परमाणु दूषित पानी समुद्र में डालने से पड़ोसी नाराज
१३ अप्रैल २०२१जापान का फैसला इस चिंता से प्रभावित है कि वह रेडियोधर्मी पानी को रखे कहां लेकिन मछुआरों और स्थानीय निवासियों की चिंता है कि समुद्री पानी अगर रेडियोसक्रिय हो जाएगा, तो उनकी रोजी रोटी और सेहत का क्या होगा. जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सूगा की सरकार के इस फैसले को मंगलवार को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी. सरकार का कहना है कि टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर दो साल में रेडियोधर्मी पानी को ट्रीट कर उसे प्रशांत सागर में छोड़ना शुरू करेगी.
फुकुशिमा पावर प्लांट के ऑपरेटर ने करीब 12 लाख टन पानी बिजली घर के परिसर में 1000 विशालकाय टैंकों में जमा कर रखा है. ऑपरेटरों का कहना है कि कैंपस में पानी को जमा करने की जगह 2022 तक खत्म हो जाएगी. हालांकि स्थानीय अधिकारियों और कुछ विशेषज्ञों की राय अलग है.
रेडियोधर्मी ट्रिटियम पर विवाद
दस साल पहले जापान ने अपनी सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना झेली थी, फुकुशिमा के दाइची परमाणु बिजलीघर में. उस समय मार्च 2011 में सूनामी की वजह से आए भारी भूकंप के बाद बिजलीघर के छह रिएक्टरों में से तीन में मेल्टडाउन हुआ था. उसके बाद से गले हुए परमाणु ईंधन को ठंडा रखने के लिए उस पर लगातार पानी डाला जा रहा है. लेकिन यह प्रदूषित पानी कंपनी के लिए सिरदर्द बना हुआ है.
हालांकि रेडिएशन से दूषित पानी को एक उन्नत लिक्विड प्रोसेसिंग सिस्टम की मदद से साफ किया जा रहा है लेकिन हाइड्रोजन के एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप ट्रिटियम को पानी से अलग नहीं किया जा सका है. सरकार और बिजली घर के संचालकों का कहना है कि कम घनत्व में होने पर ट्रिटियम इंसानी सेहत के लिए खतरा नहीं है. लेकिन टोक्यो स्थित सिटिजन कमिशन ऑन न्यूक्लियर इनर्जी का कहना है कि सरकार को ट्रिटियम को पर्यावरण में नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि वह रेडियोधर्मी पदार्थ है. इस संस्था में बहुत से विशेषज्ञ भी शामिल हैं. उन्होंने सॉलिडेशन तकनीक के इस्तेमाल या जमीन पर स्टोरेज का सुझाव दिया है. लेकिन इन सुझावों को सरकार और स्थानीय मीडिया ने नजरअंदाज कर दिया है.
फैसले की चौतरफा आलोचना
जापान सरकार की योजना की देश के अंदर और बाहर भारी आलोचना हो रही है. जापान के मछुआरों की सहकारी संस्था के प्रमुख किरोशी किशी ने कहा है कि पानी को समुद्र में डालना पूरी तरह अस्वीकार्य है. उन्होंने सरकार से दृढ़ विरोध दर्ज कराया है. कैबिनेट में फैसले से पहले किशी ने पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री सूगा से बातचीत की थी और उन्हें बताया था कि उनका संगठन पूरी तरह इस कदम के खिलाफ है.
कई नागरिक संगठनों और कुछ विशेषज्ञों ने सरकार की इस बात के लिए भी आलोचना की है कि उसने अपनी योजना के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी है और न ही समझौते की कोशिश की है. जापान की पर्यावरण संरक्षण संस्था ग्रीनपीस ने सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि यह "फुकुशिमा के अलावा जापान और एशिया प्रशांत क्षेत्र के लोगों के मानवाधिकारों और हितों की पूरी अवहेलना" करता है.
पड़ोसी देश भी कर रहे हैं विरोध
चीन ने भी "बिना दूसरे सुरक्षित उपायों पर विचार किए और पड़ोसी देशों तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सलाह लिए बगैर" अकेले फैसला लेने के लिए जापान की आलोचना की है. चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "ये बहुत ही गैरजिम्मेदाराना है और पड़ोसी देशों में लोगों के स्वास्थ्य और फौरी हितों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा." बयान में कहा गया है कि चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सारे विकास पर निकट से नजर रखेगा और अन्य प्रतिक्रिया करने का अधिकार सुरक्षित रखता है.
ताइवान के परमाणु ऊर्जा परिषद ने जापान के फैसले को अफसोसजनक बताया है और कहा है कि ताइवान के सांसदों ने भी इस तरह के कदम का विरोध किया था. जापान की क्योडो समाचार एजेंसी के अनुसार दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्रालय ने जापान के राजदूत कोइची आइबोशी को मंत्रालय तलब किया और टोक्यो के फैसले के खिलाफ विरोध दर्ज कराया. दक्षिण कोरिया के सरकारी नीति समन्वय मंत्री कू यून चोल ने कहा कि उनकी सरकार इस फैसले का सख्त विरोध करती है. इसके विपरीत अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि जापान अपने फैसले के बारे पारदर्शी रहा है और अंतरराष्ट्रीय तौर पर स्वीकृत परमाणु सुरक्षा मानकों के हिसाब से रुख अपनाया है.
एमजे/आईबी (डीपीए)