ईरान ने बताया है कि उसने विश्व शक्तियों के साथ 2015 की परमाणु संधि में तय संवर्धित यूरेनियम की सीमा को पार कर लिया है.
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अब ईरान ऐसा यूरेनियम बनाने की ओर अग्रसर है जिससे हथियार बन सकते हैं. अमेरिका के साथ सुलगते तनाव के बीच भी ईरान मामले का कूटनीतिक हल निकालने की अपील कर रहा है. इसके पहले ईरान संधि में तय की गई सीमा को पार करने का इरादा जता चुका था. इसके चलते यूरोप पर, अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते रुके ईरानी तेल की बिक्री के बारे में कोई रास्ता ढूंढने का दबाव बढ़ गया है. जिस संधि से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एक साल पहले बाहर निकल चुके हैं, उसके भविष्य को लेकर अब तक कुछ साफ नहीं है.
हालांकि अब तक ईरान ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिसे सुधारा न जा सके. वहीं ईरान द्वारा दी गई 60 दिनों की मियाद में भी यूरोप कुछ खास नहीं कर पाया. इस चेतावनी की समयसीमा के खत्म होने पर ही ईरान ने अपना अगला कदम उठाया है.
विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि इस पूरे विवाद में कोई छोटी गलती भी किसी बड़े संकट का आगाज हो सकती है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राष्ट्रपति ट्रंप ने कुछ दिनों पहले ईरान द्वारा अपने एक निगरानी ड्रोन को गिराए जाने के जवाब में ईरान पर बम गिराने का आदेश दिया था जिसे समय रहते वापस ले लिया गया. बार बार ट्रंप ईरान को सावधान रहने की धमकी देते आए हैं. हालांकि उन्होंने ये खुलासा नहीं किया कि वे ईरान के खिलाफ क्या कदम उठाना चाहते हैं.
कौन हैं 'ईरान के रक्षक' रेवोल्यूशनरी गार्ड्स
अमेरिका ने ईरान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए उसके विशेष सैन्य बल रेवोल्यूशनरी गार्ड को आतंकवादी संगठन घोषित किया है. चलिए जानते हैं कितने ताकतवर हैं ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स.
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स्थापना
इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कोर की स्थापना ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद हुई. इसका काम ईरान को आंतरिक और बाहरी खतरों से बचाना है.
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कितने फौजी
रेवोल्यूशनरी गार्ड सवा लाख लोगों की फौज है, जिसमें से लगभग 90 हजार सक्रिय सदस्य हैं. इस एलिट सैन्य बल के पास विदेशों में अभियान चलाने वाले कुद्स दस्ते भी हैं.
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समांतर सेना
इस्लामी क्रांति के बाद रेवोल्यूशनरी गार्ड को ईरान की सेना के समांतर एक संगठन के तौर पर खड़ा किया गया था क्योंकि उस वक्त सेना में बहुत से लोग सत्ता से बेदखल किए गए ईरानी शाह के वफादार माने जाते थे.
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विस्तार
शुरू में रेवोल्यूशनरी गार्ड ने एक घरेलू बल के तौर पर काम किया, लेकिन 1980 में जब सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला किया तो इस सैन्य बल की ताकत में तेजी से विस्तार हुआ.
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सैन्य ताकत
हमले के वक्त ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह रोहल्लाह खोमेनी ने रेवोल्यूशनरी गार्ड को उनकी खुद की जमीन, नौसेना और वायुसेनाएं दे दीं. इससे उसकी ताकत बहुत बढ़ गई.
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राज्य के भीतर राज्य
कई आलोचक कहते हैं कि रेवोल्यूशनरी गार्ड्स अब ईरान में 'राज्य के भीतर एक और राज्य' बन गए हैं. उनके पास कई तरह की कानूनी, राजनीतिक और धार्मिक शक्तियां हैं.
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जबावदेही
वैसे ईरान के संविधान में रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की भूमिका का उल्लेख किया गया है और उनकी जवाबदेही सिर्फ ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह अली खमेनेई के प्रति है.
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मिसाइल कार्यक्रम
रेवोल्यूशरी गार्ड की निगरानी में ही ईरान का बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम चलता है. पश्चिमी देशों के साथ परमाणु डील हो जाने के बाद भी उसने कई परीक्षण किए हैं.
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इस्राएल से दुश्मनी
रेवोल्यूशरी गार्ड की मिसाइलें इस्राएल तक पहुंच सकती हैं और मार्च 2016 में उसने जो बैलेस्टिक मिसाइल टेस्ट की, उस पर हिब्रू में लिखा था, "इस्राएल को साफ कर दिया जाना चाहिए."
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आर्थिक ताकत
ईरान की अर्थव्यवस्था में भी रेवोल्यूशनरी गार्ड्स का बहुत दखल है और उन पर स्मगलिंग के भी आरोप लगते हैं. ईरान के मौजूदा उदारवादी राष्ट्रपति हसन रोहानी रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की ताकत कम करना चाहते हैं.
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ताकतवर कुद्स
विदेशों में अभियान चलाने वाले रेवोल्यूशनरी गार्ड के कुद्स दस्ते में 2000 से 5000 लोग शामिल हैं और इसकी स्थापना 1989 में ईरान के सर्वोच्च नेता खोमेनेई ने की थी.
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कौन हैं सहयोगी
मेजर जनरल कासेम सोलेमानी के नेतृत्व में कुद्स लेबनान में हिज्बोल्लाह और गाजा पट्टी में हमास के साथ मिल कर काम कर रहा है. इन दोनों संगठनों को ईरान की सरकार अपना सहयोगी मानती है.
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आतंकवादी संगठन
अमेरिका ईरान को आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश मानता है. इसी के तहत रेवोल्यूशनरी गार्ड्स को उसने आतंकवादी संगठन घोषित किया है. ईरान का कहना है कि वह इस कदम का अपने तरीके से जबाव देगा.
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अन्य धड़े भी ईरान की हरकतों पर प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. ब्रिटेन ने ईरान को चेतावनी देते हुए संधि का उल्लंघन करने वाली "सारी गतिविधियां तुरंत बंद करने और वापस लेने" को कहा है. वहीं जर्मनी इस पूरे मसले पर "अत्यंत चिंतित" है. हमेशा से इस संधि के खिलाफ रहे इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ईरान पर और प्रतिबंध थोपने का सुझाव दे रहे हैं.
यूरोपीय संघ ने कहा है कि इस संधि की सभी पार्टियां ईरान की घोषणा के बाद एक आपातकालीन बैठक कर मिल सकती हैं. ईयू की प्रवक्ता माया कोचियानचिच ने कहा है कि यूरोपीय संघ इसे लेकर "बेहद परेशान" है. परमाणु संधि के अंतर्गत यूरेनियम के संवर्धन के लिए 3.67 प्रतिशत की सीमा तय की गई थी. संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) का जांच दल इस पर निगरानी रखता है. आईएईए ने कहा है कि उनका जांच दल ईरान में उसके दावों की जांच कर रहा है.
अमेरिका के ईरानी परमाणु डील से हटने के बाद ईरान पर फिर दबाव बढ़ रहा है. लेकिन ईरान ने धमकी दी है कि उस पर ज्यादा दबाव डाला गया तो दुनिया का बड़ा हिस्सा तेल को तरस जाएगा.
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अहम रास्ता
समंदर के रास्ते होने वाली दुनिया की एक तिहाई तेल आपूर्ति होरमुज जलडमरूमध्य से होती है. यह फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच पड़ता है. यह संकरा समुद्री रास्ता मध्य पूर्व के तेल उत्पादकों को प्रशांत एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और दुनिया के बाकी हिस्सों से जोड़ता है.
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होरमुज का भूगोल
सबसे संकरे बिंदु पर होरमुज की चौड़ाई 21 नॉटिकल मील है. लेकिन दोनों दिशाओं में शिपिंग लेन सिर्फ दो मील चौड़ी है. इसके पश्चिमी तट पर ईरान है तो दक्षिणी तट पर संयुक्त अरब अमीरात और ओमान का एक बाहरी इलाका है.
ईरान के रिवोल्युशनरी गार्ड्स ने धमकी दी है कि अगर अमेरिका के कहने पर दुनिया भर के देशों ने ईरान से तेल खरीदना बंद किया तो वह होरमुज के रास्ते होने वाले तेल की आपूर्ति को रोक देगा. इससे दुनिया के एक बड़े हिस्से की तेल आपूर्ति बाधित हो जाएगी.
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होरमुज की अहमियत
अमेरिका के ऊर्जा सूचना प्रशासन का अनुमान है कि 2016 में प्रतिदिन होरमुज से होकर 1.85 करोड़ बैरल तेल गुजरा, जो पूरे साल में समंदर के रास्ते होने वाली आपूर्ति का कुल 30 प्रतिशत है. 2015 के मुकाबले 2016 में इस रास्ते होने वाली तेल आपूर्ति में 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
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इनका तेल गुजरता है
सऊदी अरब, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और इराक से होने वाले तेल निर्यात का ज्यादातर हिस्सा होरमुज से होकर ही जाता है. इसके अलावा कतर से दुनिया को होने वाली तरल प्राकृतिक गैस की लगभग सारी आपूर्ति इसी रास्ते से होती है.
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टैंकर युद्ध
ईरान और इराक के बीच 1980 से लेकर 1988 तक चले युद्ध के दौरान तेल को भी हथियार बनाया गया. दोनों पक्षों ने एक दूसरे के तेल निर्यात को बाधित करने की कोशिश की थी. इसे टैंकर युद्ध के नाम से जाना जाता है.
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सुरक्षा की जिम्मेदारी
बहरीन में तैनात अमेरिकी नौसेना की फिफ्थ फ्लीट को जिम्मेदार दी गई है कि वह यहां से गुजरने वाले व्यावसायिक जहाजों की सुरक्षा करे. वैसे यूएई और सऊदी अरब होरमुज जलडमरूमध्य का विकल्प खोजना चाहते हैं.
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हादसे और हमले
इस इलाके में कई हादसे भी हुए हैं. जुलाई 1988 में एक अमेरिकी युद्धपोत ने 290 लोगों को लेकर जा रहे एक ईरानी विमान को मार गिराया था. अमेरिका ने बाद में कहा कि क्रू ने विमान को लड़ाकू विमान समझ लिया था.
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जापानी टैंकर पर हमला
जुलाई 2010 में जापान के एक तेल टैंकर एम स्टार पर होरमुज जलडमरूमध्य में हमला किया गया था. अल कायदा से जुड़े एक चरमपंथी गुट अब्दुल्ला आजम ब्रिगेड ने इस हमले की जिम्मेदारी ली.
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टैंकर पर गोलियां
मई 2015 में ईरानी सुरक्षा बलों ने सिंगापुर के झंडे वाले एक टैंकर पर गोलियां दागीं. ईरान का कहना है कि था कि इस टैंकर ने ईरान के एक तेल प्लेटफॉर्म को नुकसान पहुंचाया था. बाद में उसके कंटेनर को जब्त कर लिया गया.
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ईरान का पलटवार
3 जुलाई 2018 को ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी ने कहा कि ईरान से होने वाले तेल निर्यात को शून्य के स्तर पर लाने की अमेरिका की मांगों के जबाव में उनका देश होरमुज से होने वाली तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है.
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पहली बार धमकी
इसके अगले दिन ईरानी रिवोल्युशनरी गार्ड्स के कमांडर ने बयान दिया कि अगर उसके तेल कारोबार को ठप किया गया तो होरमुज से किसी का भी तेल नहीं गुजरने दिया जाएगा. होरमुज पर ऐसी धमकी ईरान ने पहली बार दी है.