वे सड़कों पर नहीं जा सकते. स्कूल यूं भी बंद है. लॉकडाउन के बाद फ्राइडे फॉर फ्यूचर के एक्टिविस्टों ने अपना विरोध ऑनलाइन पर ले जाने की बात कही थी. आज जर्मनी सहित दुनिया के कई देशों में ऐसा पहला विरोध प्रदर्शन हो रहा है.
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कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर में तालाबंदी है. बहुत सारा काम घरों से हो रहा है, इंटरनेट की ताकत बहुत मजबूत रूप से सामने आई है. काम के लिए लोग रचनात्मक तरीके अख्तियार कर रहे हैं. स्कूली बच्चे भी पीछे नहीं हैं. आज के ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन के लिए उन्होंने बहुत कुछ नयापन दिखाया है.
कोरोना वायरस के कारण उनका प्रदर्शन सड़कों पर नहीं हो सकता, लेकिन वे पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को कोरोना महामारी की वजह से पैदा समस्याओं के नीचे दबने नहीं देना चाहते. पिछले दिनों बहुत से किशोरों ने अपनी तख्तियों पर लिखा है, "हर संकट से लड़ो." जर्मन एक्टिविस्ट लुइजा नॉएबावर ने आज की हड़ताल का आह्वान करते हुए ट्वीट किया, "हम दिखाएंगे कि न्यायोचित पर्यावरण सुरक्षा को कितना बड़ा सामाजिक समर्थन है."
पहली ऑनलाइन हड़ताल सोशल मीडिया पर हो रही है. यूट्यूब पर 24 घंटे का लाइवस्ट्रीम चल रहा है, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट और रिसर्चर अपनी बात कह रहे हैं. ये लोग पिछले हफ्तों की ही तरह स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग और उनके साथ अपनी तस्वीरें और विरोध की तख्तियां सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं. वे दुनिया भर की सरकारों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
कहीं हवा साफ हो रही, कहीं नदियां तो कहीं जानवर और पक्षी बेफिक्र घूम रहे हैं. लगता है कि कोरोना संकट पर्यावरण पर काफी अच्छा असर छोड़ कर जाएगा. लेकिन कुछ बुरे असर भी होंगे जिन पर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/I. Aditya
बेहतर हवा
दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी अपने घरों में कैद है. लॉकडाउन के चलते सड़कें खाली पड़ी हैं. कई देशों में फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं. सैटेलाइट की तस्वीरें दिखाती हैं कि शहरों में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस में भारी कमी आई है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/I. Aditya
फैक्ट्रियों से छुटकारा
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के साथ साथ कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में भी भारी गिरावट देखी गई है. आंकड़े बताते हैं कि आखिरी बार ऐसा 2008-09 के आर्थिक संकट के दौरान हुआ था. अकेले चीन में ही लॉकडाउन के दौरान CO2 उत्सर्जन में 25 फीसदी की कमी आई.
इंसानों की गैर मौजूदगी में कई जानवर अब सड़कों पर निकलने लगे हैं. लेकिन जब लॉकडाउन खत्म होगा तब क्या होगा? जानवरों के लिए यह अजीब सी स्तिथि होगी. और वे आवारा जानवर जो इंसानों द्वारा दिए जाने वाले खाने पर निर्भर करते थे, वे अब भूखे मर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Wildlife/J. Kosten
अवैध शिकार
कोरोना संकट के बीच वुहान का मीट बाजार सुर्खियों में छाया हुआ है जहां वैध और अवैध रूप से जंगली जानवरों का कारोबार होता है. उम्मीद है कि अब इतनी बहस के बाद जंगली जानवरों के अवैध शिकार पर रोक लग सकेगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Lalit
साफ पानी
इटली में लॉकडाउन के कुछ ही दिन बाद वेनिस की साफ पानी वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. इस दौरान क्रूज शिप नहीं चल रहे हैं, जिससे ना केवल पानी साफ हुआ है, बल्कि समुद्र में ध्वनि प्रदूषण भी रुका है. भारत में गंगा और यमुना भी साफ दिख रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/L.Frost
प्लास्टिक कूड़ा
कोरोना संकट का सबसे बड़ा नुकसान है प्लास्टिक की बड़ी खपत, फिर चाहे अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाला डिस्पोजेबल सामान हो, आम लोगों द्वारा पहने जा रहे डिस्पोजेबल ग्लव्स या फिर सुपरमार्केट में बिक रहा पैक्ड सामान. जहां कहीं कैफे खुले हैं वे बी डिस्पोजेबल कप इस्तेमाल कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/S. Edison
जलवायु की कोई बात नहीं
इस वक्त दुनिया भर का ध्यान सिर्फ और सिर्फ कोरोना संकट से निपटने में है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन पर बहस रुक गई है. हमारी हवा और नदियां इस दौरान साफ जरूर हुई हैं लेकिन हमेशा के लिए नहीं. लॉकडाउन खुलने के बाद सब फिर से वैसा ही हो जाएगा. (रिपोर्ट: इनेके म्यूलेस/आईबी )
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/B. Zawrzel
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पिछले महीनों में नौजवान एक्टिविस्टों की चिंताओं और गतिविधियों की सराहना तो बहुत हुई है लेकिन सरकारों ने उतनी गंभीरता से कदम नहीं उठाए हैं. आशंका ये है कि कोरोना महामारी के दबाव में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चिंता में पर्यावरण की चिंता को दरकिनार ना कर दिया जाए.
दरअसल फ्राइडे फॉर फ्यूचर आंदोलन का इरादा पिछले साल की ही तरह एक अंतरराष्ट्रीय विरोध प्रदर्शन आयोजित करना था. ऐसे प्रदर्शनों में पिछले साल लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था और उसे युवा लोगों के अलावा समाज के अन्य वर्गों का भी समर्थन मिला था. जर्मनी में ही पिछले साल हुए विरोध प्रदर्शनों में हर बार दसियों हजार लोग शामिल हुए थे. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक रूप से बड़ा प्रदर्शन करना संभव नहीं था. इसलिए विरोध प्रद्रशन इंटरनेट पर हो रहा है, लेकिन वह विरोध की अकेली जगह नहीं होगी.
बर्लिन में जर्मन संसद के सामने एक आर्ट एक्शन चल रहा है जहां पर्यावरण आंदोलन की स्थानीय ईकाईयों के बैनरों और पोस्टरों का प्रदर्शन किया जा रहा है. लॉकडाउन की वजह से इस प्रदर्शन में सिर्फ 20 लोग हिस्सा ले सकते हैं. यह प्रदर्शन भले ही सांकेतिक लगे लेकिन राजधानी के अलावा दूसरे शहरों में भी ऐसे प्रदर्शन हो रहे हैं. जर्मनी में फ्राइडे फॉर फ्यूचर ईआंदोलन के संस्थापकों में शामिल कार्ला रीम्त्समा कहती हैं, "शुरुआती दिनों जैसा लग रहा है. अब हमें विरोध के नए तरीके सोचने की जरूरत है."
दुनिया भर में कोरोना वायरस ने इंसानी गतिविधियों पर ब्रेक लगाकर कुदरत को बड़ा आराम पहुंचाया है. देखिए प्रकृति और उसके दूसरे बाशिंदे कैसे इस शांति का आनंद ले रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
साफ होती गंगा
भारत में लॉकडाउन के चलते जैसे व्यावसायिक और आम गतिविधियां बंद हुईं, वैसे ही गंगा नदी के पानी की क्वालिटी सुधरने लगी. आईआईटी बनारस में कैमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. पीके मिश्रा के मुताबिक गंगा में 40-50 फीसदी सुधार आया है.
तस्वीर: DW/R. Sharma
बेखौफ घूमते पशु पक्षी
भारत समेत कुछ और देशों से वन्य जीवों के शहर के बीचोंबीच टहलने की तस्वीरें आ रही हैं. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हाथी घूमता दिखाई पड़ा. राज्य के शहरी इलाकों में बाघ और हिरणों के आवाजाही भी रिकॉर्ड हो रही है. यहां ब्रसेल्स में बतखों का एक झुंड शहर में दीख रहा है.
तस्वीर: Imago Images/ZUMA Wire/D. Le Lardic
हिमालय का साफ दीदार
भारत और नेपाल के कई शहरों में हवा की क्वालिटी में बहुत जबरदस्त सुधार आया है. दिल्ली और काठमांडू जैसे महानगर लंबे वक्त बाद इतनी साफ हवा देख रहे हैं. भारत के जालंधर शहर की तरह नेपाल की राजधानी काठमांडू से भी अब हिमालय साफ दिखने लगा है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Maharjan
शांति और साफ पानी
करोड़ों सैलानियों की मेजबानी की थकान इटली के मशहूर शहर वेनिस पर दिखाई पड़ती थी. शहर की सुंदरता के साथ साथ गंदा पानी और क्रूज शिपों का प्रदूषण वेनिस की पहचान से बन गए थे. लेकिन अब वेनिस आराम कर रहा है. लॉकडाउन की वजह से वेनिस के पानी में पहली बार मछलियां साफ दिख रही हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Silvestri
बेखौफ बकरियां
ब्रिटेन के एक तटीय कस्बे लियांडुंडो में कभी कभार कश्मीरी बकरियां गुजरती हुई दिख जाती हैं. लेकिन जिस आजादी के साथ ये बकरियां इन दिनों चहलक़दमी करती हैं, वैसा पहले नहीं देखा गया. निडर होकर बकरियां जो चाहे वो चरते हुए आगे बढ़ती हैं.
तस्वीर: Getty Images/C. Furlong
झगड़ा करते भूखे बंदर
थाईलैंड के लोपबुरी में इन दिनों बंदरों की अशांति हावी है. स्थानीय मीडिया के मुताबिक पर्यटकों की कमी के चलते बंदरों को पर्याप्त खाना नहीं मिल पा रहा है. बंदरों के कई झुंड भोजन के लिए आपस में खूब झगड़ रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/Soe Zeya Tun
CO2 उत्सर्जन में बड़ी गिरावट
विकसित औद्योगिक देश जर्मनी में भी इन दिनों गजब की शांति है. सड़कों पर बहुत कम कारें, आसमान में इक्का दुक्का हवाई जहाज और फैक्ट्रियों में भी बहुत ही कम काम. एक अनुमान के मुताबिक अगर उत्सर्जन का स्तर इतना ही रहा तो जर्मनी 2020 के लिए तय जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्य हासिल कर लेगा.
तस्वीर: Reuters/Soe Zeya Tun
कुछ ही दिनों की शांति
कई देशों में आर्थिक गतिविधियां भले ही थमी हों, लेकिन चीन में फिर से कारखाने सक्रिय होने लगे हैं. देश के कई इलाकों में लोग काम पर लौट रहे हैं. यह तस्वीर पूर्वी चीन के आनहुई शहर में स्थित एक बैटरी फैक्ट्री की है. लॉकडाउन के दौरान चीन में भी हवा की क्वालिटी काफी बेहतर हुई.
तस्वीर: Getty Images/AFP
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कोरोना महामारी की वजह से हुई तालाबंदी ने एक ओर पर्यावरण को भारी राहत दी है तो दूसरी ओर ये भी दिखाया है कि मानवीय गतिविधियों की वजह से पर्यावरण पर कितना असर हो रहा है. ऐसी जगहों से दो सौ ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ दिख रहे हैं, जिन्हें पहले आज की पीढी ने कभी देखा ही नहीं था. ऐसी ही एक तस्वीर भारत में लुधियाना से आई है जहां से हिमालय की चोटियां देखी जा सकती हैं. जर्मनी में भी सड़कों पर गाड़ियां नहीं हैं, कारखानों की चिमनियां बंद हैं और एक महीने से ज्यादा से दिन में नीला आसमान और रात में चमकते तारे दिख रहे हैं.
लेकिन ये भी सच है कि नौकरी, कारोबार और तालांबदी के कारण दुनिया भर के किसी न किसी इलाके में फंसे होने की चिंता के पीछे पर्यावरण की चिंता दब सी गई है. कामगारों के अलावा उद्यमों को आर्थिक मदद देने पर बहस चल रही है. पर्यावरण संगठन और बहुत से उद्यमी जर्मनी में मांग कर रहे हैं कि उद्यमों को दी जाने वाली सरकारी मदद को पर्यावरण सुरक्षा के कदमों के साथ जोड़ा जाए, ताकि कोयले, गैस और तेल पर से निर्भरता को कम किया जा सके.