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पशुओं की बजाय परखनलियों में परीक्षण

२२ मार्च २०१२

जर्मनी में 2002 से पशु कल्याण राज्य के लक्ष्यों में शामिल है, लेकिन अभी भी बहुत से परीक्षण जानवरों पर होते हैं. वैज्ञानिक ऐसे तरीकों का विकास कर रहे हैं जिससे कि चूहों और बंदरों पर परीक्षण न करना पड़े.

तस्वीर: AP

जानवरों पर बीमारियों और दवाओं की जांच हमेशा से विवादों के घेरे में रही है. वैज्ञानिक इंसान के इलाज के लिए उसके महत्व पर जोर देते हैं तो पशु रक्षक उसे नैतिक वजहों से इंकार करते हैं. इस सप्ताह जर्मन शहर हनोवर में जानवरों पर परीक्षण के दूसरे तरीकों पर चर्चा हुई. हनोवर वेटनरी कॉलेज के प्रो. पाब्लो श्टाइनबर्ग कहते हैं, "पहली नजर में अजीब सा लगता है, हम वैकल्पिक तरीकों की बात कर रहे हैं लेकिन साथ ही जानवरों पर परीक्षण की संख्या बढ़ रही है." इसकी वजह कई प्रकार की बीमारियों के लिए चूहों पर परीक्षणों की बढ़ती संख्या है.

लाखों जानवरों पर परीक्षण

जर्मनी की अगल अलग प्रयोगशालाओं में 2005 में 24 लाख जानवरों का इस्तेमाल किया गया जबकि 2010 में उनकी तादाद बढ़कर साढ़े 28 लाख हो गई. उनमें से 80 फीसदी चूहे और छछूंदर थे. बढ़ते पैमाने पर ट्रांसजेनिक जानवर बीमारियों की जांच के लिए मॉडल बनते हैं. उन्हें बीमार किया जाता है और फिर उनका इलाज कर इलाज की संभावना का पता लगाया जाता है. कुछ मामलों में तो उन पर दवाओं का भी परीक्षण किया जाता है.

बीमारियों पर शोध में जानवरों पर परीक्षण पर अभी तक रोक नहीं है. लेकिन इसके विपरीत कॉस्मेटिक प्रोडक्शन में 2009 से ही पूरे यूरोप में जानवरों पर परीक्षण पर रोक लगा दी गई है. लेकिन अधिकारियों की विशेष इजाजत लेकर इस रोक से बचा जा सकता है.

अब वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि वे 2002 से संविधान में शामिल पशु रक्षा लक्ष्यों के अनुसार शोध करें. हनोवर के वेटनरी कॉलेज में ही शोधकर्मियों के 20 दल पशुओं पर होने वाले परीक्षण को कम करने, बेहतर बनाने और उससे बचने की परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं.

सफल हैं वैकल्पिक विधियां

प्रो. श्टाइनबर्ग का कहना है कि उन्हें इसमें सफलता भी मिली है. इस बीच टॉक्सिक परीक्षण पशुओं पर करने के बदले इनका विट्रो परीक्षण किया जा रहा है. कोई दवा या रसायन जहरीला है या नहीं इसकी जांच अब पशुओं पर नहीं की जाती बल्कि टेस्ट ट्यब में की जाती है.

रसायनशास्त्री प्रो. श्टाइनबर्ग कहते हैं, "इसका फायदा यह है कि एक साथ कई तत्वों को परखा जा सकता है. यह न सिर्फ तेज है बल्कि सस्ता भी. यह रासायनिक और दवा कंपनियों के लिए भी सस्ता है." मुश्किल तब होती है जब किसी तत्व का गर्भवती महिलाओं पर होने वाले असर की जांच करनी हो.

अब तक गर्भवती चूहों पर यह जांच की जाती थी कि क्या कोई दवा कोशिका की जेनेटिक संरचना और इसके साथ बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है. यह परीक्षण भी आने वाले समय में टेस्ट ट्यूब में ही किया जाएगा. हनोवर के वेटनरी कॉलेज में इस सिलसिले में परीक्षण किये गए हैं.

वैज्ञानिकों की एक चिंता परीक्षणों में जानवरों को होने वाली तकलीफ भी है. भविष्य में वे जानवरों को बेहोश करेंगे ताकि उन्हें कम से कम तकलीफ हो.

रिपोर्टः डीपीए/महेश झा

संपादनः ईशा भाटिया

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