चुनावी रैलियों के बीच तेजी से पांव पसारता कोरोना संक्रमण
प्रभाकर मणि तिवारी
१९ अप्रैल २०२१
पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ते संक्रमण के बीच सीपीएम से लेकर कांग्रेस और टीएमसी ने अपनी रैलियां स्थगित करने या उसमें कटौती करने का एलान किया है. लेकिन बीजेपी ने अब तक ऐसा कुछ नहीं कहा है.
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अमित शाह ने शुक्रवार को कहा था कि चुनाव से कोरोना संक्रमण का कोई संबंध नहीं है. चुनाव आयोग की ओर से आयोजित सर्वदलीय बैठक के बावजूद रैलियों में कोविड प्रोटोकॉल का सरेआम उल्लंघन हो रहा है. नतीजतन नए मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में बढ़ते संक्रमण के लिए बीजेपी और केंद्र को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने केंद्र से जरूरी दवाओं और वैक्सीन की तत्काल सप्लाई करने की भी मांग की है. इस मुद्दे पर कलकत्ता हाईकोर्ट की सख्ती और चुनाव आयोग की ओर से आयोजित सर्वदलीय बैठक के बावजूद स्थिति जस की तस है.
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चुनाव या कोरोना?
बढ़ते कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए लेफ्ट, कांग्रेस और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने तो अपनी रैलियों और रोड शो में कटौती का एलान कर दिया है. लेकिन बीजेपी ने अब तक इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इससे राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि उसकी प्राथमिकता चुनाव है या कोरोना. लेकिन अमित शाह के बयान को ध्यान में रखें तो पार्टी का अपने चुनाव अभियान में कटौती का कोई इरादा नहीं है. शाह ने शुक्रवार को एक इंटरव्यू में कहा था कि चुनाव के साथ कोरोना संक्रमण बढ़ने का कोई संबंध नहीं है. उनकी दलील थी कि महाराष्ट्र में तो सबसे ज्यादा संक्रमण है. क्या वहां चुनाव हो रहे हैं?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में चुनाव अभियान के साथ संक्रमण बढ़ने का सीधा संबंध है. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. मार्च के पहले सप्ताह में जब चुनाव अभियान की शुरुआत हुई थी, तो दो मार्च को संक्रमण के नए मामलों की संख्या महज 171 थी. 27 मार्च को जिस दिन पहले चरण का मतदान हुआ था, राज्य में 24 घंटों के दौरान 812 नए मामले सामने आए थे और चार लोगों की मौत हुई थी. लेकिन अब यह आंकड़ा साढ़े चार हजार के पार पहुंच गया है. पहली अप्रैल यानी दूसरे चरण के मतदान के दिन यह आंकड़ा 1,274 था जो तीसरे चरण के मतदान के दिन बढ़ कर 2,058 तक पहुंच गया. उसके बाद 10 अप्रैल यानी चौथे चरण के मतदान के दिन 4,043 नए मामले सामने आए थे. अब नौ दिनो के भीतर ऐसे मामलों की संख्या दोगुनी से ज्यादा बढ़ कर ऐसे मामले नौ हजार तक पहुंच गई है.
कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीते सप्ताह इस मुद्दे पर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को रैलियों और रोड शो के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए सभी जिलाशासकों से राजनीतिक कार्यक्रमों में कोरोना की स्थिति पर नजर रखने को कहा है. अदालत ने आयोग से इस मुद्दे पर रिपोर्ट भी मांगी है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने 16 अप्रैल को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. लेकिन उसके बाद भी उसका कोई जमीनी असर नहीं नजर आ रहा है.
क्या रुकता है रात के कर्फ्यू से: कोरोना या काम?
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण की इस खतरनाक लहर का मुकाबला करने के लिए कई शहरों में रात का कर्फ्यू लगा हुआ है. क्या रात का कर्फ्यू कोरोना को रोकने में प्रभावी है या इस से भी तालाबंदी की तरह आर्थिक नुकसान ज्यादा होता है?
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
रात का कर्फ्यू
दिल्ली में 30 अप्रैल तक रात 10 बजे से सुबह के पांच बजे तक कर्फ्यू लगा रहेगा. इस समय दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों के कई शहरों में रात का कर्फ्यू लगा हुआ है. आवश्यक उत्पाद और सेवाएं देने वाले क्षेत्रों के कई संस्थानों को खुले रहने की अनुमति है.
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व्यापारी मायूस
कई व्यापारियों का कहना है कि तालाबंदी की मार से वो अभी उबरे भी नहीं थे, और अब ये कर्फ्यू आ गया. 10 बजे तक सब घर पहुंच जाएं इसके लिए दुकानों को नौ बजे ही बंद करना होगा. इसका मतलब है कि ग्राहकों के लिए उससे भी पहले दुकान बंद करनी पड़ेगी क्योंकि ग्राहकों के जाने के बाद भी सारा सामान समेट कर दुकान बंद करने में आधा-एक घंटा लग जाता है.
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मौसम की मार
दुकानें, दफ्तर, फैक्ट्रियां आदि जल्दी बंद करने का मतलब है उत्पादन और बिक्री में कटौती, जिससे व्यापारियों को नुकसान होगा. इसके अलावा उत्तर भारत में गर्मियों का मौसम चल रहा है. दिन में तापमान ज्यादा होने की वजह से लोग सामान लेने बाजारों में शाम में ही जाते हैं. दुकानें अगर जल्दी बंद हो गईं तो खरीदारी दिन की ही तरह शाम में भी मंदी ही रहेगी.
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कारखानों का संकट
लोहा, स्टील के सामान बनाने वाले कारखानों में दिन-रात काम चलता है. भट्टियां दिन-रात जलती रहती हैं, मजदूर शिफ्टों में काम करते हैं और सामान की आवाजाही तो रात में ही होती है. फैक्टरी मालिकों को डर है कि रात के कर्फ्यू से इन सब चीजों पर असर पड़ेगा.
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रेस्तरां वालों को नुकसान
सभी खाने पीने वाले संस्थानों में भी लोग शाम के बाद ही आते हैं और देर रात भोजन कर के वापस लौटते हैं. जल्दी बंद करने से इन्हें भी कमाई करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलेगा.
तस्वीर: Sajjad HUSSAIN/AFP
ऑटो/टैक्सी चलाने वालों को नुकसान
ऑटो/टैक्सी वालों को भी तालाबंदी में भारी नुकसान हुआ था. अभी भी उनकी कमाई महामारी के पहले जैसे स्तर से बहुत दूर थी, और अब फिर से रात को आवाजाही पर प्रतिबंध लगने से पिछले साल के नुकसान की भरपाई के रास्ते भी बंद हो गए हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/X. Galiana
शादी, अन्य कार्यक्रमों की दिक्कत
जिन लोगों ने पहले से शादी जैसे कार्यक्रमों की तारीख तय की हुई है और सभी इंजताम कर लिए हैं, वो सोच में हैं कि कहीं विवाह स्थल 10 बजे के बाद बंद तो नहीं कर दिए जाएंगे. मेहमानों के आने-जाने पर भी असर पड़ सकता है.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance
अर्थव्यवस्था पर असर
उत्पादन, बिक्री और अन्य आर्थिक गतिविधियां अगर घटेंगी तो जीडीपी के बढ़ने की दर पर भी असर पड़ेगा. कर वसूली के जरिए होने वाली सरकार की कमाई को भी चोट पहुंचेगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
रमजान हो जाएगा फीका
13 अप्रैल से रमजान का महीना शुरू हो रहा है और मुस्लिम श्रद्धालुओं को चिंता है कि कर्फ्यू की वजह से वो फीका पड़ जाएगा. रमजान में तरावीह की खास नमाज मस्जिदों में रात में ही पढ़ी जाती है और दिन भर के रोजे के बाद इफ्तार, मिलना-जुलना और खरीदारी समेत सब कुछ शाम को ही होता है. कई लोग रोजा तोड़ने के लिए छोटे रेस्तरां जैसी जगहों पर भी निर्भर होते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
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राजनीतिक दलों की पहल
कोरोना के बढ़ते संक्रमण को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर सीपीएम ने पहल ही और कोई बड़ी सभा या रैली आयोजित नहीं करने का फैसला किया था. लेफ्ट फ्रंट की ओर से एक ट्वीट में कहा गया, "पश्चिम बंगाल चुनाव के बाकी चरणों के दौरान बड़ी सभाओं के आयोजन से परहेज करने का फैसला किया है. इसकी बजाय घर-घर जाकर और सोशल मीडिया के जरिए अभियान चलाने पर जोर दिया जाएगा." सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम कहते हैं, "लेफ्ट फ्रंट अब किसी बड़ी रैली या रोड शो का आयोजन नहीं करेगा. मौजूदा स्थिति के लिए केंद्र और राज्य जिम्मेदार हैं."
उसके बाद राहुल गांधी ने भी अपनी तमाम रैलियां रद्द कर दूसरे दलों से भी ऐसा करने की अपील की है. लेकिन उसके बाद भी बीजेपी से लेकर तृणमूल की रैलियों और रोड शो में उमड़ती भीड़ कोविड प्रोटोकॉल को ठेंगा दिखाती रही. अब राज्य में संकट गहराने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि कोलकाता में वे महज एक प्रतीकात्मक रैली करेंगे. उसके अलावा न तो कोई रोड शो होगा और न ही रैली. उनकी बाकी रैलियां छोटी होंगी और उनके समय में भी काट-छांट की गई है. अब कहीं भी ममता की रैली आधे घंटे में ही खत्म हो जाएगी.
दूसरी ओर, बीजेपी का कहना है कि वह सोशल मीडिया समेत प्रचार के दूसरे तरीकों पर जोर दे रही है. प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, "पार्टी के नेताओं की तमाम रैलियों और रोड शो में कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है." हालांकि तमाम टीवी चैनलों पर नजर आने वाली तस्वीरें अलग ही कहानी कहती हैं. भट्टाचार्य ने राहुल गांधी के चुनावी रैलियां नहीं करने के फैसले को नाटक बताया है.
कोरोना लहर के बीच कुंभ में शाही स्नान
देश में कोरोना वायरस की खतरनाक लहर के बीच हरिद्वार में लगे कुंभ में लाखों लोग दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. इन तस्वीरों को देख कर आपको विश्वास नहीं होगा कि देश में महामारी ने फिर से पांव पसार लिए हैं.
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
ना मास्क, ना सामाजिक दूरी
हरिद्वार में महाकुंभ एक अप्रैल से चल रहा है और इसमें शामिल होने के लिए पूरे देश से लाखों लोग लगातार जा रहे हैं. 12 अप्रैल को एक शाही स्नान की तिथि थी और इस दिन गंगा नदी में डुबकी लगाने के लिए मेले में लाखों लोगों की भीड़ देखी गई.
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
कर्फ्यू भी, कुंभ भी
यह जमावड़ा ऐसे समय पर हो रहा है जब देश में एक दिन में संक्रमण के इतने नए मामले सामने आ रहे हैं, जितने महामारी की शुरुआत से आज तक नहीं आए. कई राज्यों में रात का कर्फ्यू और सप्ताहांत की तालाबंदी लागू है और कई राज्य एक बार फिर पूरी तालाबंदी लगाने का विचार कर रहे हैं. हरिद्वार और उत्तराखंड के दूसरे इलाकों में भी पहले से कहीं ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं.
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
प्रशासन लाचार
देश के दूसरे इलाकों में पुलिस कोविड-19 दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वालों का चालान कर रही है और कई तरह के जुर्माने लगा रही है. लेकिन हरिद्वार में कुंभ के लिए उमड़ी भीड़ को प्रशासन बस लाचार हो कर देख रहा है. मेले में आए कुछ संतों समेत कई लोगों को संक्रमण हो चुका है, लेकिन आयोजन जस का तस चल रहा है.
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
नियम बेकार
कुंभ शुरू होने से पहले प्रशासन ने कहा था कि मेले में शामिल होने के लिए ई-पास उन्हीं को मिलेंगे जो आरटी-पीसीआर टेस्ट में नेगेटिव पाए जाने का सर्टिफिकेट दिखाएंगे. लेकिन मेले में ही लोगों के संक्रमित पाए जाने के बाद यह इंतजाम बेकार साबित हो गए हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
दी गई थी चेतावनी
मेला शुरू होने से पहले कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने प्रशासन से इस तरह के जमावड़ों की अनुमति ना देने की अपील की थी. उनका कहना था कि इससे महामारी तेजी से फैलेगी, लेकिन आयोजन के समर्थकों ने इन चिंताओं को नकार दिया था.
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
चिंताजनक स्थिति
दूसरे शहरों में लगे रात के कर्फ्यू और सप्ताहांत की तालाबंदी की तस्वीरों को कुंभ की तस्वीरों से मिला कर देखें तो यह कहा मुश्किल हो जाएगा कि यह सब एक साथ एक ही देश के अंदर चल रहा है. वो भी ऐसा देश जो कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में दूसरे पायदान पर खड़ा है. इस समय पूरी दुनिया में संक्रमण के हर छह मामलों पर एक मामला भारत में है.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
अभी बढ़ेगा संकट
कुंभ मेला अभी 18 दिन और चलेगा. 12 अप्रैल जैसे दो और शाही स्नान अभी आने बाकी हैं, जिनमें से एक 14 अप्रैल को होना है और दूसरा 27 अप्रैल को. दूसरे तरफ हरिद्वार के साथ साथ पूरे देश में संक्रमण पहले से भी तेज गति से फैल रहा है.
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
क्या लग पाएगा अंकुश?
कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आस्था के नाम पर लोगों की जान के साथ ऐसी लापरवाही ठीक है?
तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
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ममता का पत्र
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश भर में तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण में नाकाम रहने की वजह से अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. ममता ने रविवार को प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में बंगाल में कोरोना की परिस्थिति का जिक्र करते हुए उनसे वैक्सीन, ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं की सप्लाई सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया है.
ममता ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में नाकाम रहे हैं. वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि चमकाने के लिए वैक्सीन का निर्यात कर रहे हैं, जबकि देश में इसकी भारी कमी है. मुख्यमंत्री ने कहा, "मौजूदा परिस्थिति के लिए मोदी ही जिम्मेदार हैं. बीजेपी गुजरात में तो संक्रमण से निपटने में नाकाम हैं ही, उसने बंगाल समेत दूसरे राज्यों में भी संक्रमण बढ़ा दिया है."
उन्होंने दोहराया कि सरकार ने चुनाव से पहले राज्य के तमाम लोगों को मुफ्त वैक्सीन देने के लिए इसकी 5.4 करोड़ डोज मांगी थी. लेकिन केंद्र ने उसका कोई जवाब ही नहीं दिया. राज्य सरकार इस वैक्सीन की कीमत देने को तैयार है. देश में ऑक्सीजन और रेमडेसिवीर की भी भारी कमी है. आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है? टीएमसी प्रमुख का कहना था, "वैक्सीन, ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं के मुद्दे से निपटने की बजाय मोदी बंगाल में चुनावी रैलियों में हिस्सा ले रहे हैं."
लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रमण से होने वाली मौतों को रोकने के लिए ऑनलाइन प्रचार पर जोर दिया जाना चाहिए. एक विशेषज्ञ अरिंदम विश्वास कहते हैं, "राहुल गांधी ने इस मामले में ठोस पहल की है. दूसरे दलों को उनके दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए." वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम के महासचिव राजीव पांडेय कहते हैं, "तमाम राजनीतिक दलों को अपनी रैलियां और रोड शो तुरंत बंद कर देने चाहिए."
चुनाव आए तो याद आए पुरुलिया के दस्तकार
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया को छऊ नृत्य के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. इसके बावजूद इस नृत्य के लिए जरूरी मुखौटों को बनाने वाले गरीब दस्तकारों का जीवन संघर्ष भरा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चारिदा गांव
पुरुलिया के बाघमुंडी में अयोध्या पहाड़ों के पास स्थित है चारिदा गांव, जिसे मुखौटों वाला गांव भी कहा जाता है. छऊ नृत्य में इस्तेमाल किए जाने वाले विविध और रंगीन मुखौटे यहीं बनते हैं. इस गांव में सैकड़ों परिवार रहते हैं, जिनमें से कई परिवार पीढ़ियों से ये मुखौटे बनाते आ रहे हैं.
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छऊ नृत्य के मुखौटे
चारिदा को दूर दूर तक इन मुखौटों की वजह से ही जाना जाता है. ये रंग-बिरंगे और आकर्षक मुखौटों के बिना छऊ अधूरा है. इन मुखौटों और रंगीन पोशाकों को पहन कर छऊ नर्तक कभी देवी-देवताओं की भूमिका में तो कभी दंतकथाओं के किसी नायक की भूमिका में नाच प्रस्तुत करते हैं.
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घर भी सजाते हैं मुखौटे
इन दिनों इन मुखौटों का इस्तेमाल सिर्फ नृत्य के लिए ही नहीं बल्कि घर की दीवारों को सजाने के लिए भी किया जाता है. कई तरह के मुखौटों में यहां के दस्तकारों का हुनर देखते ही बनता है.
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कैसे बनते हैं मुखौटे
सबसे पहले सांचों में मिट्टी को भरा जाता है और सुखाया जाता है. सूख जाने पर मिट्टी को सांचे में से निकाल कर कागज की कई परतों में लपेट दिया जाता है. उसके बाद उसे पॉलिश किया जाता है, उस पर रंग चढ़ाया जाता है और फिर उसे सजाया जाता है. अंत में उसे चमकाया जाता है. मुखौटे की आंखों में छेद कर दिया जाता है, ताकि पहनने वाला ठीक से देख सके.
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छऊ नर्तक
छऊ एक आदिवासी नृत्य है, एक उत्सव का नृत्य. इसकी शुरुआत पुरुलिया से ही हुई थी, और बाद में यह झारखंड और ओडिशा तक पहुंच गया. हालांकि उन राज्यों में किए जाने वाले छऊ की शैली थोड़ी अलग है.
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गरीबी के अंधेरे में
पुरुलिया पश्चिम बंगाल के सबसे गरीब इलाकों में से है. यहां रहने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त छऊ कलाकार भी गरीबी में ही अपना जीवन बिताते हैं. उन्हें इस नृत्य की परंपरा को जिंदा रखने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चुनावों का 'त्यौहार'
पश्चिम बंगाल में होने वाले विधान सभा चुनावों की वजह से राजनीतिक पार्टियों का ध्यान छऊ नर्तकों और मुखौटे बनाने वालों पर गया है. सभी दल इनके लिए कई घोषणाएं कर रहे हैं. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने छऊ नर्तकों के लिए मासिक वेतन की व्यवस्था की है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
परंपरा जीवित है
चुनावों के आते ही छऊ से जुड़े लोगों के जीवन में बहार आ गई है. राजनीतिक दल उन्हें याद कर रहे हैं और उन्हें वादों के सब्ज-बाग दिखा रहे हैं.