एक स्टडी के मुताबिक भेड़ों में चेहरे पहचानने की क्षमता होती है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस स्टडी की मदद से मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों के बारे में और भी अधिक जानकारी जुटायी जा सकेगी.
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तस्वीरों में नजर आ रही इन भेड़ों को महज ऊन देने वाला नहीं समझा जाना चाहिये क्योंकि ये भेड़ें आपका चेहरा भी पहचान सकती हैं. रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस पत्रिका में छपे एक अध्ययन के मुताबिक भेड़ों में इंसानों की तरह ही चेहरों की पहचान करने की क्षमता होती है. स्टडी के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने आठ भेड़ों का परीक्षण दिया और इसके बाद देखा कि ये पशु पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फिल्म हैरी पॉटर की अभिनेत्री एमा वॉटसन, ब्रिटेन की एक टीवी होस्ट और अमेरिकी अभिनेता को पहचानने में सफल रही हैं.
पिछले शोध बताते हैं कि भेड़ उनके ईदगिर्द रहने वाले इंसानों की पहचान कर लेते हैं. लेकिन इस बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं थी कि क्या ये अंजान या नये चेहरों को भी पहचान पाते हैं. इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने भोजन का इस्तेमाल कर तस्वीरों के जरिये भेड़ों को इन लोगों से पहचान करवाने की कोशिश की. इस पूरे प्रयोग में भेड़ों को दस बार ये चेहरे दिखाये गये और दिलचस्प है कि दस में से 8 बार ये सही चेहरा पहचान पाये.
ये हैं कुछ नशाप्रेमी पशु
ड्रग्स और नशे से सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि बिल्ली, हाथी, घोड़े जैसे तमाम जानवर भी आकर्षित होते हैं. पशुओं की तमाम प्रजातियां इन ड्रग्स का आनंद लेने से नहीं चूकती. एक नजर ऐसे पशुओं और इनके नशे पर..
ड्रग्स का इस्तेमाल करने वाले पशुओं में सबसे ज्यादा नाम बिल्लियों का लिया जाता है. ये बिल्लियां कैटनिप नामक जड़ीबूटी को लेने के बाद अपने व्यवहार में जबरदस्त बदलाव लाती हैं. बिल्लियां कैटनिप का फूल खाती है और इसकी पत्तियों और छाल को शरीर पर रगड़ लेती हैं और कुछ ही मिनटों में बिल्ली का नया रूप सामने आता है.
तस्वीर: TERMITE FILMS
हाथी
भारत में हाथियों की पूजा की जाती है और इनकी सूझ-बूझ की तारीफ भी की जाती है. विज्ञान बताता है कि हाथियों के कुछ भाव इंसानों जैसे ही हैं. इंसानों की ही तर्ज पर ये शराब पीने के शौकीन होते हैं. हाथियों में शराब पीने की प्रवृत्ति भारत और अफ्रीका के कई इलाकों में बड़ी समस्या बन गई है.
जिस तरह इंसान निकोटीन पसंद करते हैं उसी तरह घोड़ों को लोकोवीड भाता है. लोकोवीड का पौधा ठंडक वाली जगहों में आसानी से मिल जाता है और इसे देखकर घोड़ों समेत गाय और भेड़ों का भी मन डोल जाता है. दो हफ्ते तक लगातार लोकोवीड का सेवन जानवरों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इसके अधिक सेवन से मौत भी हो जाती है. जानवरों को इनसे बचाने के लिये लगातार कोशिशें की जा रहीं है.
तस्वीर: Reuters/D. W. Cerny
डॉल्फिन
पफर मछली एक खास तरह की मछली होती है जिनमें न्यूरोटॉक्सिन नाम का ड्रग पाया जाता है. यूं तो ये मछली जहरीली मानी जाती है लेकिन डॉल्फिन पर इसका जहर नुकसान की बजाय नशा चढ़ा देता है. प्राणी विज्ञानी रॉबर्ट पिल्लै की स्टडी बनी एक डॉक्युमेंटरी फिल्म बताती है कि युवा डॉल्फिन पफर फिश को इसके नशीले व्यवहार के चलते ही पसंद करती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/OKAPIA KG/J. Rotman
वालाबी
ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया के क्षेत्र में पायी जाने वाली कंगारू परिवार की एक प्रजाति वालाबी अफीम खाने का शौक रखती है. तस्मानिया के एक अखबार "द मरकरी" ने साल 2014 में वालाबी में अफीम की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते देश के दवा कारोबार को हो रहे नुकसान पर एक रिपोर्ट छापी थी.
तस्वीर: AP
मधुमक्खियां
शराब सिर्फ इंसानों और उनके पूर्वजों को ही पसंद नहीं थी बल्कि यह पशु-पक्षियों की कई प्रजातियों को भी लुभाती है. रिसर्च के मुताबिक अगर मधुमक्खियों को मौका मिलता है तो वे 100 फीसदी शुद्ध ईथानॉल का सेवन करती हैं. 100 फीसदी ईथानॉल को पीना एक आम इंसान के लिये भी आसान नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/empics/B. Batchelor
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शोधकर्ताओं ने यह भी जांचा कि क्या ये भेड़ें अलग-अलग कोणों से तस्वीरों की पहचान कर पाती है. शोधकर्ताओं के मुताबिक इस पूरे टास्क में भेड़ों को 66 फीसदी सफलता मिली. जब इस टास्क में भेड़ों को उनके ईदगिर्द रहने वालों की तस्वीरें दिखायी, तो भेड़ 72 फीसदी सफल रहे. स्टडी बताती है कि भेड़ों को न केवल अंजाने चेहरों की पहचान करने के लिए ट्रेंनिंग दी जा सकती है, साथ ही इनके आसपास रहने वाले लोगों की पहचान भी टू-डी इमेज के जरिये करायी जा सकती है.
चेहरा पहचानने की काबिलियत खास तौर पर इंसानों में होती है. भेड़ों के अलावा, चिंपांजी, गाय, बकरियां, कबूतर अपने परिवारों की पहचान कर लेते हैं. वहीं कुछ स्टडी बताती हैं कि घोड़े, कुत्ते, भेड़ आदि पशु अन्य प्रजातियों के चेहरे भी पहचान सकते हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भेड़ों की इस स्टडी की मदद न्यूरोडिजनरेटिव बीमारियां मसलन ह्यूटिंगटन रोगों में की जा सकेगी. रिसर्चर उम्मीद कर रहे हैं कि इस स्टडी से सामान्य मस्तिष्क को समझने में मदद मिलेगी जिसके बाद यह समझना आसान हो सकता है कि बीमारी ग्रस्त दिमाग कैसे काम करता है.
चेस विंटर/एए
मेला पशुओं का मौज इंसानों की
भारत में इन दिनों पशु मेलों की बहार है. एक तरफ पुष्कर में ऊंटों का मेला है तो दूसरी तरफ हरिहर क्षेत्र यानी सोनपुर का मेला. दोनों मेले अपनी विशालता और विशिष्ट पहचान के लिए विख्यात हैं. देखिए इन मेलों की रौनक.
तस्वीर: Uni
सोनपुर मेला
बिहार में पटना के पास सोनपुर का मेला एशिया में पशुओँ का सबसे बड़ा मेला है. कहते हैं कि भारत में आमतौर पर दिखने वाला शायद ही कोई पशु पक्षी होगा जो यहां नहीं बिकता हो.
तस्वीर: Uni
ऊंटों का मेला
पुष्कर मेले में पूरे राजस्थान से ऊंट बिकने के लिए बड़ी संख्या में जमा होते हैं. ऊंटों के बड़े छोटे व्यापारी अपने ऊंट यहां लेकर आते हैं और मनचाही कीमत पर बेचने की कोशिश करते हैं.
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विदेशी सैलानी
इन दोनों मेलों में विदेशी सैलानी भी आते हैं, पुष्कर में तो इनकी बड़ी तादाद जमा होती है. ये लोग यहां घूमते फिरते और भारत की संस्कृति के विविध रंगों को देखते हैं.
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हर तरह के ऊंट
पुष्कर में ऊंटों की कई किस्में बिकने के लिए आती हैं और ऊंटो को पाल कर बड़ा करने वाले पूरे साल इस मेले का इंतजार करते हैं.
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रेत ही रेत
पुष्कर का मेला रेगिस्तान में सजता है. रेत का जहाज कहा जाने वाला ऊंट इस मेले का मुख्य आकर्षण है और यहां इसकी आन बान देखते ही बनती है.
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घोड़ों का मेला
आप चाहे सोनपुर जाएं या फिर पुष्कर, घोड़े आपको दोनों जगह बिकते मिलेंगे. हर तरह की नस्ल के घोड़े इन दोनों मेले में बिकने आते हैं.
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घोड़े की सवारी
बिहार में अब तांगे तो नहीं चलते और वहां शादियों में दूल्हा घोड़े की बजाय कारों में शादी करने जाते हैं लेकिन फिर भी लोग शौक के लिए घोड़े खरीदते और पालते हैं.
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पुष्कर मेला
राजस्थान के पुष्कर में लगने वाला यह सालाना मेला वैसे तो ऊंटों के मेले के नाम से भी विख्यात है लेकिन इस मेले में दूसरे जानवरों की खरीद बिक्री भी खूब होती है.
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हाथियों का मेला
सोनपुर के मेले में हाथियों की खूब खरीद बिक्री होती है. तस्वीर में दिख रहा हाथी भी बिकने के लिए आया है. लोग हाथियों की सवारी का भी मजा लेते हैं.
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भगवान भला करे
मेला भले ही पशुओं का है लेकिन आस्था भी अपनी जगह है, सब कुछ अच्छे से हो जाये इसके लिए दुआ मांगता एक ऊंटों का व्यापारी.
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कुछ मीठा हो जाये
बिना मिठाइयों के कहां बात बनती है, मेला हो या कोई और बाजार पहले तो पेट पूजा का इंतजाम होना जरूरी है. इसके बिना काम नहीं चलता.
तस्वीर: picture-alliance / dpa
मेला की संस्कृति
कहने के लिए तो ये पशुओं के मेले हैं, लेकिन यहां नाच गाने से लेकर तमाम तरह की सांस्कृतिक गतिविधियां दिखाई देती हैं. कई तरह के मुकाबले भी होते हैं.
तस्वीर: AP
मेले के रंग
मेले में तरह तरह के नाच गाने, नाटक और खेल होते हैं, इनके रंग इतने विविध है कि आंखें चुंधिया जाती है.