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पटाखों पर रोक के नतीजे तुरंत नहीं मिलेंगे

२८ अक्टूबर २०१८

पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पर्यावरणविदों ने स्वागयोग्य बताया है, लेकिन उनका कहना है कि इसका वायु प्रदूषण पर प्रभाव सामने आने में अभी से दो से तीन साल और लगेंगे. 

Indien Lichterfest Diwali
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Kanojia

सर्वोच्च न्यायालय ने इस दिवाली रात आठ से 10 बजे के बीच पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने वाले पटाखों का प्रयोग करने की इजाजत दी है. पर्यावरणाविद् और पर्यावरण की देखरेख में जुटे संगठनों का कहना है कि अदालत का फैसला स्वागतयोग्य है.

निर्वाना बीइंग के संस्थापक और पर्यावरणविद् जयधर गुप्ता ने आईएएनएस को बताया, "अगर हम नियंत्रित पटाखों की तरफ जाएं, जिनसे उत्सर्जन नहीं है या फिर बहुत कम उत्सर्जन है तो वह बहुत ही अच्छा है, क्योंकि इससे पटाखे बनाने में लाखों लोगों का रोजगार भी बच जाता है और हम एक नई चीज की ओर भी बढ़ रहे हैं. पहले अनियंत्रित पटाखों का प्रयोग किया जाता था, जिनमें जहरीले पदार्थ भरे होते थे. अब उस जहर को बाहर निकालकर पटाखे बनाए जाएंगे."

उन्होंने कहा, "जब आप लोगों पर दबाव डालेंगे तभी वह नई चीज बनाएंगे. अभी तक तो यह पटाखे जहर थे और अब हम इन्हें मजबूर कर रहे कि इस जहर को बाहर निकालें और उस पर अदालत का फैसला अच्छा परिणाम लाएगा."

जयधर गुप्ता ने कहा, "इसमें सिर्फ दिक्कत यह है कि इसका सकरात्मक प्रभाव सामने आने में दो से तीन साल लग जाएंगे क्योंकि अभी जो भी पटाखों की फैक्ट्रियां हैं और जो भी विक्रेता हैं उनके पास इतने पटाखों का भंडार होगा कि वह चाहे उन्हें वैध तरीके से बेचें या अवैध तरीके से उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है और जिसको जलाने हैं, वह जलाएगा. इसलिए इसका प्रभाव सामने आने में दो से तीन साल लगेंगे लेकिन अच्छी बात है कि कम से कम वायु प्रदूषण को लेकर लोगों में जागरूकता तो होगी." 

वहीं ग्रीनपीस इंडिया में जलवायु एवं ऊर्जा के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया ने आईएएनएस को बताया, "जैव-ईंधन जलने के मुद्दे की तरह, पटाखे भी प्रदूषण को बढ़ाने में योगदान देते हैं और हवा को प्रदूषित करते हैं. दिल्ली के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा हाल ही में उत्सर्जन सूची रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि प्रदूषण में परिवहन, बिजली संयंत्र, उद्योग और धूल महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिनका हल निकाला जाना चाहिए ताकि वायु प्रदूषण को स्थायी रूप से कम किया जा सके." 

उन्होंने कहा, "हम एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के बीच में जी रहे हैं और वायु प्रदूषण के कई स्रोतों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की आवश्यकता है. सरकारों को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) को अधिसूचित करना है, जिसमें लगातार देरी हो रही है."

अदालत के फैसले पर बंटे लोगों के सवाल पर जयधर गुप्ता ने कहा, "लोग अदालत के इस फैसले को धर्म का मुद्दा भी बना रहे हैं. मुझे समझ नहीं आता कि अपने बच्चों को वायु प्रदूषण से मारने में कौन सा धर्म रखा है. एक परंपरा बनी हुई है कि पटाखे बच्चों के साथ फोड़ने हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला इसलिए दिया है कि इसमें धार्मिक भावनाएं शामिल हो जाती हैं, इसलिए कोई नेता ऐसा फैसला नहीं लेना चाहता है."

उन्होंने कहा, "देखिए सरकार की भूमिका है स्वास्थ्य और जिंदगी की रक्षा करना लेकिन धर्म के मामले में नेता भी पीछे हट जाते हैं और यह एक धार्मिक मुद्दा बन जाता है. लोग धर्म की बात छोड़कर इस फैसले का स्वागत करें क्योंकि हमारी हवा पहले ही जहर हो चुकी है और हमें अपने हालात को बेहतर करना है, जहर में जहर मिलाने पर कौन सी अक्लमंदी है." 

वहीं सुनील ने कहा, "नीतियों और अदालत के आदेशों को लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति को उजागर करना दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है. इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने में हम पिछले कई वर्षो से नीति निर्माण और कार्यान्वयन में केंद्रीय और राज्य सरकारों में गंभीरता की कमी को देख रहे हैं. हमें इंतजार करना है और देखना है कि यह आदेश कैसे लागू किया जा रहा है."

आईएएनएस/एके

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