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पर्यावरण संरक्षण के लिए पहला वैश्विक ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन

महेश झा
२४ अप्रैल २०२०

वे सड़कों पर नहीं जा सकते. स्कूल यूं भी बंद है. लॉकडाउन के बाद फ्राइडे फॉर फ्यूचर के एक्टिविस्टों ने अपना विरोध ऑनलाइन पर ले जाने की बात कही थी. आज जर्मनी सहित दुनिया के कई देशों में ऐसा पहला विरोध प्रदर्शन हो रहा है.

Nord-Mazedonien: Umweltproteste in Skopje
तस्वीर: DW/B. Georgievski

कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर में तालाबंदी है. बहुत सारा काम घरों से हो रहा है, इंटरनेट की ताकत बहुत मजबूत रूप से सामने आई है. काम के लिए लोग रचनात्मक तरीके अख्तियार कर रहे हैं. स्कूली बच्चे भी पीछे नहीं हैं. आज के ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन के लिए उन्होंने बहुत कुछ नयापन दिखाया है.

कोरोना वायरस के कारण उनका प्रदर्शन सड़कों पर नहीं हो सकता, लेकिन वे पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को कोरोना महामारी की वजह से पैदा समस्याओं के नीचे दबने नहीं देना चाहते. पिछले दिनों बहुत से किशोरों ने अपनी तख्तियों पर लिखा है, "हर संकट से लड़ो." जर्मन एक्टिविस्ट लुइजा नॉएबावर ने आज की हड़ताल का आह्वान करते हुए ट्वीट किया, "हम दिखाएंगे कि न्यायोचित पर्यावरण सुरक्षा को कितना बड़ा सामाजिक समर्थन है." 

पहली ऑनलाइन हड़ताल सोशल मीडिया पर हो रही है. यूट्यूब पर 24 घंटे का लाइवस्ट्रीम चल रहा है, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट और रिसर्चर अपनी बात कह रहे हैं. ये लोग पिछले हफ्तों की ही तरह स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग और उनके साथ अपनी तस्वीरें और विरोध की तख्तियां सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं. वे दुनिया भर की सरकारों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

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पिछले महीनों में नौजवान एक्टिविस्टों की चिंताओं और गतिविधियों की सराहना तो बहुत हुई है लेकिन सरकारों ने उतनी गंभीरता से कदम नहीं उठाए हैं. आशंका ये है कि कोरोना महामारी के दबाव में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चिंता में पर्यावरण की चिंता को दरकिनार ना कर दिया जाए.

दरअसल फ्राइडे फॉर फ्यूचर आंदोलन का इरादा पिछले साल की ही तरह एक अंतरराष्ट्रीय विरोध प्रदर्शन आयोजित करना था. ऐसे प्रदर्शनों में पिछले साल लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था और उसे युवा लोगों के अलावा समाज के अन्य वर्गों का भी समर्थन मिला था. जर्मनी में ही पिछले साल हुए विरोध प्रदर्शनों में हर बार दसियों हजार लोग शामिल हुए थे. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक रूप से बड़ा प्रदर्शन करना संभव नहीं था. इसलिए विरोध प्रद्रशन इंटरनेट पर हो रहा है, लेकिन वह विरोध की अकेली जगह नहीं होगी.

बर्लिन में जर्मन संसद के सामने एक आर्ट एक्शन चल रहा है जहां पर्यावरण आंदोलन की स्थानीय ईकाईयों के बैनरों और पोस्टरों का प्रदर्शन किया जा रहा है. लॉकडाउन की वजह से इस प्रदर्शन में सिर्फ 20 लोग हिस्सा ले सकते हैं. यह प्रदर्शन भले ही सांकेतिक लगे लेकिन राजधानी के अलावा दूसरे शहरों में भी ऐसे प्रदर्शन हो रहे हैं. जर्मनी में फ्राइडे फॉर फ्यूचर ईआंदोलन के संस्थापकों में शामिल कार्ला रीम्त्समा कहती हैं, "शुरुआती दिनों जैसा लग रहा है. अब हमें विरोध के नए तरीके सोचने की जरूरत है."

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कोरोना महामारी की वजह से हुई तालाबंदी ने एक ओर पर्यावरण को भारी राहत दी है तो दूसरी ओर ये भी दिखाया है कि मानवीय गतिविधियों की वजह से पर्यावरण पर कितना असर हो रहा है. ऐसी जगहों से दो सौ ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ दिख रहे हैं, जिन्हें पहले आज की पीढी ने कभी देखा ही नहीं था. ऐसी ही एक तस्वीर भारत में लुधियाना से आई है जहां से हिमालय की चोटियां देखी जा सकती हैं. जर्मनी में भी सड़कों पर गाड़ियां नहीं हैं, कारखानों की चिमनियां बंद हैं और एक महीने से ज्यादा से दिन में नीला आसमान और रात में चमकते तारे दिख रहे हैं.

लेकिन ये भी सच है कि नौकरी, कारोबार और तालांबदी के कारण दुनिया भर के किसी न किसी इलाके में फंसे होने की चिंता के पीछे पर्यावरण की चिंता दब सी गई है. कामगारों के अलावा उद्यमों को आर्थिक मदद देने पर बहस चल रही है. पर्यावरण संगठन और बहुत से उद्यमी जर्मनी में मांग कर रहे हैं कि उद्यमों को दी जाने वाली सरकारी मदद को पर्यावरण सुरक्षा के कदमों के साथ जोड़ा जाए, ताकि कोयले, गैस और तेल पर से निर्भरता को कम किया जा सके. 

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