पेट्रोल और डीजल बहुत सस्ता हो जाए, तो जाहिर है ग्राहकों के चेहरे खिल उठेंगे. लेकिन पर्यावरण और आखिरकार इंसान को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी. कनाडा और अमेरिका के बीच की कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन इस बहस का केंद्र बन चुकी है.
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अमेरिकी सरकार ने इसी साल अनुमान लगाया कि कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का कितना उत्सर्जन होगा. लेकिन स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों का दावा है कि यह अनुमान सही नहीं है. संस्था के शोध में पता चला है कि पाइपलाइन की चलते तेल तीन डॉलर प्रति बैरल सस्ता हो जाएगा. सस्ता तेल यानी ज्यादा खपत.
करीब 3400 किलोमीटर की कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन के जरिए पश्चिमी कनाडा की रिफाइनरियों से अमेरिका में टेक्सास की खाड़ी तक तेल लाने की योजना है. अमेरिकी सरकार के मुताबिक पाइपपाइन से हर साल तीन करोड़ टन कार्बन डायॉक्साइड का उत्सर्जन होगा. वहीं स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट के मुताबिक सीओटू का उत्सर्जन 12.1 करोड़ टन होगा. नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पाइपलाइन तेल की खपत घटाने के लिए उठाए जा रहे कदमों को डगमगा देगी.
अमेरिका की वेस्लेयान यूनिर्सिटी के पर्यावरण अर्थशास्त्री गैरी योहे भी रिसर्च को सहमत हैं, "सस्ता तेल सुनने में अच्छा लगता है कि लेकिन यहां कोई भी चीज मुफ्त नहीं है. सस्ते तेल से ग्राहक भले ही खुश हों जाएं लेकिन धरती नहीं होगी." 2013 में दुनिया भर में तेल की खपत ने 36 अरब टन सीओटू छोड़ी. ससेक्स यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री रिचर्ड टोल मानते हैं कि कीस्टोन की वजह से यह उत्सर्जन कम तो नहीं ही होगा.
कुछ अमेरिकी विशेषज्ञ सस्ते तेल की ज्यादा खपत को आधार बना कर किए गए इस शोध से बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं. अमेरिकन पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट की प्रवक्ता सबरीना फांग के मुताबिक, "अगर पाइपलाइन नहीं बनाई जाए तो तेल रेल और टैंकरों के जरिए लाया जाएगा और इसमें भी तो खर्चा और उत्सर्जन होगा ही."
30 इंच मोटी कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन पर करीब एक दशक से बहस चल रही है. पाइपलाइन संबंधी सारे प्रस्ताव तैयार हैं. बस अमेरिकी सरकार की हरी झंडी का इंतजार है. राष्ट्रपति बराक ओबामा साफ कर चुके हैं कि अगर पाइपलाइन से सीओटू का उत्सर्जन अनुमान के मुताबिक होगा, तभी वो काम को आगे बढ़ाएंगे. इस मुद्दे पर अमेरिकी संसद भी बंटी हुई है.
ओएसजे/एजेए (एपी)
दुनिया की सबसे प्रदूषित जगहें
प्रदूषित मिट्टी, रासायनिक कचरा, इलेक्ट्रॉनिक कबाड़-ग्रीन क्रॉस फाउंडेशन के प्रदूषित पर्यावरण पर रिपोर्ट कहती है कि 20 करोड़ लोग सीधे तौर पर पर्यावरण प्रदूषण से सामना कर रहे हैं. देखिए दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित जगहें.
तस्वीर: Blacksmith Institute
प्रदूषण में जीवन
करीब 20 करोड़ लोग सीधे तौर पर प्रदूषित पर्यावरण में जीने को मजबूर हैं. भारी धातुओं से दूषित मिट्टी, हवा में घुलने वाले रासायनिक कचरे या फिर नदी के पानी में इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ का बहाना. खतरे की घंटी बजाने वाले ये कुछ खतरनाक उदाहरण हैं जिन्हें ग्रीन क्रॉस फाउंडेशन की रिपोर्ट में बताया गया है.
तस्वीर: picture alliance/JOKER
घाना
पश्चिम अफ्रीका के दूसरे सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक कबाड़खाने में इस्तेमाल किए गए डिश एंटिना और टूटे टेलीविजन सेटों का अंबार लगा है. यह दुनिया की सबसे प्रदूषित जगहों में से एक है. कीमती तांबे को निकालने के लिए तारों को जलाया जाता है जिससे जहरीला धुआं उठता है. खास कर सीसे से सेहत को भारी खतरा रहता है.
तस्वीर: Blacksmith Institute
सीतारूम नदी, इंडोनेशिया
इंडोनेशिया की सीतारूम नदी में एल्यूमीनियम और लोहे की मात्रा पीने के पानी के मानदंड से 1,000 गुना ज्यादा है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि करीब 2,000 फैक्ट्रियां इस नदी के पानी का इस्तेमाल करती हैं और साथ ही कारखाने से निकलने वाला कचरा नदी के पानी में बहाया जाता है. इंडोनेशिया के लाखों लोग इस नदी पर निर्भर हैं.
तस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images
जेयशिंस्क, रूस
रूस के रासायनिक उद्योगों में सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक जेयशिंस्क है. 1930 और 1980 के बीच यहां 3,00,000 टन रासायनिक कचरे का निपटारा किया गया. रासायनिक कचरे की वजह से यहां भू-जल के साथ साथ हवा भी प्रदूषित है. जेयशिंस्क में महिलाओं की औसत उम्र 47 साल है जबकि पुरुष 42 साल की उम्र में बूढ़े हो जाते हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
चेर्नोबिल, यूक्रेन
चेर्नोबिल के परमाणु हादसे को इतिहास की सबसे घातक परमाणु दुर्घटना माना जाता है. 25 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल परमाणु रिएक्टर में धमाका हुआ. आज भी चेर्नोबिल के 30 किलोमीटर के दायरे में कोई नहीं रहता है. परमाणु संयंत्र के पास की जमीन अब भी दूषित है. यहां अनाज पैदा करना जोखिम भरा काम है. चेर्नोबिल के नजदीक रहने वाले कई लोग कैंसर के शिकार हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
हजारीबाग, बांग्लादेश
बांग्लादेश के हजारीबाग में सबसे ज्यादा चमड़े के कारखाने हैं. इनमें से ज्यादातर कारखाने पुराने तरीके से काम करते हैं और रोजाना करीब 22,000 लीटर जहरीला कचरा बड़ीगंगा नदी में बहाते हैं. ये ढाका के सबसे महत्वपूर्ण पानी के स्रोतों में से एक है. कैंसरकारी पदार्थ के कारण कई लोग त्वचा की बीमारियों से पीड़ित हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
काबवे, जांबिया
जांबिया के दूसरे सबसे बड़े शहर काबवे में बच्चों के खून में भारी मात्रा में सीसा मिला है. यहां सदियों से सीसे की खानें हैं जिनसे भारी धातु धूल के कणों के रूप में निकलते हैं और जमीन में मिल जाते हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
कालीमंतन, इंडोनेशिया
कालीमंतन इंडोनेशिया के बोर्नियो द्वीप का हिस्सा है. यह सोने की खदानों के लिए मशहूर है. सोने की खदानें को खोजने को लिए यहां पारे का इस्तेमाल किया जाता है. इस कारण हर साल 1,000 टन जहरीले पदार्थ पर्यावरण और भू-जल में मिल जाते हैं.
अर्जेंटीना की नदी मतांसा रियाचुएलो में करीब 15,000 कारखाने अपना कचरा बहाते हैं. विशेष रूप से रासायनिक उत्पादक नदी में एक तिहाई प्रदूषण के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. नदी के पानी में भारी मात्रा में निकेल, जस्ता, सीसा, तांबा और अन्य भारी धातु मिले हुए हैं. इस इलाके में पेट की कई तरह की बीमारियां आम हैं.
तस्वीर: Yanina Budkin/World Bank
नाईजीरियाई डेल्टा, नाईजीरिया
यह नाईजीरिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक है. नाईजीरिया की कुल आबादी का 8 फीसदी हिस्सा यहां रहता है. जहरीले तेल और हाइड्रोकार्बन की वजह से यहां की मिट्टी और भू-जल बेहद प्रदूषित हैं. तेल दुर्घटना या फिर चोरी के कारण औसतन हर साल यहां करीब 2,40,000 बैरल तेल पहुंचता है.
तस्वीर: Terry Whalebone
नोरिल्स्क, रूस
रूस के औद्योगिक शहर नोरिल्स्क में प्रदूषण के हालात ये हैं कि हर साल करीब 500 टन तांबा और निकेल ऑक्साइड के साथ 20 लाख टन सल्फर ऑक्साइड वातावरण में उत्सर्जित होते हैं. यहां कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की औसत उम्र अन्य रूसियों से 10 वर्ष कम है और फेफड़े का कैंसर होने का खतरा बना रहता है.