फिल्मकार श्याम बेनेगल ने विवादित फिल्म पद्मावत पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत बताया है. संजय लीला भंसाली की फिल्म की रिलीज पर कुछ राज्यों में लगी रोक को न्यायालय ने हटा दिया है.
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सेंसर बोर्ड में बदलावों को सुझाने के लिए बनाई गई सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की समिति की अध्यक्षता कर चुके श्याम बेनेगल ने कहा कि एक बार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) और सर्वोच्च न्यायालय ने फिल्म को हरी झंडी दिखा दी, तो अब कोई भी फिल्म की रिलीज रोक नहीं पाएगा.
सेंसर सर्टिफिकेट पाने के बावजूद राजस्थान, गुजरात और हरियाणा सरकारों ने अपने राज्यों में फिल्म की रिलीज पर प्रतिबंध लगा दिया था. बेनेगल ने कहा कि कुछ संगठनों द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का हवाला देते हुए 25 दिसम्बर को 'पद्मावत' की रिलीज पर प्रदर्शन करने की धमकी के मद्देनजर कानून-व्यवस्था की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों को कार्रवाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा, "स्पष्ट रूप से यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत है."
अंकुर, निशांत, मंथन और भूमिका जैसी सामाजिक रूप से प्रासंगिक फिल्मों के लिए पहचाने जाने वाले 83 वर्षीय निर्देशक फिल्म पर तब भी सवाल उठाए जाने से हैरान हैं, जब निर्माताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि फिल्म 16वीं शताब्दी के कवि मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य 'पद्मावत' पर आधारित है. उन्होंने कहा, "आखिरकार, सीधी सी बात है कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है. यह 1526 में लिखा गया था, ना कि कल या आज. हमने साहित्यिक क्लासिक को स्वीकार किया है, जो 1526 से यहां है जब मलिक ने इसे लिखा था. और, अब तथ्य यह है कि कई-कई सालों बाद, कुछ छोटे संगठन यह कह रहे हैं कि यह उनकी भावनाओं को आहत कर रहा है. इसका क्या अर्थ है?"
सेंसर बोर्ड ने 'पद्मावत' को पिछले साल 30 दिसंबर को यू/ए प्रमाण पत्र देने का फैसला किया था. फिल्म का नाम 'पद्मावती' से बदलकर 'पद्मावत' कर दिया था, साथ ही पांच संशोधन किए थे. लेकिन, राजपूत संगठन श्री राजपूत कर्णी सेना अपनी मांग पर अड़ा है कि फिल्म प्रदर्शित नहीं की जानी चाहिए. इस पर बेनेगल ने कहा, "समस्या फैलाने वाले इन समूहों से निपटने में राज्य सरकारों को कुछ भी रोक नहीं रहा है. जब तक कि वे खुद ही इन लोगों के साथ मिली ना हों.
सुगंधा रावल (आईएएनएस)
मशहूर लेकिन प्रतिबंधों में जकड़ी किताबें
हैरी पॉटर से लेकर डिक्शनरी तक यहां उन किताबों को देखिये जो बहुत मशहूर हुईं लेकिन साथ ही उन पर पाबंदियों की बेड़ियां भी लगाई गईं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PA I. Nicholson
हैरी पॉटर
जे के रॉलिंग की लिखी इस किताब ने 2000 से 2009 तक दुनिया को अपने जादू से अभिभूत किये रखा लेकिन धार्मिक गुटों ने इस पर पाबंदी की मांग भी की. अमेरिका में कई ईसाई पाठकों ने इसे शैतानी कहा और इसकी प्रतियां जलाईं गईं. संयुक्त अरब अमीरात के स्कूलो ने तो इन पर बकायदा पाबंदी ही लगा दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpa-Film Warner
द ब्रदर ग्रिम्स फेरी टेल्स
क्या कोई परियों की कहानियां भी प्रतिबंधों में जकड़ सकता है, सुन कर हैरानी होती है लेकिन दुनिया में बच्चों की किताबों पर बड़ी बंदिशें हैं. ग्रिम बंधुओँ की कहानियां भी इससे अछूती नहीं. 1989 में कैलिफोर्निया के एक स्कूल ने इसे पढ़ने पर रोक लगा दी क्योंकि इस किताब में एक जगह लिखा था दादी मां की लाई वाइन ने उसे अच्छा महसूस कराया.
तस्वीर: Imago/United Archives
जेम्स एंड द जायंट पीच
1961 में छपे एक बच्चे के जादुई रोमांच की कहानियों को भी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा. इस कहानी में तंबाकू, व्हिस्की और कुछ दूसरे शब्दों को लेकर 1990 में आपत्ति जताई गई. इसके अलावा ओहायो के एक किताब विक्रेता ने यह भी दावा किया कि यह किताब कम्युनिज्म की वकालत करती है.
लज्जा
1992 में भारत के अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराये जाने के बाद पड़ोसी देशों में भी दंगे शुरू हो गये. बांग्लादेश की मुस्लिम लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इसी पर एक किताब लिखी लज्जा जिसे लेकर भारी विवाद हुआ और इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस किताब के कारण तस्लीमा नसरीन को जान बचाने क लिए अपना देश छोड़ना पड़ा. कई सालों तक पश्चिमी देशों में रहने के बाद अब वे भारत के कोलकाता में रहती हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Gautreau
वेयर द वाइल्ड थिंग्स आर, मौरिस सेंडेक
युवा मैक्स बुरा बर्ताव करता है और उसे बिना भोजन के ही सोने के लिए भेज दिया जाता है. भूखा बच्चा अपने कमरे को एक रहस्यमय जंगल में बदलते देखता है. 1963 में छपी सेंडक की इस तस्वीरों वाली किताब में केवल 338 शब्द हैं तो भी इसे किताब को इसकी विषयवस्तु के कारण प्रतिबंधित किया गया. यहां तक कि इसे 3-4 साल के बच्चों के लिए मनोवैज्ञानिक नुकसान वाला बताया गया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Newscom
द वंडरफुल विजार्ड ऑफ ओज, एल फ्रांक बाउम
पहली बार साल 1900 में छपे एल फ्रांक बाउम के इस उपन्यासों की सीरीज ने अमेरिका में कई मुश्किलों का सामना किया. 1928 में इसे शिकागो के सार्वजनिक पुस्तकालयों में रखने पर रोक लगी. आरोप लगा "महिलाओँ को मजबूत नेतृत्व की भूमिका में दिखाने का." फिर 1957 में भी इन्हीं आरोपों पर डेट्रॉयट में इसे प्रतिबंधित किया गया. अब भी कई गुट यह दावा करते हैं कि ये किताब जादू टोने को बढ़ावा देती है.
मेफिस्टो, क्लाउस मान
यह एक महत्वाकांछी अभिनेता हेंड्रिक हॉफगेन की कहानी है जो नाजियों के सत्ता में आने पर उनके साथ मिल गया. मेफिस्टो पहली बार नीदरलैंड्स में 1936 में छपा और जर्मनी में 1956 तक नहीं आया. 60 और 70 के दशक में याचिका दायर की गई कि यह उपन्यास वाइमार रिपब्लिक के अत्यंत प्रभावशाली अभिनेता गुस्ताफ ग्रुंडगेन्स के जीवन की सत्य घटनाओं पर आधारित है.
हार्ट ऑफ डार्कनेस, जोसेफ कोनराड
पोलैंड में जन्मे ब्रिटिश लेखक जोसेफ कोनराड की 1902 में आई यह किताब कॉन्गो को बेल्जियम का उपनिवेश बनाने की तस्वीर बयान करती है. यह किताब आत्मकथ्यात्मक शैली में है और लेखक की जीवनी भी साथ साथ चलती है. रंगभेद और साम्राज्यवाद का जिक्र करती इस किताब को अमेरिका के कई स्कूलों में हिंसक विषयवस्तु के नाम पर प्रतिबंधित किया गया.
तस्वीर: picture-alliance / KPA Honorar & Belege
सैटनिक वर्सेज
सलमान रुश्दी की इस किताब पर भारत में प्रतिबंध लगाया गया. लेखक सलमान रुश्दी के खिलाफ कई देशों में भारी प्रदर्शन हुए और उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गयी. कई सालों के बाद उनके भारत के एक कार्यक्रम में आने को लेकर भी बड़ा विवाद हुआ.
तस्वीर: Random House
एनिमल फॉर्म, जॉर्ज ऑरवेल
1945 में ऑरवेल के इस राजनीतिक व्यंग्य में रूसी क्रांति और सोवियत इतिहास का चर्चा है. आश्चर्य नहीं कि इस पर रूस में प्रतिबंध है और सीआईए ने शीत युद्ध के दौरान इसका खूब प्रचार किया. इस उपन्यास को अब कई फीचर और एनिमेशन फिल्मों में ढाल दिया गया है इसके साथ ही कई नाटक और रेडियो कार्यक्रम भी बनाये गये हैं. अमेरिका के कई स्कूलों में इसे अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता है.
द अलकेमिस्ट, पाउलो कोएल्हो
दुनिया की यह विख्यात किताब ईरान में भी मशहूर है जबकि इस किताब के साथ ही पाउलो कोएल्हो की हर रचना पर ईरान में प्रतिबंध है. कोई आधिकारिक कारण तो नहीं बताया गया लेकिन 2009 में दिखे एक वीडियो को इसकी वजह बताया जाता है. इसमें कोएल्हो के ईरानी संपादक अराश जेजाजी को एक युवा महिला की जान बचाते देखा गया जिसकी तेहरान में चुनाव के बाद हुए प्रदर्शनों के दौरान गोली लगने से मौत हुई थी.
द डायरी ऑफ यंग गर्ल, एन फ्रैंक
दुनिया की सबसे विख्यात किताबों में से एक है द डायरी ऑफ यंग गर्ल. यह उस जर्मन लड़की की डायरी है जो बर्गेन बेल्सेन के यातना शिविर में मर गयी. 2010 में वर्जीनिया में किताब के कई सैक्सुअल पैराग्राफ को लेकर चिंता जताई गयी, इसी तरह की शिकायतें 2014 में मिशिगन से भी आई थीं.
तस्वीर: Internationales Auschwitz Komitee
लोलिता, व्लादीमिर नाबोकोव
एक अधेड़ उम्र के प्रोफेसर के मन में 12 साल की लड़की से दीवानगी की हद तक चाहत ने दुनिया भर में हंगामा मचाया. लोलिता पर ना सिर्फ फ्रांस में प्रतिबंध लगा जहां यह 1955 में छपी थी बल्कि ऑस्ट्रेलिया में भी रोक लगी. इसकी विषयवस्तु ने ब्रिटिश रूढ़िवादी नेता निगेल निकोल्सन का करियर भी खत्म कर दिया. निकोल्सन के प्रकाशन संस्थान ने ही इस किताब को ब्रिटेन में जारी किया था.
फ्रांकेस्टाइन, मैरी शेले
ब्रिटिश लेखिका मैरी शेले का यह मशहूर उपन्यास डॉ विक्टर फ्रांकेस्टाइन की कहानी है. फ्रांकेस्टाइन वैज्ञानिक थे और उन्होंने एक ऐसी रचना की जिसने धार्मिक नेताओं को विभाजित कर दिया. इस किताब ने अमेरिका के धार्मिक समुदायों के बीच जबर्दस्त बवाल मचाया और आखिरकार 1955 में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया.
द डिक्शनरी
प्रतिबंधित किताबों की इस सूची में मशहूर ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी भी शामिल है. अंग्रेजी भाषा की इस मशहूर डिक्शनरी के 10वें संस्करण को कैलिफोर्निया के कई स्कूलों से 2010 में हटा दिया गया. अभिभावकों ने शिकायत की थी कि यह इस किताब में लोगों के यौन व्यवहारों की का विस्तृत ब्यौरा है जिसे बच्चों के लिए उचित नहीं है.