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पाइड पाइपर ऑफ मुंबई

२५ नवम्बर २०१०

कचरों की ढेर में घुटने तक वह धंसा हुआ है. उसके हाथ में एक टॉर्च है. अंधेरे में टॉर्च की रोशनी में उसकी आंखें ढूंढ़ रही हैं - चूहों को. साबिद अली शेख मुंबई में रहता है, उसका पेशा है चूहों को पकड़ना.

मुंबई चूहों का साम्राज्य

मुंबई वृहन नगर पालिका की ओर से 44 ऐसे चूहा पकड़ने वालों को नौकरी दी गई है - और कोई चारा नहीं रह गया था. गंदगी में वह काम करता है, लेकिन ड्यूटी खत्म होने के बाद कायदे से साबुन लगाकर नहाता है, वह सफाई का बहुत ध्यान रखता है. शाइनिंग इंडिया के एक कोने में मुंबई की एक चॉल में वह रहता है, उसके पिता भी चूहे पकड़ते हैं, भाई ठेले पर सब्जी बेचते हैं, 13 वर्ग मीटर के एक कमरे में उसके परिवार के 15 लोग रहते हैं - दीवारों से प्लास्टर झड़ता है, जमीन पर प्लास्टिक की थैलियों में उनके कपड़े होते हैं.

आसान नहीं था 23 साल के साबिद अली शेख के लिए ऐसी एक नौकरी पाना. 18 से 30 तक की उम्र के नौजवानों को ऐसी नौकरी मिलती है. उन्हें पचास किलो का एक बोरा ढोना पड़ता है, कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, हर दस मिनट पर कम से कम एक चूहा मारना पड़ता है. हफ्ते में 6 रात, हर रात 30 चूहे. अगर कम हों, तो पगार काट ली जाती है.

कोटा अगर पूरा हो, तो साबिद को महीने में 12 हजार रुपए मिलते हैं. तनख्वाह अच्छी है, आखिर कॉल सेंटर में भी 15 हजार रुपए ही मिलते हैं. और यह तो पक्की सरकारी नौकरी है. काफी किस्मतवाला है वह. उसके डिपार्टमेंट के अफसर अरुण बामने कहते हैं कि 33 पोस्ट के लिए 4 हजार एप्लिकेशन आए थे. उसके पिता जाहेद गबुल शेख तीस सालों से यही काम किए जा रहे हैं. उन्हें महीने में 17 हजार रुपए मिलते हैं. वे अपने बेटे को समझाते हैं, मेहनत से काम कर, किस्मत खिले तो दिन की ड्युटी मिलने लगेगी. फिर उसे चुहेदानी और जहर की टिकिया डालनी पड़ेगी.

जाहिद गबुल शेख कहते हैं, उन्हें बीमार होने का डर नहीं है. ऊपर अल्लाह हैं - वह कहते हैं. आठ साल की उम्र में वह आये थे. अपने पिता से मिलने. वह सड़क पर मूगफली बेचते थे, फुटपाथ पर बाप बेटा सोते थे. फिर एकदिन एक लेडी आई, पूछा - सरकारी नौकरी करोगे? उन्होंने मेरी जिंदगी बदल दी - जाहिद गबुल शेख कहते हैं. उसके 9 बच्चे हैं, बीवी है, एक बेटे की शादी हो चुकी है. मैं खाली हाथ आया था. आज नौकरी है, बच्चे हैं, परिवार है. बस इतना ही चाहता हूं कि बच्चों की किस्मत भी अच्छी हो.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: एन रंजन

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