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पश्चिम को ब्रिक्स की चुनौती

१६ जुलाई २०१४

पश्चिमी देशों के प्रभाव वाले अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे को बदलने के लिए ब्रिक्स देशों ने 100 अरब डॉलर का विकास बैंक शुरू किया. शंघाई स्थित इस बैंक का पहला प्रमुख भारतीय होगा. पहला बोर्ड अधिकारी ब्राजील का होगा.

तस्वीर: Reuters

विकास कर रहे देशों के आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाने की परियोजनाओं को ब्रिक्स विकास बैंक आर्थिक मदद देगा. बैंक का नाम न्यू डेवलपमेंट बैंक रखा गया है. पहले पांच साल बैंक प्रमुख का पद भारतीय अधिकारी संभालेगा. इसके बाद ब्राजील और रूस के अधिकारियों को यह जिम्मेदारी मिलेगी.

नया वर्ल्ड बैंक और मिनी आईएमएफ

100 अरब डॉलर वाले न्यू डेवलपमेंट बैंक के अलावा ब्रिक्स देशों ने 100 अरब डॉलर का करेंसी रिजर्व पूल भी बनाया है. इससे अचानक मुद्रा की तरलता का दबाव झेल रहे देशों की मदद दी जाएगी. 2013 में उभरती अर्थव्यवस्थाओं से जब अचानक विदेशी निवेशकों ने पूंजी खींची तो विकासशील देशों का मुद्रा बाजार गोते खाने लगा. करेंसी रिजर्व पूल के जरिए भविष्य में अचानक विदेशी पूंजी निकलने से मुद्रा की तरलता पर आने वाले दबाव को टाला जा सकेगा.

फोर्टालेजा में ब्राजीलियाई राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ ने करेंसी रिजर्व पूल की पहल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, "अमेरिकी दखल के नतीजों से विविधता वाली अर्थव्यवस्थाओं में होने वाली उठा पटक को रोकने में इससे मदद मिलेगी."

न्यू डेवलपमेंट बैंक को वॉशिंगटन स्थित विश्व बैंक की समानान्तर संस्था माना जा रहा है. वहीं करेंसी रिजर्व पूल को मिनी-अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तरह देखा जा रहा है. फिलहाल विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सदस्य देशों को आर्थिक मदद तो देते हैं लेकिन इसके बदले कई तरह की शर्तें भी होती है. कभी कभी वित्तीय मदद के फैसले राजनीति से प्रभावित भी होते हैं. कई बार विकासशील देशों पर कर्ज के बदले अपना बाजार खोलने का दबाव डाला जाता है.

बैंक और रिजर्व पूल का एलान के बाद राष्ट्र प्रमुखतस्वीर: Reuters

ब्रिक्स का प्रभाव

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका यानी ब्रिक्स देशों की यह पहली बड़ी कामयाबी है. पश्चिमी देशों के प्रभाव वाले वैश्विक वित्तीय ढांचे को बदलने के लिए ये देश 2009 में साथ आए. ब्रिक्स देशों में दुनिया की करीब आधी आबादी रहती है.

न्यू डेवलपमेंट बैंक का प्रभाव बढ़ना तय माना जा रहा है. शुरुआत में बैंक की पूंजी 50 अरब डॉलर होगी. इसके पांचों देश अगले सात साल में 10-10 अरब डॉलर की नकदी देंगे. 40 अरब डॉलर बतौर गारंटी रखे जाएंगे. बैंक 2016 से कर्ज देना शुरू करेगा. बैंक की सदस्यता दूसरे देश भी ले सकते हैं, लेकिन ब्रिक्स देशों की पूंजीगत भागीदारी 55 फीसदी से कम नहीं होगी.

चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है. करेंसी रिजर्व पूल में बीजिंग अकेले 41 अरब डॉलर भरेगा. ब्राजील, भारत और रूस 18-18 अरब डॉलर देंगे. दक्षिण अफ्रीका की भागीदारी पांच अरब डॉलर की होगी. अगर जरूरत पड़ी तो चीन अपनी वित्तीय भागीदारी को घटाकर आधा कर देगा.

सम्मेलन के दौरान मोदी और पुतिन की मुलाकाततस्वीर: Reuters/Michael Klimentyev/RIA Novosti/Kremlin

अमेरिका को परोक्ष चुनौती

वैश्विक वित्तीय ढांचे में बदलाव की शुरुआत के साथ ही ब्रिक्स देशों ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को भी नई करवट देने का संकेत दिया है. पांचों देशों के बीच यूक्रेन, सीरिया और इराक जैसे संकटों पर भी चर्चा हुई. ब्रिक्स देशों ने साझा आवाज में कहा कि इन संकटों का शांतिपूर्वक हल निकाला जाना चाहिए. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जूमा और ब्राजीलियाई राष्ट्रपति रूसेफ ने माना कि दुनिया के कई हिस्सों में चल रहे मौजूदा संघर्ष को हल करने के लिए वैकल्पिक तरीके खोजे जाने बाकी हैं.

ब्रिक्स सम्मेलन को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा, ब्रिक्स को "शांतिपूर्ण, संतुलित और स्थिर विश्व के लिए संयुक्त और स्पष्ट आवाज में" मिलकर काम करना होगा.

अर्जेंटीना और क्यूबा का दौरा कर ब्राजील पहुंचे रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन संकट का जिक्र छेड़ा और कहा कि दुनिया बहुध्रुवीय होनी चाहिए. उनका इशारा अमेरिका की तरफ था. यूक्रेन की वजह से पश्चिमी दुनिया से कटे रूस के लिए ब्रिक्स अब अहम मंच बन गया है. ब्रिक्स के सहारे वो यूरोपीय संघ और अमेरिका को दिखा रहा है कि दुनिया में रूस के भरोसेमंद दोस्त हैं.

ओएसजे/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)

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