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पच्चीस साल बाद घर लौटेंगे दंगों में विस्थापित लोग

प्रभाकर मणि तिवारी
३० अगस्त २०२१

पूर्वोत्तर राज्य असम के बोड़ो-बहुल इलाकों में संथालों और बोड़ो जनजाति के लोगों के बीच हुए जातीय दंगों और हिंसा की वजह से 25 वर्षों से विस्थापन की त्रासदी झेल रहे लाखों लोग अब अगले तीन महीने के दौरान अपने घर लौटेंगे.

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बरसों बाद होगी घर वापसी (फाइल फोटो)तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro

निचले असम के इस इलाके में वर्ष 1996 के अलावा 2008 और 2012 में बड़े पैमाने पर दंगे और उग्रवादी हिंसा हो चुकी है. इनमें करीब एक हजार लोग मारे गए थे और संपत्ति का भारी नुकसान हुआ था. लेकिन अब बोड़ोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) ने अगले तीन महीने के दौरान इन विस्थापित परिवारों की घर वापसी की योजना बनाई है.

कैसे हुए विस्थापित

वर्ष 1996 में इलाके में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए थे. उसके बाद वर्ष 2008 और 2012 में जातीय और सांप्रदायिक दंगे हुए थे. इस दौरान इलाके में बोड़ो उग्रवाद भी चरम पर था. दंगों को भड़काने में उग्रवादी संगठनों की भूमिका भी अहम रही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दंगों की वजह से विस्थापित ढाई लाख से ज्यादा लोगों में से ज्यादातर बीते 25 वर्षों से शरणार्थी शिविरों में ही रह रहे हैं. कुछ लोगों को दूसरी जगहों पर बसाया गया है.

बीटीसी के प्रमुख प्रमोद बोड़ो कहते हैं, "बोड़ोलैंड इलाका बीते 25 वर्षो में कई जातीय दंगों और उग्रवादी हिंसा का दंश झेल चुका है. लेकिन हम इलाके में शांति बहाल करने में कामयाब रहे हैं. अब हमारी प्राथमिकता दंगों की वजह से विस्थापित लोगों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना है. यह काम अगले तीन महीनों के दौरान चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा.”

उनके मुताबिक, बीटीसी प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं के सहारे विस्थापित परिवारों के घरों के पुनर्निर्माण में सहायता करेगी. बहुत से लोगों के घर दंगों में क्षतिग्रस्त नहीं हुए थे. ऐसे लोग असुरक्षा की वजह से अपने घरों को नहीं लौट रहे थे. लेकिन ऐसे गांवों में अब पुलिस चौकियों की स्थापना की जाएगी.

प्रमोद बताते हैं कि घर वापसी की प्रक्रिया कोकराझार जिले के गोसाईंगांव इलाके के प्रभावित आदिवासी और बोड़ो लोगों के पुनर्वास के साथ शुरू होगी. यह लोग 25 साल से अपने घरों से दूर शरणार्थी शिविरों में रहने पर मजबूर थे.

वर्ष 1996 में बोड़ो और संथाल जनजातियों के बीच पहली बार हुए दंगे में ढाई लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे और सैकड़ों लोगों की मौत हो गई ती. उसके बाद वर्ष 1998 में भी बोड़ो इलाकों में उग्रवाद तेज होने की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ था. इसके बाद वर्ष 2008 और 2012 में बोड़ोलैंड इलाके में बोड़ो तबके और बांग्लाभाषी मुसलमानों के बीच हुए दंगों में सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे और लाखों लोग विस्थापन का शिकार हुए थे. उस समय इन दंगों में उग्रवादी संगठनों की भी अहम भूमिका रही थी. उसके बाद दिसंबर, 2014 में उग्रवादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोड़ोलैंड (एनडीएफबी) ने संथालों पर लगातार कई हमले कर कम से कम 76 लोगों की हत्या कर दी थी.

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समझौते से शांति

असम के बोड़ोबहुल इलाके में अलग राज्य की मांग में आंदोलन का इतिहास आठ दशक से भी ज्यादा पुराना रहा है. दशकों तक अलग राज्य की मांग में आंदोलन करने वाले बोड़ो संगठनों की हिंसा की वजह से निचले असम का बोड़ो बहुल इलाका अशांत रहा है. लेकिन बीते साल 27 जनवरी को केंद्र सरकार ने बोड़ो छात्र संघ (आब्सू) और उग्रवादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोड़ोलैंड (एनडीएफबी) के तमाम गुटों के साथ एक शांति समझौता पर हस्ताक्षर किए थे. इसे ऐतिहासिक बताते हुए सरकार ने इलाके में शांति बहाल करने और विकास की गति तेज करने का दावा किया था.

इससे पहले वर्ष 2003 में हुए समझौते के बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) का गठन किया गया था. वर्ष 2003 में केंद्र से समझौते के आधार पर बीटीसी का गठन होने के बाद उग्रवादी संगठन बोडो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) के प्रमुख हाग्रामा मोहिलारी ने बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट नामक एक राजनीतिक पार्टी बना कर राजनीति में कदम रखा था.

शांति समझौते के बाद एनडीएफबी के चारों गुटों के 16 सौ से ज्यादा उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है. उसके बाद बोड़ो इलाकों के विकास के लिए केंद्र सरकार ने डेढ़ हजार करोड़ रुपए का खास पैकेज जारी किया है. बीटीसी प्रमुख के मुताबिक, शांति समझौते के तहत हथियार डालने वाले उग्रवादियों के पुनर्वास की प्रक्रिया भी शीघ्र शुरू की जाएगी. असम सरकार इसके लिए 160 करोड़ की रकम देगी.

लेकिन बीटीसी की मुख्य चिंता पूर्व उग्रवादी नेता हाग्रामा मोहिलारी के नेतृत्व वाले बोड़ोलैंड पीपुल्स फ्रंट प्रशासन (बीपीएफ) की ओर से छोड़ा गया 2,900 करोड़ का कर्ज है. प्रमोद बोड़ो आरोप लगाते हैं, "मोहिलारी ने 17 साल तक कौंसिल को मनमाने तरीके से चलाया. अब तक कई परियोजनाओं का भुगतान बकाया है.” उनका कहना है कि परिषद के पूर्व प्रशासन ने शिक्षा, कृषि, रोजगार और आधारभूत ढांचे के विकास के लिए कोई नीति नहीं तैयार की थी. इसी तरह मनरेगा और जल जीवन मिशन को इलाके में लागू नहीं किया गया.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीटीसी की यह पहल सराहनीय तो है. लेकिन मूल सवाल यह है कि इसे जमीनी स्तर पर कितने प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकेगा? राजनीतिक विश्लेषक डीके सुमतारी कहते हैं, "पहले भी बोड़ो संगठनों के साथ समझौते के बाद शांति बहाली के दावे किए जाते रहे हैं. लेकिन वह तमाम दावे खोखले ही साबित हुए हैं. ताजा समझौते के बाद अब बीटीसी इलाके में रहने वाले आदिवासियों और अल्पसंख्यकों का खोया भरोसा लौटाने में किस हद तक कामयाब रहती है, पुनर्वास प्रक्रिया की कामयाबी इसी पर निर्भर है.” 

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