सर्दियों में अफ्रीका और गर्मियों में उत्तरी यूरोप में रहने वाले सारस अब आलसी हो गए हैं. वो खाने की तलाश में लंबी उड़ान भरने के बजाए इंसानी कचरा खाकर काम चला रहे हैं. यह चिंता की बात है.
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जंक फूड और आराम तलब जीवन शैली सिर्फ इंसानों में ही नहीं देखी जाती. सफेद सारस भी ऐसा ही करने लगे हैं. उत्तरी यूरोप की ठंड से बचने के लिए सारसों की ये प्रजाति प्राकृतिक रूप से पतझड़ में अफ्रीका रवाना होती थी. इसके लिए उन्हें जिब्राल्टर की खाड़ी पार करते हुए 2,000 किलोमीटर लंबी उड़ान भरनी पड़ती थी.
लेकिन बीते कुछ सालों से ऐसा नहीं हो रहा है. अब ये सारस दक्षिण यूरोप में रुक रहे हैं और सर्दियां पुर्तगाल व स्पेन के कूड़ेदानों में बिता रहे हैं. वैज्ञानिक इस बात से हैरान है कि अपने सहज स्वभाव का इस्तेमाल करने वाले पंछियों में ऐसा बदलाव क्यों आया. साथ ही यह जानने की कोशिश भी हो रही है कि जंक फूड खाने के आदी हो चुके ये सारस पारिस्थिकी तंत्र पर क्या असर डालेंगे.
आम तौर पर सारस फरवरी में अफ्रीका से लौटकर पुर्तगाल, स्पेन और दूसरे यूरोपीय देशों में आते थे. यहां वे प्रजनन करते थे. और फिर यूरोप में ही रहते थे. अक्टूबर, नवंबर के आस पास वे झुंड बनाकर यूरोप से विदा होते थे और सब सहारा अफ्रीका पहुंचते थे.
वर्ल्डलाइफ मॉनिटरिंग प्रोग्राम की संयोजक अना बेर्मेजो के मुताबिक, "अब स्पेन में ब्रीडिंग करने वाले 80 फीसदी नर सफेद सारस सर्दियों में भी यहीं रुक जाते हैं. युवा सारस अब भी अफ्रीका और यूरोप के बीच उड़ान भर रहे हैं, शायद इसकी वजह जीन में छुपी जानकारी है. लेकिन देर सबेर वो भी ये सीख जाएंगे और ऐसा ही करने लगेंगे."
स्टोर्क स्विट्जरलैंड के वन्यजीवन सलाहकार होल्गर शुल्त्स के मुताबिक, "जर्मनी में रहने वाले ज्यादातर सारसों ने भी अफ्रीका जाना बंद कर दिया है." नतीजा साफ है कि यूरोप के अलग अलग देशों में रहने वाले सारस अब पुर्तगाल और स्पेन के कूड़ेदानों में दावत उड़ाने लगे हैं.
लेकिन सारसों के आहार में आए बदलाव से अगर कोई नई बीमारी पनपी तो झुंड के झुंड खत्म हो जाएंगे. वैज्ञानिकों को आशंका है कि कूड़ेदानों में अक्सर विषैले तत्व भी होते हैं और पंछियों का इन तक पहुंचना पूरे इको सिस्टम को खतरे में डाल सकता है.#
हैरान करने वाली नई प्रजातियां
पृथ्वी पर जीव जन्तुओं की अब भी ऐसी अनगिनत प्रजातियां हैं जिनके बारे में इंसान को जानकारी नहीं है. वक्त के साथ नई खोजें सामने आ रही हैं. एक नजर हाल में सामने आई नई प्रजातियों पर.
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भारत का रंगीन केकड़ा
पहली नजर में ऐसा लगता है जैसे लाल और पीली मिर्चें रखी हों. ताजे पानी का यह रंगीन केकड़ा भारत के पश्चिमी घाट में मिला. पश्चिमी घाट की पहाड़ियों को जैवविविधता के लिहाज से सबसे समृद्ध इलाकों में गिना जाता है. इस रंगीन केकड़ों को गुबनट्रियाना ठाकरे नाम दिया गया है. इसे खोजने वाले तेजस ठाकरे शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के बेटे हैं. उन्होंने केकड़े की पांच नई प्रजातियां खोजी हैं.
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भूतिया सा ऑक्टोपस
ऑक्टोपस की कुछ प्रजातियां शिकार करने या शिकारियों से बचने के लिए रंग बदल लेती हैं. लेकिन हवाना के पानी में मिला यह ऑक्टोपस खास है. इसमें वर्णक नहीं हैं. यह हमेशा सफेद दिखता है और कॉमिक्स के भूतिया किरदार कैस्पर सा दिखता है.
तस्वीर: NOAA
मुर्दा फूल
माना जाता था कि रैफ्लेशिया फूल या कॉर्प्स फ्लावर हमेशा एक मीटर व्यास जितना बड़ा होता है. लेकिन फरवरी 2016 में फिलिपींस के लुजोन द्वीप में इसकी बहुत ही छोटी प्रजाति मिली. इसका व्यास सिर्फ 13 सेंटीमीटर है. इस फूल से शव जैसी बदबू आती है, जिसके चलते मांसाहारी कीट इसकी तरफ आकर्षित होते हैं. इन कीटों के जरिये फूल परागण करता है.
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भारत का चमकदार सांप
21वीं शताब्दी में पौधों और जीवों की नई प्रजातियां खोजने के मामले में भारत सबसे अहम केंद्र रहा. ब्रिटिश और भारतीय वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम ने भारत में चमकदार सांप खोजा. यह विषैला नहीं है बल्कि अपने शिकार को आकर्षित करने के लिए प्रकाश छोड़ता है. इसका नाम मेलानोफिडियम खरे रखा गया है.
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शाकाहारी पिरान्हा मछली
पिरान्हा मछलियों को अब तक धारदार दांतों वाली बर्बर शिकारी माना जाता था. यह मछली कुछ ही मिनटों के भीतर इंसान या दूसरे जीवों का कंकाल में बदलने के लिए मशहूर थी. लेकिन ब्राजील में अमेजन के वर्षावनों में पिरान्हा की एक नई प्रजाति सामने आई है जो पूरी तरह शाकाहारी है. पौधे खाने वाली इस मछली को मिलोप्लस जोरोय नाम दिया गया है.
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टैरेनटुला कंट्री सिंगर
टैरेनटुला या काले बालों वाली मकड़ी को भी 2016 में खोजा गया. इसे अमेरिकी वैज्ञानिकों ने खोजा. इसका नाम मशहूर गायक जॉन कैश से प्रेरित होकर टैरेनटुला कंट्री सिंगर रखा गया. यह मकड़ी कैलीफोर्निया जेल के उस कमरे में मिली जहां जॉन कैश ने एक गाना रिकॉर्ड किया था.
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भारत का ट्री फ्रॉग
2016 में मेंढकों की कई प्रजातियां खोजी गईं. इनमें से प्रमुख है पेड़ों पर रहने वाला भारत का फ्रांकिक्सालस जेरडोनी मेंढक. माना जाता था कि यह 137 साल पहले विलुप्त हो चुका है. लेकिन पेड़ों में बने छेदों में रहने वाला यह मेंढक उत्तर भारत में मिला. तस्वीर में मादा ट्री मेंढक अंडों के साथ है.