें जहर देकर मार देते हैं. उनकी संख्या लगातार घटती जा रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
सवाना को खतरा
जंगली बिल्लियों के घूमने की खुली जगह कम होती जा रही है. अकसर खेती और जंगली जानवरों की जमीन को लेकर विवाद होता है और नुकसान पर्यावरण को पहुंचता है.
तस्वीर: Fotolia/Perth
जमीन की कीमत
विकास के लिए जमीन इस्तेमाल किया जा रहा है और इसका खामियाजा जंगलों और खुद इंसानों को उठाना पड़ रहा है.
तस्वीर: DW / Nelioubin
कहां गए तालाब
सिर्फ भारत नहीं, दुनिया भर के तालाब सूख रहे हैं. इसकी वजह से मेंढक और तालाबों में रहने वाले दूसरे जानवरों का घर छिन रहा है.