पंजाब केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ राज्य स्तर पर अपने ही विधेयक पारित करने वाला पहला राज्य बन गया है. पंजाब विधान सभा ने मंगलवार को चार कृषि संबंधित विधेयक पारित कर दिए.
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हालांकि ये विधेयक कानून तब तक नहीं बन पाएंगे जब तक पंजाब के राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति अपनी सहमति ना दे दें. विधान सभा में चारों विधेयक ध्वनि मत से पारित हुए. सिर्फ बीजेपी के दो विधायकों ने विशेष सत्र में हिस्सा नहीं लिया. विधेयकों के अलावा विधान सभा ने एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें केंद्र से अपील की गई कि वो तीनों विवादास्पद कानून तुरंत रद्द करे और एमएसपी को सुरक्षित करने के लिए और खाद्यान्न की सरकारी खरीद को जारी रखने के लिए नए कानून पास करे.
चार विधेयकों में से तीन का उद्देश्य तो केंद्र के तीनों कानूनों के प्रावधानों को उलटना है, जिससे किसानों को एमएसपी मिलते रहना सुनिश्चित हो सके, जमाखोरी और कालाबाजारी की रोकथाम हो सके और सरकारी मंडियों को प्राथमिकता मिलती रहे. इन विधेयकों में किसानों को एमएसपी से कम दाम पर अपने उत्पाद बेचने के लिए मजबूर करने वालों के लिए तीन साल जेल की सजा का भी प्रावधान है.
चौथा विधेयक कानूनी मुकदमों में छोटे किसानों की जमीन जब्त होने से बचाने के संबंध में है. चारों विधेयकों को पास करा लेने के बाद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह एक सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल ले कर राज्यपाल वी पी सिंह बाडनोर के पास गए और उन्हें विधेयकों की प्रतियां सौंपी. राज भवन से निकल कर मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर राज्यपाल विधेयकों को अपनी स्वीकृति नहीं देंगे तो उनकी सरकार कानूनी रास्ता अपनाएगी.
मीडिया में आई कुछ खबरों के अनुसार अमरिंदर सिंह मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले कर जाने के लिए तैयार है. उन्होंने खुद पत्रकारों से यह भी कहा कि अगर इस मुद्दे पर केंद्र पंजाब में उनकी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करने की सोच रहा है तो वो खुद ही किसानों के हित में इस्तीफा देने को तैयार हैं.
सिंह आज से 16 साल पहले भी केंद्र के खिलाफ इस तरह की लड़ाई लड़ चुके हैं. 2004 में भी उन ही के कार्यकाल में केंद्र के कानून के खिलाफ पंजाब विधान सभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ वॉटर एग्रीमेंट्स कानून पारित किया था जो अंत में सुप्रीम कोर्ट में ही पहुंचा.
उधर छत्तीसगढ़ में भी राज्य सरकार ऐसे ही विधेयक लाने की तैयारी कर रही है, लेकिन इस मुद्दे पर सरकार और राज्यपाल अभी से आमने-सामने हो गए हैं. मीडिया में आई खबरों में दावा किया गया है कि विधेयक पारित कराने के लिए सरकार विधान सभा का विशेष सत्र आयोजित करना चाह रही है लेकिन राज्यपाल इसकी अनुमति नहीं दे रहे हैं.
राज्य सभा में तीन घंटों में सात विधेयकों का पास हो जाना अपने आप में एक नई घटना है. यह तब संभव हुआ जब विपक्ष ने उसकी बात ना सुने जाने के विरोध में सदन का बहिष्कार कर दिया. जानिए क्या है इन विधेयकों में.
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बहिष्कार
मानसून सत्र 2020 के दौरान राज्य सभा से विपक्ष के आठ सांसदों के निलंबन के बाद, अधिकतर विपक्षी दलों ने सदन का बहिष्कार कर दिया. लेकिन इसके बावजूद सदन की कार्रवाई चलती रही और साढ़े तीन घंटों में ही एक के बाद एक सात विधेयक पारित हो गए.
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आईआईटीयों पर विधेयक
इनमें सबसे पहले पास हुआ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान विधियां (संशोधन) विधेयक, 2020. इसके तहत पांच नए आईआईटीयों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित किया जाना है. इसके अलावा बाकी छह विधेयक भी लोक सभा से पहले ही पारित हो चुके थे.
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आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक
यह उन कृषि संबंधी विधेयकों में से एक है जिनका किसान और विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को निकालना और उन पर भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना है.
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बैंककारी विनियमन (संशोधन) विधेयक
इस बिल का उद्देश्य सहकारी बैंकों को आरबीआई की देखरेख में लाना है. 2019 में पीएमसी सहकारी बैंक में करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया था, जिससे आम खाताधारकों की जमापूंजी के डूब जाने का खतरा पैदा हो गया था.
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कंपनी (संशोधन) विधेयक
कंपनी अधिनियम, 2013 का और संशोधन करने वाले इस विधेयक का उद्देश्य है पुराने कानून के तहत कुछ नियमों के उल्लंघन के लिए सजा को कम करना. विपक्ष की आपत्ति थी कि सजा कम करने से कंपनी मालिकों को लगेगा की वे वित्तीय अनियमितताओं के दोषी पाए जाने पर भी बच जाएंगे.
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राष्ट्रीय न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य गुजरात स्थित गुजरात न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय न्यायालयिक विज्ञान विश्वविद्यालय बनाना और उसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा देना है.
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राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य है गुजरात में ही स्थित रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय बनाना और उसे भी राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा देना.
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कराधान संबंधी विधेयक
इस विधेयक का उद्देश्य कराधान यानी टैक्सेशन संबंधी नियमों में कुछ संशोधन करना था, जिससे कंपनियों को कोरोना वायरस महामारी की वजह से हुए नुक्सान को देखते हुए कर संबंधी नियमों के पालन और भुगतान आदि के लिए अतिरिक्त समय दिया जा सके. यह एक धन विधेयक यानी 'मनी बिल' था, इसलिए इसे लोक सभा वापस लौटा दिया गया.
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पहले भी हुआ
शोरगुल के बीच बिलों को पास कराने का काम पहले भी हुआ है. 2008 में लोक सभा में शोरगुल के बीच 17 मिनटों में आठ विधेयक पास करा लिए गए थे.