पक्के दोस्त जब दुश्मन बनते हैं तो लड़ाई बड़ी तीखी होती है. तो क्या, पश्चिम और तुर्की एक दूसरे से भिड़ने जा रहे हैं?
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तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने अमेरिका और इस्राएल पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे ईरान और पाकिस्तान में दखल दे रहे हैं. ईरान में सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला अली खामेनेई और राष्ट्रपति हसन रोहानी के खिलाफ 28 दिसंबर से प्रदर्शन हो रहे हैं. छोटे शहरों और देहातों में हो रहे प्रदर्शनों में अब तक 21 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. महंगाई के विरोध में शुरू हुए प्रदर्शनों में अब दूसरे मुद्दे भी उछल रहे हैं.
तुर्क राष्ट्रपति एर्दोवान ने कहा, "हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि कुछ देश- खासतौर पर अमेरिका और इस्राएल ईरान और पाकिस्तान के अंदरुनी मामलों में दखल दें." फ्रांस के दौरे पर जाने से ठीक पहले तुर्क राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि, "इन देशों में लोगों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है. यह शर्मनाक है कि हम ऐसा कई देशों के साथ होते हुए पहले भी देख चुके हैं...हमने यह इराक में भी देखा."
कितना बदल गया तुर्की
बीते 15 साल में तुर्की जितना बदला है, उतना शायद ही दुनिया का कोई और देश बदला होगा. कभी मुस्लिम दुनिया में एक उदार और धर्मनिरपेक्ष समाज की मिसाल रहा तुर्की लगातार रूढ़िवाद और कट्टरपंथ के रास्ते पर बढ़ रहा है.
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एर्दोवान का तुर्की
इस्लामी और रूढ़िवादी एकेपी पार्टी के 2002 में सत्ता में आने के बाद से तुर्की बहुत बदल गया है. बारह साल प्रधानमंत्री रहे रेचेप तैयप एर्दोवान 2014 में राष्ट्रपति बने और देश को राष्ट्रपति शासन की राह पर ले जा रहे हैं.
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बढ़ा रूढ़िवाद
तुर्की इन सालों में और ज्यादा रूढ़िवादी और धर्मभीरू हो गया. जिस तुर्की में कभी बुरके और नकाब पर रोक थी वहां हेडस्कार्फ की बहस के साथ सड़कों पर ज्यादा महिलायें सिर ढंके दिखने लगीं.
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कमजोर हुई सेना
एकेपी के सत्ता में आने से पहले तुर्की की राजनीति में सेना का वर्चस्व था. देश की धर्मनिरपेक्षता की गारंटी की जिम्मेदारी उसकी थी. लेकिन एर्दोवान के शासन में सेना लगातार कमजोर होती गई.
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अमीर बना तुर्की
इस्लामी एकेपी के सत्ता में आने के बाद स्थिरता आई और आर्थिक हालात बेहतर हुए. इससे धनी सेकुलर ताकतें भी खुश हुईं. लेकिन नया धनी वर्ग भी पैदा हुआ जो कंजरवेटिव था.
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अक्खड़ हुआ तुर्की
एर्दोवान के उदय के साथ राजनीति में अक्खड़पन का भी उदय हुआ. खरी खरी बातें बोलने की उनकी आदत को लोगों ने इमानदारी कह कर पसंद किया, लेकिन यही रूखी भाषा आम लोगों ने भी अपना ली.
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नए सियासी पैंतरे
विनम्रता, शिष्टता और हया को कभी राजनीति की खूबी माना जाता था. लेकिन गलती के बावजूद राजनीतिज्ञों ने कुर्सी से चिपके रहना और दूसरों की खिल्ली उड़ाना सीख लिया. एर्दोवान के दामाद और उर्जा मंत्री अलबायराक.
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नेतृत्व की लालसा
कमालवाद के दौरान तुर्की अलग थलग रहने वाला देश था. वह दूसरों के घरेलू मामलों में दखल नहीं देता था. लेकिन एर्दोवान के नेतृत्व में तुर्की ने मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने की ठानी.
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लोकतांत्रिक कायदों से दूरी
एकेपी के शासन में आने के दो साल बाद 2004 में यूरोपीय संघ ने तुर्की की सदस्यता वार्ता शुरू करने की दावत दी. तेरह साल बाद तुर्की लोकतांत्रिक संरचना से लगातार दूर होता गया है.
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ईयू से झगड़ा
तुर्की ने 2023 तक यूरोपीय संघ का प्रभावशाली सदस्य बनने का लक्ष्य रखा है. लेकिन अपनी संरचनाओं को ईयू के अनुरूप ढालने के बदले वह लगातार यूरोपीय देशों से लड़ रहा है.
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तुर्की में धर पकड़
2016 में तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद तुर्की में हजारों सैनिक और सरकारी अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया है और सैकड़ों को जेल में डाल दिया गया है.
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एर्दोवान की ब्लैकमेलिंग?
2016 के शरणार्थी संकट के बाद एर्दोवान लगातार जर्मनी और यूरोप पर दबाव बढ़ा रहे हैं. पिछले दिनों जर्मनी के प्रमुख दैनिक डी वेल्ट के रिपोर्टर डेनिस यूशेल को आतंकवाद के समर्थन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
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इस्लामिक देश होगा तुर्की?
अप्रैल 2017 में तुर्की में नए संविधान पर जनमत संग्रह हुआ, जिसने देश को राष्ट्रपति शासन में बदल दिया. अब एर्दोवान 2034 तक राष्ट्रपति रह सकेंगे. सवाल ये है कि क्या तुर्की और इस्लामिक हो जाएगा.
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एर्दोवान ने आरोप लगाते समय यह नहीं बताया कि अमेरिका और इस्राएल पाकिस्तान के भीतरी मामलों में किस तरह की दखलंदाजी कर रहे हैं. अमेरिका ने कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद और सैन्य सहायता रोक दी. अमेरिका का आरोप है कि पाकिस्तान ने बीते 15 साल में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका को गुमराह किया. अमेरिका को लगता है कि पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के कुछ दूसरे धड़ों को समर्थन देता है. अफगानिस्तान में ये गुट अमेरिकी सेना पर कई बड़े हमले कर चुके हैं.
खुद को मुस्लिम जगत के सबसे बड़े नेता के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहे एर्दोवान ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने सीरिया, फलीस्तीन, मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया में दखल दिया. उन्होंने सूडान और चाड का जिक्र भी किया. धर्म का कार्ड खेलते हुए एर्दोवान ने कहा, "कुछ देशों में खेल खेला जा रहा है."
ईरान में जारी प्रदर्शनों के बीच बुधवार को एर्दोवान ने हसन रोहानी से टेलिफोन पर बात भी की. तुर्क राष्ट्रपति ने ईरान को भरोसा दिलाया कि उनका देश तेहरान के समर्थन में खड़ा रहेगा. तुर्की के इस फैसले से कई हलकों में हैरानी है. एर्दोवान पहले कई बार ईरान पर मध्य पूर्व में "फारसी साम्राज्यवाद" फैलाने का आरोप लगाते रहे हैं. दोनों देशों के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे.
लेकिन सीरिया संकट के दौरान तुर्की और ईरान करीब आने लगे. रूस के सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के समर्थन में आते ही तुर्की ने भी रूस के साथ रिश्ते मजबूत करने शुरू कर दिए. कई दशकों से नाटो का सदस्य रहा तुर्की पहले हमेशा रूस के खिलाफ खड़ा नजर आता था. लेकिन हाल के समय में ये रिश्ते भी बदले हैं.
इस बीच अमेरिका ने भी तुर्की के कुछ पेंच कसे हैं. गुरुवार को अमेरिका की एक अदालत में तुर्की के एक बड़े सरकारी बैंकर को दोषी करार दिया. अमेरिकी ज्यूरी ने हाल्कबैंक के एक्जीक्यूटिव को ईरान पर लगे प्रतिबंधों को तोड़ते हुए लेनदेन करने का दोषी करार दिया. तुर्की ने झूठे सबूतों के आधार पर मुकदमा चलाने का आरोप लगाया है. तुर्क राष्ट्रपति ने कहा है कि, "अगर न्याय के प्रति अमेरिका की यही समझ है तो दुनिया डूब चुकी है." एर्दोवान ने अमेरिका और तुर्की के रिश्तों की फिर से समीक्षा करने का एलान भी किया.
कभी तुर्की इस्राएल, अमेरिका और यूरोपीय संघ का घनिष्ठ मित्र था. लेकिन हाल के सालों में तुर्की के इन सबसे रिश्ते खराब हुए हैं. यूरोपीय संघ में जर्मनी जैसे बड़े देश के साथ तुर्की के रिश्ते रसातल पर जा चुके हैं. 2016 में तुर्की में राष्ट्रपति एर्दोवान के तख्तापलट की कोशिश हुई. तख्तापलट की उस कोशिश के बाद ही एर्दोवान बदले बदले नजर आ रहे हैं. वह या उनके मंत्री आए दिन जर्मनी, अमेरिका या इस्राएल पर आरोप लगाते हैं. अब सवाल यह है कि क्या एर्दोवान इस खेल में वह हासिल कर पाएंगे जो वो चाहते हैं, या फिर उनका सामना किसी अप्रत्याशित नतीजे से होगा?
(तुर्की में तख्तापलट की कोशिश)
तुर्की में तख्तापलट नाकाम क्यों हुआ था?
तुर्की में तख्ता पलट की यह कोई पहली कोशिश नहीं थी. इससे पहले चार बार तख्तापलट हो चुका है. लेकिन 2016 में यह विफल हो गया था. क्यों? जानिए...
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हैरतअंगेज कदम
15 जुलाई को तुर्की की राजधानी अंकारा में सैनिकों की बगावत ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि तख्तापलट की इस तरह की कोशिश हो सकती है.
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20 साल बाद
20 साल पहले 1997 में तुर्की में पिछली बार तख्तापलट हुआ था. लेकिन 2016 में ऐसा नहीं हो पाया. क्या तैयारी नहीं थी?
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इरादा तो बड़ा था
जानकारों का मानना है कि तैयारी पूरी थी और बागियों ने रणनीति भी ठोस बनाई थी. इस रणनीति को अंजाम भी सलीके से दिया गया था. फिर भी वे विफल हो गए. क्यों?
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औचक और तेज हमला
बागियों ने तेजी से कार्रवाई की. वे चौंकाने में भी कामयाब रहे. देश के तीन चार-स्टार जनरल इसके पीछे थे. तैयारी पूरी थी.
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12 बागी टीमें
12 बागी टीमों को अलग अलग जगहों पर नियंत्रण के लिए भेजा गया था. तीनों सैन्य प्रमुखों को हिरासत में ले लिया गया था. रेडियो और टेलिविजन चैनल पर भी कब्जा कर लिया गया. लेकिन गलती कहां हुई?
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तीन बड़ी गलतियां
बागियों ने तीन बड़ी गलतियां कीं. एक तो वे राष्ट्रपति एर्दोआन को काबू करने में देर कर बैठे. एर्दोआन कुछ ही मिनट पहले निकल भागने में कामयाब रहे थे.
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महल पर नाकामी
दूसरी सबसे बड़ी गलती थी, अंकारा में राष्ट्रपति महल पर कब्जे में ढील. ऐसा लगता है कि बागी महल के सुरक्षाकर्मियों की ताकत को पूरी तरह आंक नहीं पाए. सुरक्षाकर्मियों ने महल पर हमले का करारा जवाब दिया और उन्हें वहीं हरा दिया.
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पुलिस से दूरी
तीसरी गलती पुलिस के साथ निपटने में हुई. बागियों ने पुलिस को अपने साथ नहीं मिलाया था. हालांकि शुरू में पुलिस निष्पक्ष होकर सिर्फ देख रही थी. लेकिन जैसे ही यह स्पष्ट हो गया कि बागी हार रहे हैं, पुलिस ने पूरी ताकत से उन्हें कुचल दिया.
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कट्टरपंथियों को छोड़ दिया
एक गलती धार्मिक कट्टरपंथियों के मामले में भी हुई थी. बागियों ने उन पर नियंत्रण नहीं किया. नतीजतन देशभर की मस्जिदों से उनके खिलाफ फरमान जारी हो गए और लोग उनके विरोध में निकल आए.
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नेताओं पर ढील
बागी तत्कालीन प्रधानमंत्री बिनाली यिल्दरिम और गृह मंत्री एफकान एला को भी गिरफ्तार नहीं कर पाए थे. वे गृह मंत्रालय पर भी कब्जा नहीं कर पाए थे.
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टीवी चैनलों पर ढील
निजी टीवी चैनलों पर कब्जा न करना भी बागियों की बड़ी गलती साबित हुई थी. इन टीवी चैनलों से उनके खिलाफ खूब प्रचार हुआ था.