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पश्चिमी तट पर अमेरिका ने आखिर क्यों बदली नीति

१९ नवम्बर २०१९

पश्चिमी तट की इस्राएली बस्तियों को अमेरिकी समर्थन का रूस और कई अरब देशों ने विरोध किया है. अमेरिका का कहना है कि वह पश्चिमी तट की इस्राएली बस्तियों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं मानता है.

Israel | Siedlungsbau
तस्वीर: imago images/CHROMORANGE

अमेरिकी नीति में बदलाव का एलान सोमवार को अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने किया. इससे पहले भी ट्रंप प्रशासन इस्राएल के हित में कई कदमों का एलान कर चुका है. इसमें अमेरिकी दूतावास को येरुशलम ले जाए जाने और गोलन पहाड़ियों पर इस्राएल के सार्वभौमिक अधिकार को मान्यता देना शामिल है. पूर्वी येरुशलम और पश्चिमी तट पर मौजूद 200 से ज्यादा बस्तियों में 6 लाख से ज्यादा इस्राएली रहते हैं. बस्तियों के विस्तार को मध्यपूर्व में फलीस्तीन और इस्राएल दो राष्ट्रों वाले समाधान की उम्मीदों के विरुद्ध मानते हैं क्योंकि भविष्य में वो इन इलाकों को अपने राष्ट्र के लिए चाहते हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 2016 में बस्तियों को बनाने पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की थी और एक प्रस्ताव पारित कर उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन और मध्यपूर्व में शांति की दिशा में एक प्रमुख बाधा करार दिया था.

तस्वीर: imago images/UPI Photo

रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने अमेरिकी नीति में बदलाव की निंदा की है और कहा है कि इससे इस्राएल और फलस्तीन विवाद के समझौते का अंतरराष्ट्रीय कानूनी आधार खत्म हो जाएगा और इससे इलाके में तनाव की स्थिति और बिगड़ जाएगी. अरब लीग के प्रमुख अहमद अब्दुल घेट ने कहा है , "अंतरराष्ट्रीय कानून अंतरराष्ट्रीय समुदाय बनाते हैं कोई एक देश नहीं, चाहे वह कितना भी अहम क्यों ना हो." बस्तियों को गैरकानूनी बताते हुए घेट ने कहा है, "ऐसा करने वालों या फिर इसका समर्थन करने वालों के लिए यह शर्मनाक है."

सीरिया की सरकारी समाचार एजेंसी सना में जारी बयान में विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा है, दमिश्क, "फलस्तीन की  यहूदी बस्तियों के बारे में अमेरिकी स्थिति की कड़े से कड़े शब्दों में भर्त्सना करता है, यह अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन है." बयान में यह भी कहा गया है कि अमेरिकी रुख "अवैध है और इसका कोई कानूनी असर" नहीं होगा. मिस्र का कहना है कि उसकी दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों और कानूनों के अनुरूप है जो बस्तियों को, "अवैध और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन" मानता है. जॉर्डन के विदेश मंत्री अयमान अल सफादी ने भी अमेरिका के कदम को, "अस्वीकार्य एकतरफा कार्रवाई" माना है. उन्होंने चेतावनी दी है कि इसके "भयानक नतीजे" होंगे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/A. Harnik

पोम्पेयो की दलील है कि इस्राएल के समर्थन में कदम उठाने से शांति प्रक्रिया पर बातचीत का मौका बनेगा जबकि बस्तियों की कानूनी स्थिति पर विवाद बढ़ाने से यह अटका रहेगा. उधर इस्राएली सरकार ने इस कदम का स्वागत किया है. प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने मंगलवार को पश्चिमी तट का दौरा किया और कहा कि ट्रंप प्रशासन ने "ऐतिहासिक अन्याय को दुरूस्त किया है. यह इस्राएल राष्ट्र के लिए एक महान दिन है और यह उपलब्धि कई पीढ़ियों तक कायम रहेगी."

फलस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के महासचिव साएब एरेकात ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, "इस्राएली बस्तियां फलस्तीनी जमीन छीन रही हैं और फलस्तीन के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही हैं, इसके साथ ही वो फलस्तीनी लोगों को विस्थापित, विभाजित कर रही हैं और उनकी गतिविधियों पर रोक लगा रही हैं.

एनआर/एमजे (डीपीए)

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