1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

परमाणु रिएक्टरों के सवाल पर जर्मन मंत्री की उलटबांसी

२५ मार्च २०११

जापान के परमाणु रिएक्टरों में संकट के बाद जर्मनी में आनन फानन में रिएक्टरों को बंद करने व उनकी व्यापक जांच का सिलसिला शुरू कर दिया. क्या यह चुनाव के मद्देनजर किया गया है? एक मंत्री को अपनी ऐसी टिप्पणी का खंडन करना पड़ा.

तस्वीर: AP

राइनर ब्रुएडरले सत्तारूढ़ मोर्चे के साझेदार एफडीपी के नेता हैं और आर्थिक मामलों के मंत्री हैं. पिछले हफ्ते जब चांसलर अंगेला मैर्केल ने घोषणा की थी कि जापान के परमाणु संकट के मद्देनजर जर्मनी के परमाणु रिएक्टरों को चालू रखने के फैसले को तीन महीनों के लिए स्थगित किया जाएगा, तो वह देश के चोटी के मैनेजरों की एक बैठक को संबोधित कर रहे थे. जर्मन उद्योग महासंघ बीडीआई की ओर से यह बैठक आयोजित की गई थी.

एक समाचार पत्र ने बैठक के विस्तृत ब्यौरे का हवाला देते हुए रिपोर्ट दी कि ब्रुएडरले ने इस बैठक में कहा कि यह निर्णय आने वाले विधान सभा चुनावों की रोशनी में लिया गया है. साथ ही उन्होंने कहा कि राजनीतिक दबाव में लिए गए निर्णय अक्सर तर्कसंगत नहीं होते. इस बैठक में देश के सबसे बड़े ऊर्जा उद्यम आरडब्लूई और ईओएन के महाप्रबंधक भी मौजूद थे और समाचार पत्र के अनुसार ब्रुएडरले का कहना था कि खासकर बड़े उद्यमों के लिए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को टालना संभव नहीं होगा.

राइनर ब्रुएडरलेतस्वीर: AP

विरोधी पार्टियों की ओर से अक्सर यह आरोप लगाया जा रहा था कि परमाणु ऊर्जा के खिलाफ व्यापक जनमत को देखते हुए सरकार ने कई प्रदेशों में होने वाले चुनावों से पहले एक राजनीतिक तुक्का छोड़ा है. उनका कहना है कि चुनाव हो जाने के बाद स्थगन के आदेश को वापस ले लिया जाएगा, हालांकि इस स्थगन के बाद देश के सात परमाणु बिजलीघरों को बंद करना पड़ा है.

इस बीच यह मामला संसद में भी उठाया गया है. वहां अपनी सफाई देते हुए राइनर ब्रुएडरले ने कहा है कि बैठक के विवरण में मंत्री के बयान की गलत ढंग से व्याख्या की गई है.

मत सर्वेक्षणों से पता चला है कि लगभग 71 फीसदी नागरिक मानते हैं कि चुनावों के मद्देनजर सरकार ने स्थगन का फैसला लिया है. मंत्री द्वारा अपनी कथित टिप्पणी के खंडन के बाद भी उनका शक खत्म नहीं होते दिखता है. रविवार को दो प्रदेशों, बाडेन-व्युएर्टेमबर्ग और राइनलैंड-पैलेटिनेट में चुनाव होंगे. इस प्रकरण से सत्तारूढ़ मोर्चे की स्थिति निश्चित ही बेहतर नहीं हुई है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ओ सिंह

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें