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न भारत के न बाग्लादेश के ये लोग जाएं तो कहां

५ सितम्बर २०११

भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री मंगलवार से आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए बातचीत करने वाले हैं. एक अहम विवाद इस बात पर है कि दोनों इलाकों में ऐसे हिस्से हैं जो न बांग्लादेश के हैं न भारत के.

तस्वीर: DW

कई दशकों से जारी अविश्वास के बीच इस यात्रा को आपसी संबंधों की बेहतरी के लिए एक कदम के तौर पर देखा जा रहा है. भारत चाहता है कि उत्तर पूर्वी हिस्सों से बांग्लादेश आना जाना आसान करे. बांग्लादेश ने चटगांव और मोंगला के बंदरगाह को आपसी व्यापार सुधारने के लिए इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा है. लेकिन विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इस तरह के कदमों से बांग्लादेश की तुलना में भारत को ज्यादा फायदा होगा.

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न इधर के न उधर के     

आपसी रिश्ते सुधारने के लिए तत्पर इन देशों के बीच एक गांव हैं भोटबाड़ी जो सीमाई इलाके पर बांगाल की खाड़ी में है. 1947 के बंटवारे में नक्शे की अजीब रेखा पर बसा एक गांव जिसे दोनों देशों ने ठुकरा दिया है. यहां न तो पक्की सड़कें हैं, न बिजली है और न ही अस्पताल और स्कूल. यहां रहने वाले लोगों को न भारत से कोई मदद है न बांग्लादेश से. कई साल के क्षेत्रीय तनाव ने इसे अधर में रखा हुआ है. जोबेर अली अपना दर्द बयान करते हैं, कोई हमारा ध्यान रखने वाला नहीं. हमारा कोई देश नहीं है और कोई पहचान नहीं. हम कहीं भी नहीं हैं.

भारत बांग्लादेश की 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा पर ऐसे कुछ इलाके हैं जो विवादास्पद हैं. 111 भारतीय गांव बांग्लादेश की सीमा में हैं और 51 गांव भारत में. दोनों देशों के संयुक्त सर्वे के अनुसार इन विवादास्पद इलाकों की कुल जनसंख्या 51 हजार है. इन इलाकों में रहने वाले लोगों की तुलना राष्ट्रीयता विहीन लोगों से होती है. कई पुश्तों से लोग इन हिस्सों में रह रहे हैं लेकिन कोई भी देश उनकी जिम्मेदारी नहीं लेता. 

अधिकारिक तौर पर भोटाबाड़ी के निवासियों को बांग्लादेश में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है लेकिन चूंकि दोनों देशों के बीच कोई बाड़ नहीं है तो लोग ऐसे ही आते जाते हैं. वे बांग्लादेश में खरीददारी करते हैं, वहीं की मुद्रा का इस्तेमाल करते हैं और आपात स्थिति में वहीं के अस्पताल में जाते हैं. भारत की सीमा पर हालत और खराब है. अपने की देश की सीमा में आते हुए उन पर कई बार गोलियां भी चलाई जाती हैं.

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इतिहास से ही

मेलबर्न यूनिवर्सिटी में 2002 में पेश एक शोधपत्र में ब्रेंडन आर व्हाइट ने कहा था कि वैसे तो इस तरह के एनक्लेव यूरोप, मध्य एशिया और मध्यपूर्व में भी हैं लेकिन भारत बांग्लादेश के विशेष हैं और पेचीदा भी.  

एक कहानी के मुताबिक इस तरह के इलाके तब पैदा हुए जब दो राजाओं ने शतरंज खेलते समय अपने गांवों को दांव पर लगाया और हार गए. लेकिन अन्य इतिहासकार कहते हैं कि कूच बेहर और मुगल साम्राज्य के बीच 18वीं सदी में हुई लड़ाई के कारण इस तरह के हिस्से बने. सीमा के लिए एक समझौता हो गया लेकिन मुगल सीमा में कुछ कूच बेहर के समर्थक रहे और कूच बेहर में मुगलों का साथ देने वाले.

लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान भारत पाकिस्तान के बंटवारे में सीमाई कूच बेहर भारत में शामिल हो गया लेकिन उसके बाहरी इलाके तब के पाकिस्तान में रह गए. 1971 में पाकिस्तान बांग्लादेश युद्ध के दौरान भारत के बांग्लादेश से रिश्ते मजबूत हुए, 1974 में उन्होंने एक समझौता भी किया लेकिन यह मुश्किल कभी हल नहीं हुई.

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यात्रा से पहले 

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा से पहले भारत ने उसे व्यावसायिक संरचना मजबूत बनाने के लिए 34 अरब रुपये के कर्ज की स्वीकृति दी है.  कुल कर्ज 45 अरब का दिया जाना है. 

पड़ोसी देश बांग्लादेश की मूलभूत संरचना बेहतर बनाने के लिए भारत ने 45 अरब रुपये के कर्ज का प्रस्ताव रखा था. बांग्लादेश के वित्त मंत्रालय में आर्थिक संबंध विभाग के सचिव मुशर्रफ हुसैन भुईयां ने बताया कि बांग्लादेश इससे बंदरगाह और बाकी संरचना बेहतर बनाएगा. भारत सरकार ने संबंधित मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वह दो दर्जन अलग अलग प्रोजेक्ट के लिए इस राशि को बांटे. पिछले साल अगस्त में समझौते में तय शर्तों के हिसाब से यह कर्ज दिया जाएगा. विदेश मंत्री दीपु मोनी ने कहा, हमारे लिए सबसे अहम है पानी के बंटवारे के बारे में समझौता है जो तीस्ता और फेनी नदियों के बारे में है. बांग्लादेश ने फैसला किया है कि वह आस पास के देशों के लिए संपर्क बढ़ाना चाहता है. खासकर नेपाल, भूटान और भारत. हम संपर्क बढ़ाने के साधनों को विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं जिसमें सड़क, रेल, जल और रास्ता और हवाई यातायात शामिल है.

तस्वीर: Bdnews24.com

उम्मीद है कि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना विवादित सीमा के बारे में समझौता करेंगे और दोनों देशों में बहने वाली नदियों के बारे में भी समझौता करेंगे.

मंगलवार को भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ढाका पहुंचेगें. 1999 के बाद बांग्लादेश जाने वाले वह पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे

संपादनः एन रंजन

 

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