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राजभवन और सरकार में टकराव से संवैधानिक संकट का खतरा

प्रभाकर मणि तिवारी
६ दिसम्बर २०१९

पश्चिम बंगाल में राजभवन और राज्य सरकार के बीच तेज होते टकराव की वजह से संवैधानिक संकट का खतरा पैदा हो गया है. इस टकराव के चक्कर में ही दो दिन विधानसभा स्थगित रही.

Indien Gouverneur von Westbengalen Jagdeep Dhankhar
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tiwari

कई प्रस्तावित विधेयकों को राज्यपाल जगदीप धनखड़ की ओर से मंजूरी नहीं मिलने की वजह से विधानसभा दो दिनों के लिए स्थगित कर दी गई है. दूसरी ओर, राजभवन की ओर से जारी एक बयान में विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के लिए सरकारी विभागों को जिम्मेदार ठहराया गया है.

देश में शायद यह पहला मौका है जब राज्यपाल की हरी झंडी नहीं मिलने की वजह से विधानसभा का सत्र स्थगित किया गया हो. उसके बाद गुरुवार को पहले से सूचना देने के बावजूद राज्यपाल जब विधानसभा पहुंचे तो उनके लिए तय गेट पर ताला लगा था. वह सामान्य लोगों के लिए बने गेट से पैदल ही भीतर गए. उसके बाद लगातार तीसरे दिन शुक्रवार को जब बी. आर. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने राज्यपाल जब विधानसभा पहुंचे तो वहां विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी समेत तमाम वरिष्ठ अधिकारी गैर-हाजिर थे.

बढ़ता विवाद

पार्थ चटर्जीतस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tiwari

यूं तो बीती जुलाई में राज्यपाल के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद से ही जगदीप धनखड़ और राज्य सरकार के बीच  रिश्तों में तनाव रहे हैं, लेकिन इस सप्ताह यह विवाद चरम पर पहुंच गया है. पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष विमान बनर्जी ने एक अभूतपूर्व फैसले में मंगलवार को विधानसभा दो दिनों के लिए स्थगति रखने का फैसला किया. इसकी वजह यह है कि इस दौरान जिन विधेयकों को सदन में पेश किया जाना है उनको अब तक राज्यपाल जगदीप धनखड़ की मंजूरी नहीं मिली है. बनर्जी ने सदन में बताया कि विधानसभा पांच दिसंबर तक स्थगित रहेगी.

उनका कहना था, "सदन दो दिनों के लिए स्थगित रहेगा. जिन विधेयकों को पेश किया जाना था उनको अब तक राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल सकी है. विधेयकों को छपाई के लिए भेजा गया था, लेकिन राजभवन से हरी झंडी नहीं मिलने की वजह से उनको सदन में पेश नहीं किया जा सकता.” उन्होंने बताया कि सदन पांच दिसंबर तक स्थगित रहेगा और छह दिसंबर से शीतकालीन अधिवेशन दोबारा शुरू होगा. सदन में किसी विधेयक को पेश करने से पहले उस पर राज्यपाल की अनुमति अनिवार्य है.

दूसरी ओर, राजभवन से जारी एक बयान में कहा है कि बनर्जी ने जो तस्वीर पेश की है उसका तथ्यों के आधार पर समर्थन नहीं किया जा सकता. बयान में कहा गया है कि विधायिका के कामकाज में कोई देरी नहीं हुई है और राजभवन इसे सर्वोच्च प्राथमिकता देता है. बयान में यह भी कहा गया है कि कई बार सरकार के अलग अलग विभागों की ओर से समय पर जवाब नहीं मिलने की वजह से देरी हो जाती है.
गुरुवार को विधानसभा के गेट पर ताला लगे होने के बाद राज्यपाल ने मीडिया से बातचीत में राज्य सरकार और विधानसभा अध्यक्ष की जम कर खिंचाई की थी. उन्होंने इस घटना को संविधान और लोकतंत्र के लिए बेहद शर्मनाक करार दिया था.

शुरू से ही टकराव

तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tiwari

जगदीप धनखड़ ने इस साल जुलाई में यहां राज्यपाल के तौर पर कार्यभार संभाला था. वैसे पिछले राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के कार्यकाल के आखिरी दिनों में भी सरकार के साथ उनके रिश्ते काफी तल्ख हो गए थे. नए राज्यपाल के साथ तो उनके शपथ लेने के महीने भर बाद से ही टकराव शुरू हो गया था. बीती 30 जुलाई को धनखड़ ने राज्यपाल के तौर पर शपथ ली थी.

शपथग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल के बीच काफी सद्भाव नजर आया था. लेकिन वह पहला मौका था और उसके बाद यह दोनों लोग बस एक बार ही और साथ नजर आए थे. वह मौका था ममता के घर पर  कालीपूजा का. तब राज्यपाल सपत्नीक उनके घर गए थे, लेकिन उसके बाद इन दोनों के बीच कड़वाहट बढ़ने का सिलसिला लगातार तेज हुआ है.

तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और संसदीय कार्यमंत्री पार्थ चटर्जी कई बार धनकड़ पर संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करने का आरोप लगा चुके हैं. तृणमूल कांग्रेस ने राज्यपाल पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा कि वे सरकारी अधिकारियों के खिलाफ राजनीतिक बयान दे रहे हैं. तृणमूल महासचिव पार्थ चटर्जी ने तब कहा था, "संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति की वेबजह अति-सक्रियता और सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप उचित नहीं है.” चटर्जी ने राज्यपाल की आलोचना करते हुए कहा है कि उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में ऐसा कोई राज्यपाल नहीं देखा है जो रोजाना मुख्यमंत्री व राज्य सरकार की आलोचना करता हो और रोजाना मीडिया को बयान देता हो.

धनकड़ ने भी उनके आरोपों पर पलटवार करते हुए अपनी टिप्पणियों को सही ठहराया है. कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल ने किसी का नाम लिए बिना कहा,"लोगों को लक्ष्मण रेखा पार किए बिना अपनी ड्यूटी करनी चाहिए. मैं कभी लक्ष्मणरेखा पार नहीं करूंगा. लेकिन आप सबको भी इसका ख्याल रखना चाहिए.” तृणमूल के स्थानीय सांसद कल्याण बनर्जी कहते हैं, "राज्यपाल बीजेपी में रहे हैं. इसलिए उनको पहले बीजेपी के लोगों को इस मंत्र का पालन करने की सीख देनी चाहिए. वह हाल में बंगाल आए हैं और उनको राज्य के बारे में बहुत कम जानकारी है.”

तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tiwari

पहले राज्यपाल धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कम से कम एक-दूसरे के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की थी. अब तो दोनों-एक-दूसरे का नाम लिए बिना खुल कर बोलने लगे हैं. राज्यपाल ने ममता बनर्जी और राज्य सरकार पर राज्यपाल पद की गरिमा कम करने, अपमानित करने जैसे आरोप लगाए हैं तो ममता ने उनका नाम लिए बिना कहा है कि कुछ लोग समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजभवन और राज्य सरकार के बीच लगातार चौड़ी होती खाई लोकतंत्र के हित में नहीं हैं.राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ पंडित कहते हैं, "अब राज्यपाल और राज्य सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री खुल कर एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं. इससे संवैधानिक संकट पैदा होने का खतरा बढ़ रहा है. राज्य में अगले साल सौ से ज्यादा नगर निगमों और उसके बाद वर्ष 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं.

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