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परेशान पौधे, जीव और किसान

४ मार्च २०१४

दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया के किसान पेड़ पौधों और जीवों का व्यवहार देखकर मौसम की सटीक भविष्यवाणी करते रहे. वो चिड़िया और लोमड़ी के व्यवहार से बता देते कि कब कितनी बारिश होगी. लेकिन अब ये किसान भी गड़बड़ा रहे हैं.

तस्वीर: Reuters

बोलिविया में एंडीज पर्वतमाला के आस पास बसने वाले किसान सदियों से बिना किसी मशीन के मौसम का अंदाजा लगाते आए हैं. अगर पानी में उगने वाले पौधे गर्मियों के अंत में सूखे तो मतलब है कि अगले कुछ महीनों में बारिश नहीं होगी. अगर पहाड़ की चोटी पर लोमड़ी पूरी ताकत से आवाज दे तो मतलब है अचानक बारिश होगी.

इसी तरह अगर टिटिकाका नदी के तट पर कुइली कुइली नाम के पक्षी के घोंसले से भी बारिश और तालाब में जल भराव का अंदाज मिलता रहा. घोंसले के आधार पर किसान अंदाजा लगाते रहे कि झील का पानी कितना बढ़ेगा और कितनी बारिश होगी. इन्हीं जानकारियों के आधार पर वो कई सदियों से फसलें लगाते रहे. चिड़ियाओं के अंडे देने के व्यवहार से वो तय करते रहे कि आलू बोना है या किनोआ.

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि कुदरत को इस ढंग से पढ़कर वो मौसम की सही भविष्यवाणी करते हैं. वैज्ञानिक इसे कला को बायो इंडिकेटर कहते हैं. सरकार भी किसानों से ऐसे मौसम संबंधी आंकड़े जुटाती है.

वर्षावनों में भी जलवायु का असरतस्वीर: Reuters

लेकिन हाल के समय में इन किसानों के लिए मौसम के संकेत पढ़ना मुश्किल हो रहा है. जलवायु परिवर्तन की वजह से पौधों और जीव जंतुओं का व्यवहार बदल रहा है. फिलहाल इस पर कोई शोध नहीं हुआ है कि कैसे जलवायु परिवर्तन धरती के दूसरे बाशिंदो को बदल रहा है. बोलिवियन माउंटेन इंस्टीट्यूट के प्रमुख डिर्क होफमन कहते हैं, "पहले चार महीने तक बारिश होती थी, अब ये समय घट गया है लेकिन बारिश की मात्रा में कमी नहीं आई है." उन्हें लगता है कि शायद तापमान में आता अंतर जीवों का व्यवहार बदल रहा है. जीव खुद भी असमंजस में पड़ रहे हैं.

इसका असर किसानों पर भी पड़ रहा है. देश के दक्षिणी इलाकों में रहने वाले किसानों को बीते साल एक बार भी पहाड़ से बोलती देती लोमड़ी नहीं दिखाई पड़ी, लेकिन अचानक बारिश कई बार हुई. इस साल भी लगातार दूसरी बार पानी में उगने वाली घास गर्मियों में देर से सूखी, यानी सूखा पड़ेगा. कुइली कुइली चिड़िया के घोंसले भी अब नहीं दिखाई दे रहे हैं.

सरकार की जोखिम प्रबंधन एजेंसी के निदेशक लुसियो टिटो कहते हैं कि किसानों के व्यावहारिक ज्ञान को विज्ञान के साथ मिलाया जाना चाहिए. हो सकता है ऐसा करने से जलवायु के सापेक्ष जीव जंतुओं के व्यवहार परिवर्तन समझ में आए.

ओएसजे/एएम (एपी)

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