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परमाणु डील: असली काम तो अब है

१४ जुलाई २०१५

ईरान के साथ हुई परमाणु संधि को सब लोग ऐतिहासिक बता रहे हैं. डॉयचे वेले के जमशेद फारूगी का कहना है कि इसके लिए आगे भी काफी मेहनत की जरूरत है ताकि यह समझौता जल्द ही इतिहास न बन जाए.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Hochmuth

अच्छी बात यह है कि वियना में आखिरकार सफेद धुंआ दिखा और डील अब पक्की है. लेकिन बुरी खबर यह है कि इस समझौते में अब जान फूंकनी होगी. ये कहना आसान है लेकिन करना नहीं. मुख्य चुनौती उन लोगों को भी संतुष्ट करने की है जो ईरान के साथ परमाणु विवाद में कूटनीति की जीत के खिलाफ हैं. और ऐसे विरोधियों की कमी नहीं है.

फ्रांस के पूर्व विदेशमंत्री कूशनर ने एक बार कहा था: या तो ईरानी बम बनेगा या ईरान पर बमबारी होगी. बेशक दोनों ही अज्ञात नतीजों वाले भयानक विकल्प थे, न सिर्फ ईरान के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए. वियना की वार्ता ने अब दिखाया है कि ईरान के साथ विवाद को सुलझाने के लिए तीसरा रास्ता भी संभव है. धीरज के साथ कूटनीतिक हल खोजना. सौभाग्य से अब यह रास्ता अपनाया गया है.

सैनिक हल नहीं

हालांकि ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों ने असर दिखाया लेकिन कोई हल लेकर नहीं आया. प्रतिबंधों के बावजूद ईरान के हार्डलाइनरों ने और ज्यादा सेंट्रीफ्यूज लगाए, और ज्यादा यूरेनियम का संवर्धन किया और परमाणु प्रयास तेजी से जारी रखे. इसके बाद सिर्फ दो विकल्प थे, दोनों पक्षों के लिए विन विन की स्थिति या सैनिक हस्तक्षेप. अफगानिस्तान और इराक की मिसाल विश्व समुदाय के लिए भयावह थी. इसने साफ साफ दिखाया कि सैनिक विकल्प समाधान से ज्यादा समस्याएं पैदा करते हैं.

डॉयचे वेले के फारसी विभाग के प्रमुख जमशेद फारूगी

दुनिया और खासकर वह इलाका अमेरिका और उनके साथियों के इराक पर हमले के बाद जरा भी सुरक्षित नहीं हुआ. यह दिखाता है कि ईरान के साथ कूटनीति की जीत इतनी जरूरी क्यों थी. आखिर में वियना में सवाल सिर्फ ईरान के परमाणु कार्यक्रम का नहीं रहा. साल दर साल खुले सवालों की सूची बड़ी होती गई. और आखिरकार वार्ता में तकनीकी से ज्यादा महत्वपूर्ण राजनीतिक सवाल थे, इसलिए विदेशमंत्रियों को वार्ता की मेज पर बैठना पड़ा.

महती चुनौती

आज ऐतिहासिक दिन है. न सिर्फ ईरान के लोगों के लिए एक अच्छा दिन बल्कि उनके लिए भी जो विवादों के शांतिपूर्ण समाधान में भरोसा करते हैं. लेकिन यह सिक्के का मात्र एक पहलू है क्योंकि अब दूसरी चुनौतियां सामने हैं. अब अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन पार्टी और इस्राएल लॉबी को राजी करवाना होगा. उनके अलावा ईरान और सऊदी अरब के हार्डलाइनरों को भी. यह सिर्फ कठिन काम ही नहीं है बल्कि असंभव सा लगता है.

अमेरिकी कांग्रेस के पास अब सभी समझौतों की जांच करने के लिए 60 दिन हैं और यह विरोधियों को संधि को गिराने के लिए काफी समय देता है. इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंयामिन नेतान्याहू ने समझौते को ऐतिहासिक गलती बताया है. और इस विचार के साथ वे अकेले नहीं हैं. वियना में एक टुकड़ा इतिहास लिखा गया है. अब इस पर अमल के लिए सारी ताकत लगा दी जानी चाहिए, नहीं तो जल्द ही यह समझौता इतिहास बन जाएगा.

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