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पशु और मानव का मेल कराने वाले प्रयोगों पर सवाल

Anwar Jamal Ashraf२२ जुलाई २०११

ब्रिटेन के प्रमुख वैज्ञानिकों ने पशुओं में मानव जीन या कोशिकाओं को डालने के प्रयोगों के लिए नए नियम बनाने की मांग की है. वैज्ञानिकों को चिंता है कि कहीं इस तरह के बढ़ते प्रयोग किसी 'डरावने जीव' को जन्म न दे दें.

This undated picture was issued by the Life Science Centre, Newcastle University, Newcastle, England, Friday May 20, 2005, of the Nuclear Transer embryo, 3 days after nuclear transfer took place. This is Britain's first cloned human embryo, eight cells inside a sac. Each cell carriers genetic instructions not from a mother and father but inserted by scientists. Scientists at Newcastle University have cloned a human embryo for the first time in Britain, a breakthrough that they hope will eventually lead to successful treatments for degenerative diseases such as Parkinson's and Alzheimer's. (AP Photo/RBM Online/Life Science Center/ho) ** NO SALES ** ** MANDITORY CREDIT RBM ONLINE/LIFE SCIENCE CENTER **
तस्वीर: AP/RBM ONLINE/LIFE SCIENCE CENTER

मेडिकल रिसर्च के नाम पर पशुओं के मानवीकरण से मानव शरीर की प्रक्रियाओं और उनमें रोगों के विकास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जरूर मिली है लेकिन इस बारे में नियम बनाने की जरूरत है जिससे कि इसे सावधानी से नियंत्रित किया जा सके. वैज्ञानिक मानते है कि बंदर जैसे प्राइमेट्स से मानव की तरह बुलवाने के प्रयोग विज्ञान की कल्पना का हिस्सा हो सकते हैं लेकिन दुनिया भर में शोध करने वाले लोग सीमाओं के पार जा रहे हैं.

कई प्रयोग

चीन के वैज्ञानिकों ने मानवीय तंतु कोशिकाओं को बकरी के भ्रूण में डाला है. उधर अमेरिकी वैज्ञानिक मानव की मस्तिष्क कोशिका के सहारे चूहा तैयार करने की तैयारी में हैं हालांकि उन्होंने अभी इसे अंजाम नहीं दिया है. ब्रिटेन की एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह के विवादित शोध के लिए खास निगरानी की जरूरत है जिसमें जानवरों के भीतर मानवीय कोशिकाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है. पशुओं में सीमित मानवीय विशेषताओं का इस्तेमाल करना नई बात नहीं है. जेनेटिक यांत्रिकी के जरिए मानवीय डीएनए वाला तैयार किया गया चूहा पहले से ही रिसर्च की दुनिया में शामिल हो चुका है और कैंसर जैसी बीमारियों की दवा खोजने में इसका खूब इस्तेमाल किया जा रहा है.

तस्वीर: AP

चिंता का कारण

इन सबके बावजूद वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ मामले ऐसे हैं जो चिंता का कारण हैं. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में मेडिकल जेनेटिक्स विभाग के प्रोफेसर मार्टिन बोब्रोव का कहना है, "चिंता तब होती है जब आप दिमाग, प्रजनन या ऐसी कोशिकाओं में घुसते है, जो किसी जीव की पहचान को निर्धारित करती हैं जैसे कि त्वचा की बनावट, चेहरे की आकृति या फिर बोलचाल." प्रोफेसर बोब्रोव ने ही इस ग्रुप का नेतृत्व किया है जिसने ये रिपोर्ट तैयार की है. उनकी रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों की एक कमेटी बनानी चाहिए जो सिस्टम के दायरे में रह कर जानवरों पर होने वाले रिसर्च के लिए नियम बनाए और संवेदनशील मामलों की निगरानी करे. ब्रिटेन की सरकार के मंत्रियों ने कहा है कि वो इस रिपोर्ट का स्वागत करते हैं और इसमें दिए गए सुझावों पर गंभीरता से विचार करेंगे. बोब्रोव का कहना है कि दूसरे देशों को भी इस मामले में अपने लिए नियम बनाने चाहिए क्योंकि वहां के वैज्ञानिक और नियम बनाने वालों के लिए भी इस बारे में लोगों की चिंता दूर करना जरूरी है.

बड़े काम के पशु

मानवीकृत पशु कमजोर करने वाली बीमारियों से लड़ने के अलावा बांझपन के लिए नए इलाज का विकास करने में भी बड़े मददगार साबित हो रहे हैं. इसके अलावा तंतु कोशिकाओं से जुड़े रिसर्च में भी उनकी प्रमुख भूमिका है. दुनिया में लकवा के मरीजों के इलाज में न्यूट्रल तंतु कोशिका के इस्तेमाल का इंसानों पर परीक्षण तभी संभव हो सका जब इसे पहले मानवीय मस्तिष्क कोशिका वाले चूहों पर परख लिया गया. यह प्रयोग स्कॉटलैंड और ब्रिटेन की बायोटेक कंपनी रीन्यूरॉन के संयुक्त उपक्रम में किया गया. मेडिकल रिसर्च काउंसिल से जुड़े रॉबिन लोवेल बैज बताते हैं कि पशुओं पर महत्वपूर्ण शोधों में डॉन का सिंड्रोम माउस भी शामिल है जिसमें 300 मानवीय जीन डाले गए. इसमें एक तो ऐसा भी है जिसके लीवर का 95 फीसदी हिस्सा मानवीय कोशिकाओं से बना था.

तस्वीर: AP

इस रिपोर्ट के बारे में लोगों की राय जानने की कोशिश के लिए सर्वे कराया गया तो लोगों ने मानवीय कोशिकाओं वाले जंतुओ पर प्रयोग के लिए समर्थन जताया लेकिन उसके साथ ये शर्त भी रखी कि अगर ये इंसानों का स्वास्थ्य सुधारने की नीयत से किया गया हो. हालांकि ऐसे प्रयोगों पर लोगों ने गंभीर चिंता जताई जिसमें मस्तिष्क का इस्तेमाल, मानवीय अंडो या शुक्राणु को पशुओं के अंदर निषेचन या फिर पशुओं में इंसानों के गुण जैसे कि उनका चेहरा या बोली उत्पन्न करने की कोशिश की गई हो.

जानवर कौन सा है इसके आधार पर भी लोगों के नजरिए में बदलाव देखा गया. लंदन के किंग्स कॉलेज में मनोरोग चिकित्सा विभाग से जुड़े प्रोफेसर क्रिस्टोफर शॉ कहते हैं, "अगर आप घर आएं और आपका तोता कहे,'सुंदर बच्चा कौन है?' तो ये अलग बात है लेकिन यही बात आपका बंदर कहे तो मामला बदल जाता है."

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः आभा एम

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