दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ ही पराली जलाने का मुद्दा भी सामने आ जाता है. हवा की गुणवत्ता को खराब होने के लिए पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता है. किसान अपनी लागत कम करने के लिए पराली जला देते हैं.
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धान की कटाई शुरू हो चुकी है. रबी के सीजन में आम तौर पर कंबाइन से धान काटने के बाद प्रमुख फसल गेंहू के समय से बोआई के लिए पराली (डंठल) जलाना आम बात है. चूंकि इस सीजन में हवा में नमी अधिक होती है. लिहाजा पराली से जलने से निकला धुआं धरती से कुछ ऊंचाई पर जाकर छा जाता है. जिससे वायु प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है. कभी-कभी तो यह दमघोंटू हो जाता है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल) ने पराली जलाने को दंडनीय अपराध घोषित किया है. किसान ऐसा न करें इसके लिए कई सरकार भी लगातार जागरुकता अभियान चला रही है. ऐसे कृषि यंत्र जिनसे पराली को आसानी से निस्तारित किया जा सकता है, उनपर 50 से 80 फीसद तक अनुदान भी दे रही है.
बावजूद इसके अगर आप धान काटने के बाद पराली जलाने जा रहे हैं तो ऐसा करने से पहले कुछ देर रुकिए और सोचिए. क्योंकि पराली के साथ आप फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जलाने जा रहे हैं. यही नहीं भूसे के रूप में बेजुबान पशुओं का हक भी मारा जाता है.
कृषि विषेषज्ञ गिरीष पांडेय बताते हैं कि शोधों से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एनपीके की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है. वे कहते हैं कि जलाने की बजाय अगर खेत में ही इनकी कम्पोस्टिंग कर दें तो मिट्टी को एनपीके की क्रमश: 4, 2 और 10 लाख टन मात्रा मिल जाएगी. भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टीरिया, फफूंद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वॉर्मिंग में कमी बोनस होगी.
सैर.. जर्मनी की खूबसूरत नदियों की
यूरोप की बात आती है तो स्विट्जरलैंड और इंग्लैंड भारत में सबसे ज्यादा जाने जाते हैं. शायद इसलिए क्योंकि बॉलीवूड फिल्मों की शूटिंग वहां ज्यादा हुई है. लेकिन जर्मनी की खूबसूरती भी कम नहीं. एक नजर यहां की सुंदर नदियों पर.
तस्वीर: Imago Images/A. Hettrich
मनमोहक मोजेल
जर्मनी की सबसे खूबसूरत नदियों का जिक्र होगा, तो मोजेल सबसे ऊपर होगी. कोबलेंस की हसीन घाटियों से होकर गुजरने वाली मोजेल के किनारे अंगूर की खेती होती है और यहां पैदा होने वाले अंगूर भी बहुत लोकप्रिय है.
तस्वीर: Fotolia/Jörg Hackemann
रुअर का दुखड़ा
देश की औद्योगिक बस्ती में कभी रुअर नदी का जलवा हुआ करता था. इसके किनारे जहाज भी चला करते थे. लेकिन विकास के चक्कर में सफाई पीछे छूट गई. अब इस पर फिर से ध्यान दिया जा रहा है.
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इठलाती एगर
ऑस्ट्रिया में आल्प पहाड़ियों से निकलने वाली एगर नदी दक्षिण जर्मनी की सबसे अहम नदियों में है. बाद में यह डैन्यूब में जाकर मिल जाती है. इसे ऑस्ट्रिया और बवेरिया के बीच का विशाल गेट कहा जा सकता है.
तस्वीर: Fotolia
डैन्यूब की डगर
मध्य यूरोप की बेहद अहम नदी डैन्यूब से होकर कई अहम रूट जाते हैं. यह नदी 10 देशों से होकर गुजरती है, जिनमें रोमानिया से लेकर हंगरी और ऑस्ट्रिया होते हुए जर्मनी तक शामिल हैं.
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कलकल करती ओडर
जर्मनी में शहरों का नाम उनके पास बहने वाली नदियों पर पड़ता है. जर्मनी में एक कम चर्चित फ्रैंकफर्ट शहर है, जो इस नदी के पास बसा है. उसे फ्रैंकफर्ट अम ओडर कहते हैं. नदी मध्य यूरोप में अहम मानी जाती है.
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स्पेशल है श्प्रे
बर्लिन शहर इसी श्प्रे नदी के किनारे बसा है. यहां से ली गई एक खूबसूरत तस्वीर में वह टेलीविजन टावर भी दिख रहा है, जो हाल के दिनों में बर्लिन की पहचान बन गया है.
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अलबेला एल्बे
चेक गणराज्य में करकोनोजे पर्वत से निकलने वाली नदी जर्मनी होते हुए उत्तर सागर में मिल जाती है. इसके आस पास छोटे छोटे द्वीप हैं, जो काफी खूबसूरत हैं.
तस्वीर: Christoph Gunkel
नामचीन नेकर
लंबी नदी नेकर कोई 370 किलोमीटर का रास्ता तय करती है. यह ब्लैक फॉरेस्ट के पास से होकर गुजरती है और इसकी घाटी में कई खूबसूरत बस्तियां हैं. जहां आबादी के साथ उद्योग भी काफी है.
तस्वीर: Farshad Youssefi
शानदार माइन
यह नदी बड़े वाले फ्रैंकफर्ट के पास है, जर्मनी की औद्योगिक राजधानी और यहां का सबसे बड़ा एयरपोर्ट. दरअसल इस शहर का पूरा नाम भी फ्रैंकफर्ट अम माइन है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रंगबिरंगी राइन
जर्मनी में राइन को 'पिता' का दर्जा हासिल है और यह देश की सबसे बड़ी नदी है. दूर तक बहने वाली राइन की कई सहायक नदियां भी हैं.
तस्वीर: Landeshauptstadt Mainz
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अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत इतनी घटेगी और लाभ इतना बढ़ जाएगा. एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किलो ग्राम उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं. प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है. सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए मान लें तो डंठल के रूप में 7,200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है. बाद में यही चारे के संकट की वजह बनता है.
पांडेय के मुताबिक फसल अवशेष से ढंकी मिट्टी का तापमान सम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं. अवशेष से ढंकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है. इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है. साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है.
पांडेय कहते हैं कि डंठल जलाने की बजाय उसे गहरी जुताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें. शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं.
विवेक त्रिपाठी (आईएएनएस)
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