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समाज

न्यूयॉर्क में हर पंद्रह सेकंड में बज रही है 911 की घंटी

११ अप्रैल २०२०

अमेरिका के न्यूयॉर्क में कोरोना के चलते दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. ऐसे में लोग घबराए हुए हैं. लगातार 911 पर फोन कर मदद मांग रहे हैं.

USA | Coronavirus: Krankenhaus in New York
तस्वीर: Imago Images/ZUMA Wire/M. J. Lugo

अमेरिका में 911 इमरजेंसी कॉल का नंबर है. लोग किसी भी तरह की दिक्कत में फंसे हों तो इसी नंबर पर फोन कर के मदद मांगते हैं. न्यूयॉर्क में इन दिनों 911 ऑपरेटरों को हर 15.5 सेकंड पर एक फोन आ रहा है. घबराई हुई आवाजें अपने प्रियजनों की बिगड़ती हालत बयान कर रही हैं. किसी को दिल का दौरा पड़ा है तो कोई सांस नहीं ले पा रहा.  हालांकि कई ऐसे भी लोग हैं जो एक छींक मारते ही 911 को फोन कर के पूछने लगते हैं कि कहीं यह कोरोना का लक्षण तो नहीं. हालत यह है कि नगर पालिका को लोगों के फोन पर एसएमएस भेजने पड़ रहे हैं कि इमरजेंसी की स्थिति में ही 911 पर फोन करें. ट्विटर के माध्यम से भी लोगों को ऐसे संदेश भेजे जा रहे हैं.

9/11 से ज्यादा लोग मरे

दमकल विभाग का कहना है कि एक दिन में 5,500 से भी ज्यादा एम्बुलेंस के लिए फोन आ रहे हैं. यह औसत से 40 फीसदी ज्यादा है. न्यूयॉर्क वालों के लिए अब तक का सबसे भयावह लम्हा था 11 सितंबर 2001 का जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर पर आतंकी हमला हुआ था. उस दिन 911 को मदद के लिए जितने फोन आए उतने उससे पहले तक कभी नहीं आए थे. अब कोरोना संकट के बीच यह रिकॉर्ड भी टूट गया. इतना ही नहीं न्यूयॉर्क में मरने वालों की संख्या 11 सितंबर में मरने वालों के आंकड़े को भी पीछे छोड़ चुकी है.

911 ऑपरेटर मोनीक ब्राउन ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "आप जैसे ही एक फोन रखते हैं वैसे ही दूसरा फोन आ जाता है. बिना रुके, लगातार." दूसरे ऑपरेटर रवि केलयानाथन ने कहा, "हम बस एक के बाद एक फोन ले रहे हैं." दिक्कत यह है कि गैरजरूरी फोन कॉल के चक्कर में उन लोगों का वक्त बर्बाद हो जाता है जिन्हें वाकई मदद की जरूरत है. दमकल विभाग के अनुसार आम तौर पर इमरजेंसी कॉल के लिए रिस्पॉन्स टाइम करीब सात मिनट होता है जो कि इस बीच बढ़ कर दस मिनट हो गया है.न्यूयॉर्क में हर दिन दिल के दौरे के कारण 300 बार फोन आ रहा है. और इनमें से 200 से ज्यादा की हर दिन जान जा रही है. पिछले साल इन्हीं दिनों में दिल के दौरे के कारण औसतन 64 फोन आ रहे थे.

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अस्पताल के बाहर एम्बुलेंस की कतारें

911 ऑपरेटर फोन उठाते ही पहला सवाल करते हैं, "आपको पुलिस की मदद की जरूरत है, दमकल की या फिर डॉक्टर की?" फिर फोन करने वाले से बात करने के दौरान वे इस बात का आकलन करते हैं कि मदद कितनी जल्दी पहुंचानी होगी. कुछ मामलों में घंटों भी इंतजार किया जा सकता है. ऐसे लोगों को समझाने की कोशिश की जा रही है कि वे फोन ना करें.

911 ऑपरेटर फोन करने वाले की सारे जानकारी लेते हैं और उन्हें इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (ईएमटी) को आगे बढ़ा देते हैं. ईएमटी एम्बुलेंस का बंदोबस्त करते हैं और मरीज को अस्पताल तक ले कर जाते हैं. लेकिन अभी जैसे हालात में ऐसा भी हो सकता है कि किसी अस्पताल के बाहर एक साथ इतनी सारी एम्बुलेंस पहुंच जाएं कि अस्पताल सभी मरीजों को ना ले सके. न्यूयॉर्क में इन दिनों यही हो रहा है. अस्पताल के बाहर एम्बुलेंस की कतारें लगी हुई हैं. मरीजों को करीब 40 मिनट अस्पताल के बाहर एम्बुलेंस में ही इंतजार करना पड़ रहा है.

अस्पताल पहुंचने से पहले ईएमटी फोन कर के सूचित भी करते हैं ताकि वहां पहले से ही तैयारी रहे. लेकिन इन दिनों ऐसा भी हो रहा है कि एम्बुलेंस को रास्ते में ही मना कर दिया गया और किसी और अस्पताल जाने के लिए कह दिया गया. एक ईएमटी ने बताया कि एक नर्स ने उन्हें फोन पर कहा, "हम यह हैंडल नहीं कर सकते. हमारे पास ना बिस्तर हैं, ना ऑक्सीजन. हमारे पास इक्विपमेंट ही नहीं है. आप यहां नहीं आ सकते." लोगों की मदद के लिए न्यूयॉर्क में 250 अतिरिक्त एम्बुलेंस और 500 अतिरिक्त ईएमटी भी काम पर लगाए हैं. लेकिन लोगों की जान बचाने में यह भी नाकाफी दिख रहा है.

16 घंटे की शिफ्ट और सैकड़ों मौतें

इतना ही नहीं पूरा पैरामेडिक स्टाफ और ऑपरेटर 16 घंटे की शिफ्ट कर रहे हैं. इस आपातकाल स्थिति में उन्हें औपचारिक रूप से सिर्फ सोने का वक्त दिया जा रहा है. लेकिन दिन भर अपनी आंखों के सामने लोगों की जान जाते देखने के बाद इन लोगों को नींद भी नसीब नहीं हो रही है. अपनी भूख प्यास भूल कर ये लगातार काम कर रहे हैं. ना केवल शारीरिक रूप से, ये मानसिक रूप से भी थक चुके हैं. लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए एम्बुलेंस सिर्फ मरीज को ले कर जाती है. किसी भी रिश्तेदार को साथ आने की अनुमति नहीं है. रवि बताते हैं कि हाल ही में एक वृद्ध महिला की बेटी ने उनसे विनती की कि वे उन्हें एम्बुलेंस में साथ ले जाएं, "यह जानना कि यह बेटी अपनी मां को दोबारा कभी नहीं देख सकेगी, आपको झकझोर देता है."

मरीजों की मदद करने वाले ये लोग ये भी जानते हैं कि इन पर संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा है. वे भले ही पूरा ध्यान रख रहे हों लेकिन वे अपने साथियों को बीमार होते हुए भी देख रहे हैं. एक ईएमटी ने कहा, "अब हम यह नहीं कहते कि अगर बीमार हुए, अब हम कहते हैं, जब हम बीमार होंगे... क्योंकि इससे बचना नामुमकिन है."

आईबी/एनआर (एपी)

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