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पर्यटन के चलते विनाश के कगार पर धरोहर

९ मार्च २०११

सन 2010 में कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर व संलग्न पार्क को देखने साढ़े ग्यारह लाख पर्यटक आए. इससे हुई आमदनी से पर्यटन उद्योग जगत खुश है, लेकिन मानव संस्कृति की अमूल्य धरोहर खतरे में है.

अंकोरवाटतस्वीर: J. Sorges

हमारी आंखों के सामने ही धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है इतिहास - कुछ एक सालों के अंदर उसका एक हिस्सा नहीं रह जाएगा. अन्य प्राचीन स्मारकों की तरह कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिरों के अहाते में भी यह अहसास बरबस पैदा होता है. यहां फ्नोम बाखेंग या सूर्यास्त मंदिर के सामने पर्यटक बिना किसी नियंत्रण के हर कहीं आ-जा सकते हैं, संस्कृति को कैमरे में कैद करने की ललक के साथ वे ऐतिहासिक बनावटों पर मनमाने ढंग से घूमते हैं, अमूल्य मूर्तियों और नक्काशियों को नंगी उंगलियों से परखते हैं. प्राचीन स्मारक अपनी चमक खो चुके हैं - क्या यह समय की थपेड़ है, या पर्यटन द्वारा किया गया बलात्कार?

अमेरिका से आए 33 साल के पर्यटक मार्कस वेल्ष कहते हैं, "जब मैं इन पत्थरों के ऊपर से चलता हूं, तो लगता है कि इतिहास की गोद में होना एक अनोखा अनुभव है. लेकिन कुछ एक सालों में इनकी क्या हालत हो जाएगी?"

विकासशील देशों में सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के साथ जुड़ी हुई अमेरिकी संस्था ग्लोबल हेरिटेज फंड का कहना है कि नियंत्रण के अभाव के कारण अंकोर गंभीर खतरे में है. संस्था के कार्यकारी निदेशक जेफ मॉर्गन कहते हैं, "ये खंडहर 600 से 800 साल तक पुराने हैं और निश्चित रास्ते तय करते हुए, उन्हें ढकने की व्यवस्था करते हुए व गंदगी से उन्हें बचाते हुए पर्यटन से उनकी रक्षा करनी पड़ेगी."

अंकोर प्रांगण की देखभाल के लिए अप्सरा ऑथरिटी नामक संस्था जिम्मेदार है. इन धरोहरों की रक्षा के लिए उसकी ओर से कमजोर हो चुके बनावटों को रस्सों से घेर दिया गया है. इसके अलावा 270 टूरिस्ट गार्डों की व्यवस्था की गई है, जो इसकी देखरेख करते हैं कि पर्यटक इन धरोहरों को नुकसान न पहुंचाएं. अंकोर के लिए संस्था के जिम्मेदार विभाग के डिप्टी डायरेक्टर न्गेथ सोथी कहते हैं कि संरक्षण की समस्याओं की चर्चा के लिए उनकी संस्था साल में दो बार यूनेस्को के प्रतिनिधियों और विदेशी विशेषज्ञों के साथ बैठकों का आयोजन करती है.

ढह रही है चीन की दीवार

चीन की दीवारतस्वीर: AP

चीन की ऐतिहासिक दीवार की हालत भी इससे बेहतर नहीं है. 8800 किलोमीटर लंबी दीवार पर्यटकों की ग्राफितियों या दीवार लेखन से भरी पड़ी है. लोग अक्सर यहां कैंपिंग के लिए आते हैं और कूड़ा छोड़ जाते हैं. ब्रिटेन के विलियम लिंडसे लगभग 25 साल से इस दीवार के संरक्षण के काम में जुटे हुए हैं. वह कहते हैं, "सिर्फ 550 किलोमीटर लंबी दीवार अभी तक पूरी तरह से दुरुस्त है, यानी दीवार की बनावट है, उस पर बने बुर्ज सही सलामत हैं."

दीवार की रक्षा के लिए चीन सरकार की ओर से कुछ कदम उठाए गए हैं, मिसाल के तौर पर दीवार से 500 मीटर की दूरी तक निर्माण प्रतिबंधित है. लेकिन लिंडसे का कहना है कि ये कदम पर्याप्त नहीं है. वह कहते हैं, "यह सिमटते इतिहास की दास्तान है."

इंडोनेशिया के बोरोबुदुर मंदिर की मिसाल दिखाती है कि बढ़ते पर्यटन के बावजूद स्मारक संरक्षण संभव है. 9वीं सदी के इस बौद्ध मंदिर को देखने के लिए हर साल 20 लाख पर्यटक आते हैं. यहां संरक्षण के लिए जिम्मेदार अधिकारी मार्सिस सुतोपो कहते हैं, मंदिर के प्रांगण में धूम्रपान नहीं किया जा सकता. कड़ी सोल वाले जूते पहनकर आना भी मना है. यहां की स्थिति के बारे में हर दो साल पर यूनेस्को को रिपोर्ट दी जाती है. ग्लोबल हेरिटेज फंड की राय में बोरोबुदुर की स्थिति कुल मिलाकर अच्छी है.

इजहारे उलफत से परेशान ताजमहल

तस्वीर: Fotolia/Rudolf Tepfenhart

ताजमहल को देखने सबसे अधिक पर्यटक आते हैं, साल में लगभग 30 लाख. पर्यटकों के अलावा प्रदूषण से भी इसे नुकसान पहुंच रहा है. 1990 के दशक के अंत में स्मारक के नजदीक ट्रैफिक व कारखानों को रोकने व हटाने के लिए कदम उठाए गए, लेकिन तब तक काफी नुकसान पहुंच चुका था. सन 2007 में यहां व्यापक रूप से मरम्मत का काम किया गया, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ताजमहल को बचाने के लिए पर्यटकों की संख्या घटानी पड़ेगी.

आगरा के स्मारक संरक्षण कर्मी राजन किशोर कहते हैं कि पैरों के दाग से संगमरमर के बने स्मारक के हिस्सों को काफी नुकसान पहुंच रहा है. इसे रोकने के लिए मुख्य स्मारक में प्रवेश के लिए शुल्क में भारी वृद्धि की जानी चाहिए.

एशिया के स्मारकों के हालात अच्छे नहीं हैं. जेफ मॉर्गन का कहना है कि बेहतर प्रबंधन के जरिये पर्यटकों की बढ़ती संख्या से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: वी कुमार

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