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परमाणु ऊर्जा से दूर होता फ्रांस

३० नवम्बर २०१२

परमाणु ऊर्जा से कितना फायदा हो सकता है? फ्रांस में अब इस मुद्दे पर बात हो रही है. कई दशकों से फ्रांस के खास इंजीनियर परमाणु ऊर्जा की तरफदारी कर रहे थे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

कोर दे मीन नाम की अकादमी खास उन इंजीनियरों को तालीम देती है जो वहां परमाणु ऊर्जा के साथ काम करते हैं. राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद अब इसे बदलना चाहते हैं और अकादमी में नए छात्र भी परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा पर सवाल उठा रहे हैं. कोर दे मीन में पढ़े फ्रांसोआ बोर्द कहते हैं कि उनकी अकादमी में पहले कोई भी परमाणु ऊर्जा पर सवाल नहीं उठाता था लेकिन अब नई पीढ़ी पर्यावरण संरक्षण और अक्षय ऊर्जा में दिलचस्पी ले रही है.

कोर दे मीन की स्थापना 1794 में हुई और इसका मकसद था उस वक्त फ्रांस में कोयले के खानों का पूरा फायदा उठाना. दूसरे विश्व युद्ध के बाद वहां के इंजीनियर पियर गिलोमो ने राष्ट्रपति शार्ल दे गोल के साथ मिलकर परमाणु ऊर्जा पर काम शुरू किया. प्रशासन ने तय करना शुरू किया कि परमाणु ऊर्जा किस हद तक असैनिक कामों के लिए इस्तेमाल होगी और उसका कितना हिस्सा परमाणु हथियारों में लगाया जाएगा. फ्रांस ने जल्द ही अपना पहला परमाणु बम भी बना लिया.

फिर बने 58 परमाणु रिएक्टर और फ्रांस में सरकारों ने बिजली पर आधारित हीटिंग के जरिए परमाणु ऊर्जा की खपत के नए तरकीब निकाले. अकादमी के ही एक और छात्र विंसों ले बीस का कहना है, "हमें काफी वक्त तक लगता रहा कि परमाणु ऊर्जा सस्ती है और हम बिजली वाली हीटिंग बनाते रह सकते थे. यह बकवास है."

लेकिन 1986 में चेर्नोबिल परमाणु हादसे के बाद फ्रांस की जनता परमाणु ऊर्जा पर सवाल उठाने लगी. लेकिन प्रशासन बार बार कहता रहा कि चेर्नोबिल से रेडियोधर्मी विकिरण फ्रांस तक नहीं पहुंचे. उस वक्त फ्रांस में परमाणु ऊर्जा का पक्ष ले रहे लोग इस बात को छिपाना चाहते थे. 1995 और 1997 के बीच फ्रांस की पर्यावरण मंत्री कोरीन लेपाज कहती हैं कि अब भी परमाणु ऊर्जा गुट फ्रांस की संसद में काफी ताकतवर हैं. यह यूरोप की सबसे बड़ी बिजली कंपनी ईडीएफ के भी करीब हैं.

पिछले साल फुकुशिमा में परमाणु हादसे से लोग एक बार फिर परेशान हुएं. 2011 में फुकुशिमा हादसे के दौरान फ्रांस की परमाणु ऊर्जा एजेंसी एएसएन ने भी हादसे की पूरी जानकारी दी और अब राष्ट्रपति ओलांद ने तय किया है कि वह फ्रांस के सबसे पुराने रिएक्टर को 2016 तक बंद कर देंगे. फ्रांस अब पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा की ओर देख रहा है लेकिन इससे केवल 13 प्रतिशत जरूरतें पूरी होती हैं. फ्रांस में प्रशासकों का कहना है कि परमाणु ऊर्जा से फ्रांस धीरे धीरे बाहर निकल रहा है और 2025 तक वह इससे पूरी तरह मुक्त होना चाहता है. जर्मनी ने पहले ही कह दिया है कि वह 2022 तक सारे परमाणु रिएक्टर बंद कर देगा, लेकिन भारत अब जाकर परमाणु ऊर्जा को बड़े पैमाने पर कार्यान्वित करना चाहता है. भारत में कुडनकुलम रिएक्टर को लेकर विवाद और विरोध प्रदर्शन अब तक तो दबा दिए गए हैं.

एमजी/एजेए(रॉयटर्स)

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