मानव शरीर में सूअर का गुर्दा
२१ अक्टूबर २०२१सर्जरी एक ऐसे व्यक्ति पर की गई जिसे दिमागी तौर पर मृत घोषित कर दिया गया था. व्यक्ति वेंटीलेटर पर था और उसके परिवार ने विज्ञान की तरक्की के लिए दो दिन के इस प्रयोग को करने की अनुमति दी थी. डोनर जीव जेनेटिकली मॉडिफाइड था.
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय लैंगोन के प्रतिरोपण संस्थान के निदेशक रॉबर्ट मोंटगोमरी ने बताया, "उसने वो कर दिखाया जो उसे करना चाहिए था, मतलब मानव अपशिष्ट को निकालना और पेशाब बनाना." गुर्दे ने एक और बेहद जरूरी काम भी किया. उसने मरीज के शरीर में क्रिएटिनिन नाम के मॉलिक्यूल के स्तर को भी कम कर दिया.
पहला कदम
क्रिएटिनिन गुर्दे के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है. इस मरीज में प्रतिरोपण के पहले क्रिएटिनिन का स्तर बढ़ा हुआ था. मोंटगोमरी को कई सहकर्मियों के साथ मिल कर सर्जरी करने में करीब दो घंटे लग गए. इस टीम ने मरीज की एक टांग के ऊपरी हिस्से में मौजूद धमनियों को गुर्दे से जोड़ा ताकि वो उसका अवलोकन कर सकें और बायॉप्सी के लिए सैंपल ले सकें.
मोंटगोमरी ने बताया कि मरीज जब दिमागी रूप से जीवित था तब अंगदान करना चाहता था लेकिन जब उसके परिवार को बताया गया कि उसके अंग दान के लिए योग्य नहीं हैं वो वो शुरू में निराश हो गए थे. लेकिन "जब उन्हें एहसास हुआ कि यह अंगदान का ही एक और अवसर है तो उन्होंने राहत की सांस ली."
करीब 54 घंटों तक चले परीक्षण के बाद मरीज को वेंटीलेटर से हटा लिया गया और उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई. इससे पहले शोध में पाया गया था कि सूअरों का गुर्दा बंदरों में एक साल तक काम करता है, लेकिन एक इंसान के शरीर पर यह कोशिश पहली बार की गई थी.
डोनर सूअर एक ऐसे समूह का हिस्सा था जिसकी जेनेटिक एडिटिंग की गई थी ताकि एक विशेष किस्म की चीनी को बनाने वाले एक जीन को निष्क्रिय किया जा सके. इस चीनी का अगर उत्पादन हो जाता तो यह एक मजबूत इम्यून प्रतिक्रिया को शुरू कर देती जिसकी वजह से अंग को अस्वीकार कर दिया जाता. जेनेटिक एडिटिंग बायोटेक कंपनी रेविविकोर ने की थी. रेविविकोर यूनाइटेड थेराप्यूटिक्स की नियंत्रित कंपनी है.
दो सालों में क्लिनिकल ट्रायल
मोंटगोमरी कहते हैं, "अभी से तीन हफ्तों, तीन महीनों या तीन सालों के बाद क्या होगा यह अभी भी एक सवाल है. इस सवाल को हल करने का एक ही तरीका है और वो है इसका एक जीवित इंसान पर ट्रायल करना. लेकिन मुझे लगता है कि यह एक बेहद आवश्यक दर्मियानी कदम है जो हमें यह बताता है कि कम से कम शुरुआत में तो चीजें ठीक होंगी."
वो अगले महीने इन नतीजों को एक वैज्ञानिक पत्रिका में छपने के लिए भेजने की योजना बना रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि क्लिनिकल ट्रायल करीब एक या दो सालों में हो सकता है. संस्थान के बाहर विशेषज्ञों ने सावधानीपूर्वक इस खबर का स्वागत किया. उन्होंने यह भी कहा कि वो ठोस नतीजों पर पहुंचने से पहले समकक्ष समीक्षित डाटा देखना चाहेंगे.
बरमिंघम विश्वविद्यालय के सर्जन हाईनेक मरगेंटल ने एक बयान में कहा, "यह समाचार जेनोट्रांसप्लांटेशन क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि है." उन्होंने यह भी कहा कि अगर इसकी पुष्टि हो जाती है, तो "यह अंग प्रतिरोपण के क्षेत्र में आगे की तरफ एक प्रमुख कदम होगा जो डोनर अंगों की कमी की समस्या का समाधान कर सकेगा."
सीके/एए (एएफपी)