चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का नया मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने मौजूदा संकट टाल तो दिया है, लेकिन क्या चुनाव के ठीक पहले पार्टी के अंदर आपसी मतभेदों के यूं सामने आने का पार्टी के भविष्य पर असर पड़ेगा?
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पंजाब विधान सभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होना है, जिसका मतलब है राज्य में चुनाव होने से पहले मुश्किल से छह महीनों का समय बचा है. चुनाव के इतने नजदीक सत्तारूढ़ पार्टी का मुख्यमंत्री को बदल देना भारतीय राजनीति में नई बात नहीं है, लेकिन अक्सर यह एक चुनौतीपूर्ण कदम होता है.
पंजाब में कांग्रेस पिछले कई महीनों से गहरे मतभेदों से गुजर रहे थी. यह स्थिति चरम पर तब पहुंची जब जुलाई में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत कर चुके नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी हाई कमान ने प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.
क्या कर सकते हैं अमरिंदर
अमरिंदर ने तब ही अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी और उनके जल्द ही मुख्यमंत्री पद छोड़ देने की अटकलें लगनी शुरू हो गई थीं. उन्हें इस्तीफा देने का मौका देकर पार्टी ने साफ कर दिया है कि पंजाब को लेकर पार्टी की भविष्य की रणनीति में उनकी कोई विशेष जगह बची नहीं है.
अमरिंदर की करीब पांच दशक लंबी राजनीतिक यात्रा के लिए यह निर्णायक मोड़ है, लेकिन इसे उस यात्रा का अंत नहीं माना जा रहा है. अपने इस्तीफे से पहले 79 वर्षीय सिंह भले ही भारत के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री थे, लेकिन वो राजनीति से सेवानिवृत्ति के मूड में नहीं हैं.
उन्होंने खुद कहा है कि कांग्रेस पार्टी में वो अब अपमानित महसूस कर रहे थे और इस्तीफे के बाद अब उनके सामने सभी विकल्प खुले हैं. अटकलें लग रही हैं कि अमरिंदर अब अपनी नई पार्टी शुरू कर सकते हैं. वो ऐसा पहले भी कर चुके हैं.
1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे कर शिरोमणि अकाली दल का दामन थाम लिया था. लेकिन 1992 में उन्होंने अकाली दल भी छोड़ दिया और शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) नाम से एक नई पार्टी की शुरुआत की.
कांग्रेस को खतरा
हालांकि इस पार्टी का भविष्य उज्ज्वल नहीं रहा. 1998 के विधान सभा चुनावों में अमरिंदर के साथ उनकी पार्टी को भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा. उसके बाद सिंह कांग्रेस लौट आए और अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
अगर आने वाले चुनावों पर नजर रखते हुए वो दोबारा एक नई पार्टी खड़ी करते हैं, तो उसका भविष्य क्या होगा यह अभी कहना मुश्किल है. अमरिंदर ना सिर्फ अभी भी एक सक्रिय नेता हैं, बल्कि राज्य के सबसे कद्दावर नेताओं में से हैं.
इसके बावजूद प्रदेश की राजनीति में एक और पार्टी की जगह है या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है. दशकों से कांग्रेस और अकाली दल के बीच झूल रहे पंजाब को 2014 में आम आदमी पार्टी के रूप में एक तीसरा विकल्प मिला.
2017 के विधान सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा और वो विधान सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. पार्टी अगले चुनावों में और बेहतर प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने की तैयारी कर रही है.
ऐसे में एक नई पार्टी के लिए इतने कम समय में अपने लिए जमीन तैयार करना एक मुश्किल काम होगा. हां, अमरिंदर चुनावों में कांग्रेस को मिलने वाले कुछ वोट काटने का काम जरूर कर सकते हैं. ऐसे में उनके इस्तीफे से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.
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चन्नी से उम्मीद
19 सितंबर के पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट हो गया की मुख्यमंत्री पद के लिए चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस का पहला विकल्प नहीं थे. ऐसे में पार्टी के अंदर मौजूद मतभेद और खुल कर सामने आ गए. इसके अलावा चन्नी पूर्वे में कई विवादों में घिरे रहे हैं, जिनके बारे में पार्टी के अंदर और बाहर के कई नेताओं ने जनता को याद कराना शुरू कर दिया है.
एक बड़ा विवाद 2018 में खड़ा हो गया था जब उनके ऊपर एक महिला आईएएस अधिकारी को अश्लील एसएमएस भेजने का आरोप लगा था. प्रदेश में कई दिनों तक उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई. अंत में अमरिंदर ने बयान दिया कि चन्नी ने अधिकारी से माफी मांग ली है.
उसी मामले को एक बार फिर उछालने की कोशिश की जा रही है और प्रदेश में विपक्षी पार्टियां ट्विटर पर चन्नी के खिलाफ अभियान चला रही हैं. इसी बीच चन्नी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पंजाब कांग्रेस के दो और नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओम प्रकाश सोनी को उप मुख्यमंत्री भी बनाया गया है.
चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बन गए हैं इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें चुनकर कांग्रेस ने प्रदेश के करीब 31 प्रतिशत दलित मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है. हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि प्रदेश के दलित मतदाताओं ने पहले कभी भी एक धड़े के रूप में मतदान नहीं किया है. ऐसे में देखना होगा कि चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का कांग्रेस को कितना लाभ मिल पाता है.
भारत में सत्ता और संवैधानिक संकट
राजस्थान में कांग्रेस विधायकों के विद्रोह के कारण एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है, जिसमें स्पीकर को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. हाल में और किन राज्यों में हुआ है सत्ता को लेकर संवैधानिक संकट?
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
मध्य प्रदेश
नवंबर 2018 में हुए विधान सभा चुनावों में जीत हासिल कर कांग्रेस ने सरकार बनाई गई थी और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और उनके साथ कांग्रेस के 22 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कमल नाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट का सामना करने का आदेश दिया. इसके कमल नाथ ने इस्तीफा दे दिया और शिवराज नए मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: imago images/Hindustan Times
कर्नाटक
2018 में हुए विधान सभा चुनावों के बाद राज्यपाल ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए निमंत्रण दे दिया. कांग्रेस इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई और आधी रात को अदालत में सुनवाई हुई. बाद में अदालत ने राज्यपाल के फैसले को गलत ठहराते हुए फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया. येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जेडी (एस) के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.
तस्वीर: IANS
कर्नाटक (दोबारा)
जुलाई 2019 में जेडी (एस) और कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे से मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की सरकार अल्पमत में आ गई. विधायक जब मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए तब अदालत ने स्पीकर को विधायकों का इस्तीफा मंजूर करने का आदेश दिया और बाद में उन्हें अयोग्य घोषित किए जाने से सुरक्षा भी प्रदान की. विधान सभा में फ्लोर टेस्ट हुआ और कुमारस्वामी की सरकार गिर गई. बीजेपी के येदियुरप्पा फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/S. Forster
महाराष्ट्र
नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों के नतीजे आ जाने के दो सप्ताह तक रही अनिश्चितता के बीच एक दिन अचानक राज्यपाल ने बीजपी नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. कांग्रेस और एनसीपी ने राज्यपाल के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. अदालत के फ्लोर टेस्ट के आदेश देने पर फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना ने मिलकर सरकार बनाई.
तस्वीर: P. Paranjpe/AFP/Getty Images
जम्मू और कश्मीर
जून 2018 में जम्मू और कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार से बीजेपी के अचानक समर्थन वापस ले लेने से राजनीतिक और संवैधानिक संकट खड़ा हो गया. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस्तीफा देना पड़ा. राज्य में राज्यपाल का शासन लगा दिया गया. छह महीने बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और अगस्त 2019 में केंद्र ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा ही खत्म कर दिया और उसकी जगह दो केंद्र-शासित प्रदेश बना दिए.
तस्वीर: Getty Images/S. Hussain
बिहार
जुलाई 2017 में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली अपनी ही सरकार गिरा दी. कुमार को बीजेपी के विधायकों का समर्थन मिल गया और राज्यपाल ने उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का निमंत्रण दे दिया. आरजेडी ने पटना हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर कर दी जो खारिज कर दी गई और कुमार फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित कर फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
तस्वीर: IANS
गोवा
मार्च 2017 में गोवा विधान सभा चुनावों के बाद जब राज्यपाल ने बीजेपी नेता मनोहर परिकर को सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया, तब सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी कांग्रेस ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, जिसमें मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण करने के बाद परिकर ने बहुमत साबित कर दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
अरुणाचल प्रदेश
दिसंबर 2015 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के कुछ विधायकों और डिप्टी स्पीकर ने विद्रोह के बाद स्पीकर पर महाभियोग लगाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया. स्पीकर ने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. जनवरी 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. फरवरी में कलिखो पुल ने सरकार बना ली. जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को गैर-कानूनी करार दिया और कांग्रेस की सरकार को बहाल किया.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Yadav
उत्तराखंड
मार्च 2016 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के विद्रोही विधायकों ने विपक्ष के साथ मिलकर बजट पर वोटिंग की मांग की, लेकिन स्पीकर ने ध्वनि मत से बजट पारित करा दिया. विद्रोही विधायक राज्यपाल के पास चले गए और उनकी अनुशंसा पर केंद्र ने मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार बर्खास्त कर दी. राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. रावत की याचिका पर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन हटा दिया और रावत सरकार को बहाल किया.