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पश्चिम बंगाल महिला वोटरों के हाथों में है सत्ता की चाबी

प्रभाकर मणि तिवारी
५ अप्रैल २०२१

पश्चिम बंगाल के सबसे अहम विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी इस बार महिलाओं के हाथों में है. राज्य के 7.18 करोड़ मतदाताओं में से 3.15 करोड़ महिलाएं हैं.

Indien | Westbengalen | Wahlen | Wählerinnen
तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि कोई भी पार्टी इनकी अनदेखी नहीं कर सकती. देश के दूसरे राज्यों के उलट राजनीतिक रूप से जागरूक इन महिलाओं की अपनी सोच भी है. इसलिए कुछ तबकों को छोड़ दें तो ज्यादातर घरों में अपने वोट का फैसला महिलाएं खुद करती हैं.

पश्चिम बंगाल में टीएमसी और बीजेपी महिला मतदाताओं का समर्थन हासिल करने की कोशिश के तहत महिलाओं से जुड़े मुद्दे उठा रही हैं. इन दोनों ने अपने घोषणापत्र में भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दी है. राज्य के वोटरों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात बीते साल के 956 प्रति हजार से बढ़ कर 961 हो गया है. यह एक नया रिकॉर्ड है.

महिला वोटरों की तादाद बढ़ी

टीएमसी ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 42 में से 17 सीटों पर यानी 41 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया था जबकि वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की तादाद 45 थी. बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 31 महिलाओं को मैदान में उतारा था. टीएमसी ने इस बार 50 महिलाओं को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने 32 महिलाओं को.

राज्य की महिलाएं वर्ष 2006-07 तक लेफ्ट के साथ मजबूती से खड़ी थीं. लेकिन सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के बाद वे ममता बनर्जी का समर्थन करने लगीं. अब बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने भी महिला वोटरों में खासी पैठ बनाई थी और उसका उसे जबरदस्त फायदा भी मिला.

तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

महिला वोटरों को लुभाने की कवायद

बीजेपी और टीएमसी दोनों एक-दूसरे पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहने के आरोप लगा रही हैं. इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार की ओर से महिलाओं के हित में शुरू की गई योजनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है. सत्ता के दोनों दावेदारों की रणनीति में यह बदलाव खासकर बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों के विश्लेषण के बाद आया है. इससे यह बात सामने आई थी कि महिलाओं के समर्थन से ही एनडीए वहां सत्ता बचाने में कामयाब रहा था.

लेफ्ट-कांग्रेस गठजोड़ की निगाहें भी इस तबके के वोटरों पर हैं. लेफ्ट फ्रंट के अध्यक्ष विमान बोस कहते हैं, "एक महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद राज्य में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. बीजेपी के शासन वाले राज्यों में भी महिलाओं की हालत और बदतर है. ऐसे में महिलाएं अबकी लेफ्ट-कांग्रेस गठजोड़ को विकल्प मानते हुए हमारा समर्थन करेंगी."

घोषणापत्र में महिला वोटरों पर जोर

दोनों दलों के घोषणापत्रों से साफ है कि इनमें सबसे ज्यादा जोर महिला वोटरों पर है. टीएमसी ने न्यूनतम आय योजना के तहत सामान्य वर्ग के परिवारों की महिला मुखिया को मासिक पांच सौ और आदिवासी और अनुसूचित जाति/जनजाति के परिवारों को एक हजार रुपये देने का ऐलान किया है.

टीएमसी ने एक हजार रुपये का विधवा भत्ता सबको देने की बात कही है. वर्ष 2016 के चुनाव में ममता बनर्जी के समर्थन के बाद सरकार ने महिलाओं के हित में कन्याश्री और रूपश्री जैसी योजनाएं शुरू की थीं. इनके तहत लड़कियों को शिक्षा और शादी के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है.

दूसरी ओर, बीजेपी ने टीएमसी की कन्याश्री और रूपश्री जैसी योजनाओं की काट के लिए 18 साल की उम्र पूरा करने वाली लड़कियों को एकमुश्त दो लाख रुपये के अलावा उनको सरकारी नौकरियों में 33 फीसदी आरक्षण देने, केजी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई मुफ्त करने के अलावा मुफ्त परिवहन सुविधा और सरकारी नौकरियों में 33 फीसदी आरक्षण देने का भी वादा किया है. बीजेपी ने विधवा भत्ते की रकम तीन हजार रुपये करने की घोषणा की है.

बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी की ओर से मिले झटकों के बाद ममता बनर्जी ने अपनी सरकार की विकास योजनाओं और बीजेपी शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि के प्रचार-प्रसार के लिए पार्टी के गैर-राजनीतिक मोर्चे 'बोंगो जननी' का गठन किया था. दरअसल इसके गठन का मुख्य मकसद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद महिलाओं के बीच पार्टी की खिसकती जमीन को दोबारा हासिल करना था.

महिला और बाल विकास मंत्री और 'बोंगो जननी' की महासचिव शशि पांजा कहती हैं, "टीएमसी सरकार ने पश्चिम बंगाल में अपने शासन के 10 सालों में कन्याश्री जैसी ऐसी कई योजनाएं लागू की हैं जिनको दुनिया भर में सराहा जा चुका है. महिलाओं और लड़कियों को इन योजनाओं से काफी लाभ मिला है." उनका कहना है कि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर हमें बीजेपी के प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं है. पांजा कहती हैं, "कई सरकारें सिर्फ महिला सशक्तिकरण की बात करती हैं. लेकिन राज्य सरकार ने इसे अमली जामा भी पहनाया है. ग्राम पंचायतों तक में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है."

उधर, बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान में महिलाओं की सुरक्षा और तस्करी को प्रमुख मुद्दा बनाया है. वह महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और आदिवासी इलाकों में महिलाओं की तस्करी के मुद्दे पर भी टीएमसी सरकार को कठघरे में खड़ा करने में जुटी है. प्रदेश बीजेपी महिला मोर्चा प्रमुख अग्निमित्रा पॉल कहती हैं, "महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और दूसरे अपराधों में वृद्धि से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में अब महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद सरकार महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में फेल रही है." लेकिन टीएमसी इन आरोपों को निराधार बताती है.

टीएमसी ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 42 में से 17 सीटों पर यानी 41 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया था जबकि वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की तादाद 45 थी. बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 31 महिलाओं को मैदान में उतारा था. टीएमसी ने इस बार 50 महिलाओं को टिकट दिया है जबकि बीजेपी ने 32 महिलाओं को.

राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "पश्चिम बंगाल में महिलाएं भी राजनीतिक रूप से काफी जागरूक हैं. इनका समर्थ किसी भी पार्टी का राजनीतिक समीकरण बनाने या बिगाड़ने में सक्षम है. यही वजह है कि सत्ता के दोनों प्रमुख दावेदारों यानी टीएमसी और बीजेपी ने अपने घोषणापत्रों में महिलाओं से जुड़े मुद्दों को तरजीह दी है. इसके साथ ही चुनाव अभियान के दौरान भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर खास जोर दिया जा रहा है."

अबकी बार महिलाएं किसका समर्थन करेंगी इसका जवाब तो दो मई को ही मिलेगा. लेकिन यह तो तय है कि इस बार यह आधी आबादी ही तय करेगी कि राज्य में सत्ता का सेहरा किसके सिर बंधेगा.

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