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परमाणु हथियारों पर भारत की खिंचाई

१६ अप्रैल २०१०

परमाणु सुरक्षा पर अपने लेखों में जर्मन अखबारों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान परमाणु हथियारों का अपना भंडार बढ़ाते जा रहे हैं. परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तख़त में उनकी दिलचस्पी नहीं है.

तस्वीर: AP

वॉशिंगटन में परमाणु सुरक्षा को लेकर शिखर सम्मेलन कुछ ही दिन पहले समाप्त हुआ और सभी भाग लेने वाले देशों के राजनेता इस बात पर सहमत थे कि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना है. जर्मनी के सबसे मशहूर दैनिकों में से एक फ्रांकफुर्टर आलगेमाईने त्साईटुंग का कहना है,

पाकिस्तान और भारत, दोनों देश परमाणु हथियारों के अपने भंडार बढ़ाते ही जा रहे हैं और वे परमाणु अप्रसार संधि को लेकर घटिया शब्द ही इस्तेमाल करते आए हैं. लेकिन फिर भी दोनों पर किसी तरह के प्रतिबंध लगाना मुमकिन नहीं है. पाकिस्तान की आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय युद्ध में भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसलिए उसे अलग थलग नहीं किया जा सकता है. और भारत एक रणनैतिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है और उसे अमेरिका के साथ परमाणु संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद वैसे ही एक मान्यता प्राप्त परमाणु शक्ति के रूप में देखा जा रहा है.

जर्मनी के आर्थिक दैनिक फाईनैंशियल टाईम्स जर्मनी का इसी मुद्दे को लेकर कहना है कि भारत अपने लिए सभी विकल्प खुले रखना चाहता है. अख़बार ने टिप्पणी की है,

भारत का मानना है कि जिसने परमाणु अस्त्र निषेध संधि पर हस्ताक्षर किए हैं उसका खुद का कसूर है. और इसलिए भारत ने अमेरिका के प्रस्ताव को लेकर ज़्यादा उत्साह नहीं दिखाया कि वह भी इस संधि पर हस्ताक्षर करे. इसके अलावा भारत अभी भी इरानी-पाकिस्तानी गैस पाईपलाइन प्रोजेक्ट में शामिल होने के बारे में सोच रहा है. और यह तब भी जब अमेरिका उससे मांग करता आ रहा है कि वह ऐसा न करे.

फ्रांस के ले मौंद डिप्लोमाटिक अख़बार के जर्मन संस्करण ने भारत के आर्थिक विकास पर अपनी राय प्रकट की है. अख़बार का कहना है,

विश्व आर्थिक संकट की शुरुआत में मानना था कि भारत को इसलिए इतना नुकसान नहीं पहुंचेगा क्योंकि वह वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इतना निर्भर नहीं है और देश के भीतर मांग हमेशा बनी रहेगी. लेकिन यह राय ग़लत निकली. सकल घरेलू उत्पाद कम तो नहीं हुआ है, लेकिन अब बहुत धीरे धीरे बढ़ रहा है. लेकिन खासकर निर्यात के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या बहुत घटी है क्योंकि निर्यात भी 30 प्रतिशत कम हुए हैं. और कृषि क्षेत्र संकट से उभर नहीं पा रहा है. नए जॉब सिर्फ कम वेतन वाले ही उभरे हैं.

पाकिस्तान की नैशनल एसेंबली ने संविधान को लेकर कई संशोधनों को पारित किया है. खासकर राष्ट्रपति के पद को अब प्रतिनिधि पद के रूप में देखा जाएगा और प्रधानमंत्री और संसद के अधिकार बढ़ेंगे. फाईनैंशियल टाइम्स जर्मनी का कहना है,

अब एक व्यक्ति का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा है - आसिफ़ अली ज़रदारी का. उनसे संसद को भंग करने, प्रधानमंत्री को अपने पद से हटाने और सेनाध्यक्ष को नामांकित करने के अधिकार छीन लिए गए हैं. अब तक राष्ट्रपति ज़रदारी को सिर्फ राष्ट्रपति का विशेषाधिकार ही कई मामलों में बचा पाया है. लेकिन उनके सबसे कट्टर प्रतिस्पर्धी पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ इसे भी उनसे छीनने में लगे हैं और नए संशोधन के साथ वे अपना लक्ष्य पाने में काफी आगे बढे हैं.

और अंत में श्रीलंका- राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे का सरकारी गठबंधन 8 अप्रैल को हुए संसदीय चुनावों को जीतने में सफल रहा. राजपक्षे के गठबंधन को 225 सीटों में से कम से कम 117 मिली हैं. समाजवादी अख़बार नोएस डोएत्शलांड का कहना है,

अब तक यह भी मुमकिन लग रहा है कि राष्ट्रपति राजपक्षे का गठबंधन दो तिहाई बहुमत तक हासिल करने में सफल रहेगा. राष्ट्रपति के लिए फिर कुछ संवैधानिक संशोधनों को पारित करने का रास्ता साफ हो जाएगा. लेकिन स्पष्ट है कि संसदीय चुनावों के इस परिणाम से सत्ता पर उनका कब्ज़ा और बढा है. तमिल अल्पसंख्यकों की आशा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब कोलंबो पर दबाव बढाएगा ताकि राजपक्षे अपनी शक्ति को दोनों समुदायों के बीच विवाद के एक ईमानदार और टिकाऊ हल ढूंढने के लिए इस्तेमाल करें और उसे पूरा भी करें. यानि राष्ट्रपति के हाथ में शायद वह जादू की छड़ी है जो 30 साल के बाद सिंघली बहुमत और तमिल अल्पसंख्यकों के बीच के विवाद को समाप्त कर सकती है.

संकलन: प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन: महेश झा

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