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पर्दे के पीछे का सच

६ जून २०१३

कैमरे की चकाचौंध, चाहने वालों की भीड़, लंबी गाड़ियां, महंगे कपड़े और पैरों के नीचे लाल कालीन. शानो शौकत से भरी फिल्मी दुनिया की सच्चाई यही है या कुछ और? क्यों अपनी जान ले बैठते हैं कलाकार?

तस्वीर: picture-alliance/dpa

19 साल की उम्र में दिव्या भारती की आत्महत्या जैसी दिखने वाली मौत बाद में हादसा करार दी गई. लेकिन इस हादसे के पीछे भी उनके जीवन से जुड़े अवसाद की बात सामने आई. मॉडल नफीसा जोसेफ, विवेका बाबाजी और अब 25 साल की उम्र में बॉलीवुड अभिनेत्री जिया खान ने खुद अपने ही हाथों जीवन की डोर काट दी. इस हादसे पर फिल्मी हस्तियों से आई प्रतिक्रियाओं में यह बात भी सामने आई कि जिया पिछले काफी समय से अवसाद से गुजर रही थीं. करियर की शुरुआत अमिताभ बच्चन के साथ करने के बाद भी जिया के पास पिछले तीन साल से कोई काम नहीं था.

किस बात का अवसाद

बॉलीवुड में शिल्पा शेट्टी और ऋतिक रोशन जैसे कामयाब सितारों से लेकर कम चर्चित और नए कलाकारों के साथ बतौर पब्लिसिस्ट काम कर चुके डेल भगवागर ने कैमरे के पीछे सितारों के जीवन पर डॉयचे वेले के साथ खुल कर बात की. भगवागर मानते हैं कि एक आम आदमी के मुकाबले फिल्मी सितारों पर दस गुना ज्यादा दबाव होता है.

डेल भगवागर शिल्पा शेट्टी और शर्लिन चोपड़ा के साथ भी बतौर पब्लिसिस्ट काम कर चुके हैं.तस्वीर: privat

भीतर से हर इंसान एक जैसा ही होता है. उनके पास काम हो या ना हो लोगों की उनसे उम्मीद यही जुड़ी रहती है कि वे हमेशा वैसे ही दिखते रहें जैसे वे पर्दे पर दिखते हैं. कहीं ना कहीं उन्हें इस बात का एहसास रहता है कि वे एक दोगली और नकली जिंदगी जी रहे हैं. यह दबाव ही कभी घबराहट की शक्ल ले लेता है, कभी अवसाद के रूप में जमा हो जाता है और कई बार सितारे इसी दबाव से भागने के लिए आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. भगवागर ने बताया जिन कलाकारों के साथ उन्होंने काम किया है उनमें भी उन्होंने कई बार यह घबराहट महसूस की है. सितारों का जीवन बाहर से जितना आसान और खुशहाल दिखता है अंदर से यह उतना ही असुरक्षित महसूस कराने वाला है.

वह मानते हैं कि जिया जैसे कम कामयाब कलाकारों के साथ यह वजह और भी बड़ी हो सकती है कि उनका मुकाबला सिर्फ सफल अभिनेत्रियों के साथ तक ही सीमित नहीं रह जाता, बल्कि हर आने वाली नई अभिनेत्री उन्हें टक्कर देती है.

सहारा कोई नहीं

फिल्मी अवॉर्ड समारोहों की तस्वीरें और टीवी पर कार्यक्रम देख कर भले ही लगता हो कि उस दुनिया में काम करने वाले आपस में बड़ा हिलमिल कर रहते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है. आपसी प्रतिस्पर्धा के बीच कोई किसी का बहुत गहरा मित्र हो ऐसा भी कम ही होता है. यानी आमतौर पर परिवार से दूर रह रहे इन कलाकारों के पास परेशानी और अवसाद के समय साथ देने वाला कोई भी नहीं होता. भगवागर ने बताया कि कुछ संगठन फिल्म जगत में ऐसे जरूर हैं जो कलाकारों के कठिन समय में उनकी मदद के लिए बनाए गए हैं. लेकिन उनकी मदद भी केवल आर्थिक मतभेद में निबटारे जैसे मामलों में होती है. भावनात्मक साथ के लिए किसी के ना होने से भी दबाव को संभालना मुश्किल हो जाता है.''

मॉडल नफीसा जोसेफ ने भी 2004 में मुंबई में अपने घर में फांसी लगा कर जान दे दी थी.तस्वीर: Sebastian D`Souza/AFP/Getty Images

लड़कियों पर ज्यादा दबाव

भगवागर ने कहा, ''पुरुष कलाकारों के मुकाबले महिलाओं पर दबाव कहीं ज्यादा होता है, सिर्फ कास्टिंग काउच जैसे कारणों से नहीं बल्कि इसलिए भी कि अपनी छवि के अनुसार उन्हें अपने पहनने ओढ़ने और रहन सहन पर भी पुरुषों से कहीं ज्यादा खर्च करना पड़ता हैं. आर्थिक स्थिति बिगड़ना भी अवसाद बढ़ाता है.

कई बार कारण सिर्फ काम नहीं होता. जब भगवागर मॉडल विवेका बाबाजी से जिया खान की आत्महत्या की घटना की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि दोनों ने एक ही तरह खुद को छत से लटका कर जान दी. विवेका की मृत्यु के समय भगवागर ने ही उनके परिवार की ओर से मीडिया के सवालों के जवाब दिए थे. उन्होंने बताया कि विवेका से मिलने वाला अंतिम व्यक्ति उनका बॉयफ्रेंड था. करियर के अलावा विवेका के संबंधों की उलझनों को भी उनकी मौत के लिए जिम्मेदार माना गया. अभी तक सामने आए तथ्यों के आधार पर भगवागर ने कहा कि जिया से फोन पर बात करने वाला अंतिम व्यक्ति भी उनका बॉयफ्रेंड था. उनके साथ जिया के संबंध पिछले कुछ दिनों से खराब हो चले थे. ऐसी स्थिति में संबंध खराब होना भी एक और विफलता लगती है और कलाकार ऐसा कदम उठा बैठते हैं.

यानि हमेशा जो दिखता है वही सच नहीं होता. ऐसा बहुत कुछ है फिल्मी दुनिया से जुड़ा जो हमें पर्दे पर इन कलाकारों की आंखों में नहीं दिखता. आखिर हैं तो ये कलाकार ही जिनका काम ही है अभिनय करना, दुख और सुख सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही चेहरे पर दिखाना.

रिपोर्ट: समरा फातिमा

संपादन: आभा मोंढे

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