1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पर्यावरण बचाने की एक और कोशिश

११ नवम्बर २०१३

वक्त निकलता जा रहा है और औद्योगिकरण की दौड़ में दुनिया भर से ज्यादा जहरीली गैसें निकल रही हैं. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का महासम्मेलन आज से वॉरसा में शुरू हो रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

समझौते के लिए दुनिया भर के देशों में सहमति के आसार तो इस बार भी नहीं हैं लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह तापमान बढ़ने की बात सामने आई है, इसकी जरूरत और शिद्दत से नजर आने लगी है. दो साल पहले 2011 में डरबन में हुए सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बात पर राजी हो गया था कि जहरीली गैसों के उत्सर्जन के मुद्दे पर सभी 194 सदस्यों को रजामंद होना चाहिए. तय हुआ कि यह समझौता पेरिस में होने वाले 2015 सम्मेलन तक हो जाएगा और 2020 से इसे लागू कर दिया जाएगा.

पर्यावरण जानकारों का कहना है कि वॉरसा में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन शुरू होते ही इस समझौते पर बातचीत शुरू हो जाएगी ताकि इस जटिल मुद्दे पर किसी तरह सहमति बन पाए. और इसका हाल 2009 के कोपेनहेगन सम्मेलन जैसा न हो, जो बुरी तरह विफल साबित हुआ था. उस सम्मेलन में भी दुनिया भर के देशों के प्रतिनिधियों ने समझौते की बात कही थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया था.

इंसानी गलतियों के कारणतस्वीर: JOSEPH EID/AFP/Getty Images

हैयान तूफान के बीच

जलवायु परिवर्तन पर यह सम्मेलन ऐसे वक्त में हो रहा है, जब फिलिपीन्स और आस पास के देश हैयान तूफान का कहर झेल रहे हैं. न्यू यॉर्क के ग्लोबल जस्टिस इकोलॉजी प्रोजेक्ट की निदेशक अना पीटरमन का कहना है, "यह तूफान वॉरसा में शामिल हो रहे लोगों के लिए एक चेतावनी साबित हो सकता है क्योंकि दशकों से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है."

अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण के मामले में सिर्फ क्योटो प्रोटोकॉल ही लागू हो पाया है. सबसे अहम सवाल यह है कि क्या भारत, रूस और अमेरिका जैसे बड़े देश नए समझौते पर सहमति की हामी भरते हैं. 11 से 22 नवंबर तक चलने वाले पोलैंड के सम्मेलन में दूसरा बड़ा सवाल यह है कि उत्सर्जन की नई सीमा कौन तय करेगा.

कौन करेगा तय

मिसाल के तौर पर मेजबान देश पोलैंड यूरोपीय संघ के उस तर्क को अब तक सफलतापूर्वक काटता आया है, जिसमें 2020 तक कार्बन उत्सर्जन की सीमा 1990 के स्तर से 30 फीसदी घटाने की बात है. पोलैंड यह सीमा सिर्फ 20 फीसदी तक रखना चाहता है. हालांकि संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट कहती है कि विश्व का तापमान दो डिग्री तक घटाने की संभावनाएं कम होती जा रही हैं. साल 1880 के बाद से दुनिया का तापमान औसत तौर पर 0.85 फीसदी बढ़ गया है. पर्यावरण जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में तापमान चार डिग्री और बढ़ सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की मौसमी बदलाव पर बने अंतरसरकारी पैनल ने 2007 की अपनी चौथी रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से नुकसान का जिक्र किया है. इसके बाद की रिपोर्ट में कमोबेश उन्हीं बातों का जिक्र किया गया है.

सबसे ज्यादा जहीरीली गैसें छोड़ने वाले देश अमेरिका और चीन में पर्यावरण के मुद्दे पर कभी सहमति नहीं बन पाई है. हालांकि वॉरसा में शामिल होने आ रहे अमेरिकी प्रतिनिधि का कहना है कि इस साल का सम्मेलन ऐतिहासिक हो सकता है क्योंकि अब उनका देश चीन के साथ नजदीक से इस मुद्दे पर बात कर रहा है. अमेरिकी प्रतिनिधि टॉड स्टर्न का कहना है, "यह साल अलग है क्योंकि हम सब इस बातचीत में शामिल हैं. हम आगे बढ़ना चाहते हैं."

इंसानों की गलती

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब उन्हें इस बात का 95 फीसदी यकीन हो चुका है कि पर्यावरण में बदलाव का जिम्मेदार इंसान ही है. इसकी वजह से समुद्री जलस्तर अनुमान से कहीं तेजी से बढ़ रहा है और इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं. हालांकि सुरंग के दूसरे कोने में हल्की रोशनी दिख रही है. मिसाल के तौर पर अमेरिका में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा हाल के दिनों में घटी है क्योंकि वहां अब कोयले की जगह ज्यादा गैस का इस्तेमाल होने लगा है.

जर्मनी जैसे देश चाहते हैं कि 2015 से पहले तय सीमा के अंदर कार्बन उत्सर्जन की संधि पर सहमति बन जाए. लेकिन हकीकत इससे कहीं परे है. जर्मनी खुद अब 25 फीसदी बिजली दोबारा इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा से बनाता है लेकिन 2012 में उसका कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ा है.

एजेए/एएम (डीपीए)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें