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पत्रकारों को मारने वाले लोग कौन हैं?

३ मई २०१८

बीते 12 महीनों में 87 पत्रकारों की हत्या की गई जिसमें 6 महिलाएं थी. देश चाहे यूरोप के हो, एशिया के या फिर अफ्रीका पत्रकार कहीं भी सुरक्षित नहीं, उनके लिए काम करने की स्थिति लगातार बिगड़ रही है.

Malta ermordete Journalistin Daphne Caruana Galizia
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Mirabelli

आज वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे है यानि दुनिया भर में पत्रकारों को काम करने की आजादी के बारे में बात करने का दिन है. यह एक संयोग भर ही है कि एक दिन पहले भारत में मशहूर पत्रकार जे डे की हत्या के मामले में छोटा राजन को दोषी करार दिया गया. 56 साल के जे डे को मुंबई के पवई में उनके घर में गोली मार दी गई थी. वो क्राइम रिपोर्टर थे और छोटा राजन ने अपने शूटरों को उन्हें मारने का हुक्म दिया था. इसके पीछे यह वजह बताई जाती है कि जे डे एक किताब लिखने की योजना बना रहे थे जिसमें उन्होंने छोटा राजन को एक छोटा मोटा अपराधी बताया था.

छोटा राजन को दोषी ठहराए जाने जैसे मामले भारत क्या पूरी दुनिया के पैमाने पर भी देखें तो बमुश्किल से गिने चुने ही नजर आएंगे. पत्रकारों के लिए हर जगह काम करने की आजादी छिन रही है, उनकी सुरक्षा खतरे में है और दुनिया के ज्यादातर हिस्से में कमोबेश यही स्थिति है.

2017 के आखिरी आठ महीनों में ही दुनिया भर में 55 पत्रकारों की मौत हुई. इनमें से ज्यादातर को जान बूझ कर निशाना बनाया गया और इनमें पांच महिलाएं भी शामिल थीं. पत्रकारों और प्रेस में काम करने वालों को उनके काम की वजह से मारा जा रहा है.

इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई)1997 से ही उन पत्रकारों के बारे में आंकड़े जमा कर रहा है जिनकी काम के दौरान मौत हुई. बीते दो दशकों में 2012 पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक साल था. उस एक साल में 133 पत्रकारों की जान गई. इससे एक साल पहले 121 पत्रकारों की मौत हुई.

आईपीआई में एडवोकेसी के प्रमुख रवि आर प्रसाद कहते हैं, "ये आंकड़े तो उन लोगों के हैं जिनकी मौत हुई. इसके अलावा एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जो बच गए, या सिर्फ घायल हुए. इनमें सिर्फ पत्रकारों को शामिल किया गया है इसके अलावा जो सपोर्ट स्टाफ है उनकी भी बड़ी संख्या है, अगर इन सब को मिला दिया जाए तो प्रताड़ितों की तादाद बहुत ज्यादा हो जाएगी."

रवि आर प्रसाद बताते हैं कि इस साल के पहले चार महीनों में ही भारत में 3 पत्रकारों की मौत हुई है जबकि पिछले साल सात पत्रकारों की हत्या हुई जिनमें एक गौरी लंकेश भी थीं जिनकी बेंगलुरू में हत्या की गई. पाकिस्तान में पिछले साल एक पत्रकार की हत्या हुई जबकि इस साल दो पत्रकार मारे गए हैं, बांग्लादेश और मालदीव में बीते साल एक एक पत्रकार की हत्या हुई. अफगानिस्तान में तो बीते हफ्ते ही 10 पत्रकारों की हत्या हुई और वहां हालात बेहद खराब हैं.

तस्वीर: twitter/gaurilankesh

पत्रकारों की प्रताड़ना सिर्फ शारीरिक हिंसा तक ही सीमित नहीं है. अब तो हाल यह है कि ऑनलाइन पत्रकारिता करने, ब्लॉग लिखने या फिर सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को भी निशाना बनाया जा रहा है. आईपीआई ने सिर्फ दो देशों ऑस्ट्रिया और तुर्की में ऑनलाइन दुर्व्यवहार पर नजर रखी तो सिर्फ एक महीने में ही इस तरह के 1065 मामले सामने आए.

रवि आर प्रसाद कहते हैं, "सबसे ज्यादा प्रताड़ित महिला पत्रकारों को किया जा रहा है. उनके खिलाफ फेसबुक पोस्ट डाले जा रहे हैं, ट्विटर पर परेशान किया जा रहा है. हमारे यहां सहिष्णुता की जो सीमा है वह लगातार सिकुड़ रही है. पत्रकार अगर भ्रष्टाचार पर लिखते हैं तो उन पर हमले होते हैं, कई बार उनकी मौत होती है, कभी वो घायल होते हैं या फिर मानसिक रूप से इतने प्रताड़ित होते हैं कि काम करना मुश्किल हो जाता है."

बीते साल माल्टा में दुनिया भर के टैक्स चोरों का भंडाफोड़ करने वाली पत्रकार डाफने कारुआना को कार समेत बम से उड़ा दिया गया. यह एक घटना भी इस बात का अहसास दिलाने के लिए काफी है कि पत्रकार किन हालातों में काम कर रहे हैं. मेक्सिको के ड्रग माफिया हों, पनामा के टैक्स चोर, अफगानिस्तान के चरमपंथी या फिर भ्रष्टाचार में लिप्त दुनिया भर के राजनेता और माफिया, पत्रकार इन सब के निशाने पर हैं.

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