ये हाल रहा तो कैसे बचेगा पर्यावरण
२२ जनवरी २०१८बांग्लादेश में एक हजार से ज्यादा नदियां और नहरें हैं. मौसमी बदलाव के कारण बंगाल की खाड़ी में समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है. तूफान और भारी बारिश अक्सर आने लगे हैं. बांग्लादेश की धरती सिमट रही है. तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को आशंका है कि उनका घर जल्द ही डूब जाएगा. वे नहीं जानते जब ऐसा होगा तो वे कहां जाएंगे. इलाके में रहने वाले शंकर कर्मोकार बताते हैं, "मैं यहां पैदा हुआ. मैंने दो से ढाई हजार परिवारों को समंदर से आने वाली आपदाओं में अपना घर खोते देखा है." गांववालों का कहना है कि उन्होंने किनारों को फिर से पक्का करने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
महफुजुल हक अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार रोधी नागरिक संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के लिए काम करते हैं. उन्हें इस तरह की कहानियां अक्सर सुनने को मिलती है. वह जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलाव के कारण दी जाने वाली राहत, इलाके में अनुकूलन के उपायों और उनकी वित्तीय व्यवस्था के विशेषज्ञ हैं. बांग्लादेश की ज्यादातर जमीन अब समुद्र तल से कुछ ही मीटर ऊपर है. वे बताते हैं, "जलवायु संरक्षण के लिए धन बांग्लादेश आ रहा है लेकिन उतना नहीं जितनी हम उम्मीद कर रहे हैं. अब तक हमें सब मिलाकर 70 करोड़ डॉलर मिले हैं. लेकिन इसमें बांग्लादेश सरकार की हिस्सेदारी ही सबसे ज्यादा है."
अब तक 40 करोड़ डॉलर खर्च हो चुके हैं. इनमें स्कूल के निर्माण जैसी परियोजनाओं का खर्च भी शामिल है, आंधी और बाढ़ जैसी आपदा की स्थिति में लोग यहां रह भी सकते हैं. ऐसी इमारतें बनाना महंगा हैं. और अकसर ये वहां नहीं हैं जहां इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इस बात पर नजर रखती है कि पैसा कहां और कैसे खर्च हो रहा है. बारगुना जिले में तट के करीब भी एक स्कूल बनाया जा रहा है जो आपदा के समय शिविर के रूप में भी इस्तेमाल होगा. समस्या यह है कि स्कूल इलाके के ज्यादातर गांवों से बहुत दूर है और यहां ना तो कोई छात्र नजर आता है ना शिक्षक.
सवाल है कि क्या लाखों रुपये बर्बाद हो गए और अगर हां तो क्यों? महफुजुल हक कहते हैं, "कभी कभी यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि पैसा सभी मामलों में ठीक तरह से खर्च हो रहा है या नहीं. हालांकि यह एक अलग तरह का मामला है जिसमें हम देख रहे हैं कि स्कूल का ठीक से इस्तेमाल नहीं हो रहा है." कई लोगों को हैरानी होती है कि आखिर स्कूल बनाने के लिए इसी जगह को क्यों चुना गया. हक या तो नहीं जानते या फिर वह बताएंगे नहीं. बांग्लादेश में फैसले बिना किसी बहस के लिए जाते हैं और वहां आलोचना करना बेहद खतरनाक है. कई मानवाधिकार संगठन इसकी ओर ध्यान दिला चुके हैं.
ढाका में जर्मन राजदूत थॉमस प्रिंस अपने मन की बात कहने से नहीं डरते. बांग्लादेशी भी उनकी बात से सहमत होंगे. हालांकि उनकी ऐसा कहने की हिम्मत नहीं होगी. थॉमस प्रिंस बताते हैं, "मैं मानता हूं कि भ्रष्टाचार इस देश के विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है. इस देश को एक साफ सुथरी सरकार और स्वच्छ नागरिक संस्थाओं की जरूरत है. और इससे भी पहले जरूरत है एक राजनीतिक इच्छाशक्ति की जो इसे मुमकिन कर दिखाए. लेकिन मुझे इसके संकेत नहीं दिखते.
बांग्लादेश के कई बाजार पानी के बहुत करीब हैं. जिन इमारतों में ये बाजार बने हैं वे बाढ़ और चक्रवात का सामना नहीं कर सकते. यहां ऐसे शरण स्थलों की जरूरत है जो या तो काफी ऊंचे हों या फिर ऐसी ऊंची जगह पर बने हो जहां बाढ़ का पानी नहीं पहुंचे. विदेशी दाता धमकी दे रहे हैं कि अगर प्रशासन ने भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाई तो वे बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी परियोजनाओं से पैसा वापस ले लेंगे. ट्रांसपेरेंसी के महफुजुल हक कहते हैं, "सरकार इन सब चीजों से सीख ले रही है और वह इन सब चीजों को अपनी योजनाओं, नीतिगत मामलों, दस्तावेजों में शामिल कर रही है. बांग्लादेश उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन का खतरा सामने है और ऐसे में उसे मदद की सख्त जरूरत है ताकि वह खुद को मौसमी बदलाव के लिए ढाल सके.