पहले अपने कश्मीर को आजाद करे पाकिस्तान: पाकिस्तानी कश्मीरी
अब्दुल सत्तार, इस्लामाबाद
६ फ़रवरी २०२०
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के राष्ट्रवादी दल पाकिस्तान सरकार से नाखुश हैं. उनका कहना है कि पाकिस्तान को वाकई कश्मीरियों की चिंता है तो वह सबसे पहले अपने नियंत्रण वाले कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान के लोगों को आजादी दे.
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पाकिस्तान और उसके हिस्से वाले कश्मीर में हर साल पांच फरवरी को सरकारी स्तर पर कश्मीरियों से एकजुटता जाहिर करने के लिए कश्मीर दिवस मनाया जाता है. इस साल भी इस मौके पर वहां कई कार्यक्रम हुए. लेकिन जम्मू कश्मीर की आजादी पर विश्वास रखने वाली राष्ट्रवादी पार्टियां इस तरह के आयोजनों को संदेह की नजर से देखती हैं. उनका कहना है कि पाकिस्तान सरकार की तरफ से "कश्मीर दिवस" मनाने से कश्मीरियों का कोई भला नहीं होता, बल्कि आजादी के लिए उनके संघर्ष को इससे नुकसान ही होता है.
पाकिस्तान में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष तौकीर गिलानी का कहना है कि भारत पहले ही आरोप लगाता है कि कश्मीर के हथियारबंद लोगों को पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है. उन्होंने कहा, "कश्मीर दिवस जैसे कार्यक्रमों को भारत दुष्प्रचार के लिए इस्तेमाल करता है. आज के दिन उन्होंने यासीन मलिक और हथियारबंद कश्मीरियों की तस्वीरें एक साथ लगा दी हैं. इससे जेकेएलएफ के उन कार्यकर्ताओं को बहुत नुकसान हो सकता है, जो भारतीय कश्मीर में आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हम ना तो हथियार उठाने में विश्वास रखते हैं और ना ही हम आजादी के लिए धर्म का इस्तेमाल करने का समर्थन करते हैं. हमारी जद्दोजहद सेक्युलर है, जिसका हिस्सा मुसलमान, हिंदू, सिख और हर तरह का कश्मीरी हो सकता है."
आजादी के बाद से ही कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक फांस बना हुआ है. कश्मीर के मोर्चे पर कब क्या क्या हुआ, जानिए.
तस्वीर: AFP/R. Bakshi
1947
बंटवारे के बाद पाकिस्तानी कबायली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.
तस्वीर: dapd
1948
भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पास किया जिसमें पूरे इलाके में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई.
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1948
लेकिन प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से सैनिक हटाने से इनकार कर दिया. और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.
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1951
भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह का जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.
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1953
जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. जम्मू कश्मीर की नई सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगाई.
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1957
भारत के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.
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1962-63
चीन ने 1962 की लड़ाई भारत को हराया और अक्साई चिन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.
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1965
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गए.
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1971-72
दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.
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1984
भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब न हुआ.
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1987
जम्मू कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर उग्रवाद भड़काने का आरोप लगाया, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.
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1990
गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गए. जम्मू कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले अफ्सपा कानून लगा.
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1999
घाटी में 1990 के दशक में हिंसा जारी रही. लेकिन 1999 आते आते भारत और पाकिस्तान फिर लड़ाई को मोर्चे पर डटे थे. कारगिल की लड़ाई.
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2001-2008
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की कोशिशें पहले संसद पर हमले और और फिर मुबई हमले समेत ऐसी कई हिंसक घटनाओं से नाकाम होती रहीं.
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2010
भारतीय सेना की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत पर घाटी उबल पड़ी. हफ्तों तक तनाव रहा और कम से कम 100 लोग मारे गए.
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2013
संसद पर हमले के दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी गई. इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में दो लोग मारे गए. इसी साल भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मिले और तनाव को घटाने की बात हुई.
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2014
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गए. लेकिन उसके बाद नई दिल्ली में अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात पर भारत ने बातचीत टाल दी.
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2016
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में आजादी के समर्थक फिर सड़कों पर आ गए. अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और गतिरोध जारी है.
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2019
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 46 जवान मारे गए. इस हमले को एक कश्मीरी युवक ने अंजाम दिया. इसके बाद परिस्थितियां बदलीं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है.
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2019
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्थता करने की मांग की. लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा.
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2019
5 अगस्त 2019 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस संशोधन के मुताबिक अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. लद्दाख को भी एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. धारा 35 ए भी खत्म हो गई है.
तस्वीर: Reuters
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भारत ने अपने हिस्से वाले कश्मीर में अशांति की वजह सीमापार से होने वाले आतंकवाद को बताया है. उसका कहना है कि पाकिस्तान घाटी में सक्रिय चरमपंथियों की मदद कर रहा है. पाकिस्तान इस तरह के आरोपों से इनकार करता रहा है. उसका कहना है कि वह सिर्फ नैतिक और कूटनीतिक स्तर पर कश्मीरियों का समर्थन करता है. पिछले साल जब भारत ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया तो पाकिस्तान ने इस पर तीखी आपत्ति दर्ज कराई और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की थी.
तौकीर गिलानी का कहना है, "अगर पाकिस्तान वाकई कश्मीरियों से एकजुटता दिखाना चाहता है तो वह सबसे पहले अपने नियंत्रण वाले कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान को आजादी दे. हमें इस्लामाबाद में दूतावास खोलने दे और हमें कूटनीतिक लड़ाई लड़ने दे. हमें पाकिस्तान की सिर्फ नैतिक और कूटनीतिक मदद चाहिए. इस कदम से भारत पर भी दबाव पड़ेगा कि वह अपने हिस्से वाले कश्मीर को खाली करे."
दूसरी तरफ, जमात ए इस्लामी के पूर्व प्रमुख काजी हुसैन अहमद की बेटी और पूर्व सांसद राहिला काजी कश्मीरी राष्ट्रवादियों से कहती हैं, "मेरे पिता ने ही कश्मीर दिवस को शुरू कराया था. अफगान जिहाद की कामयाबी से कश्मीरियों में आजादी की इच्छा जगी. उन्होंने देखा कि जब एक छोटा सा देश सोवितय संघ जैसी ताकत को हरा सकता है. तो वे भी अपनी आजादी हासिल कर सकते हैं. उनके संघर्ष को भारत ने बेदर्दी से कुचला, जिसकी वजह से कुछ कश्मीरी युवाओं ने पाकिस्तान में शरण ली और जमात ए इस्लामी ने उनकी नैतिक मदद की. आज हम यह चाहते हैं कि कश्मीरियों को अपने भाग्य का फैसला करने का हक मिले और कश्मीर एकजुटता दिवस से कश्मीरियों के अधिकारों का रास्ता प्रशस्त हो."
दुनिया भर में कुछ ऐसे विवाद हैं जो कभी भी युद्ध भड़का सकते हैं. ये सिर्फ दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को लड़ाई में खींच सकते हैं.
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दक्षिण चीन सागर
बीते दशक में जब यह पता चला कि चीन, फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और कंबोडिया के बीच सागर में बेहद कीमती पेट्रोलियम संसाधन है, तभी से वहां झगड़ा शुरू होने लगा. चीन पूरे इलाके का अपना बताता है. वहीं अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल चीन के इस दावे के खारिज कर चुका है. बीजिंग और अमेरिका इस मुद्दे पर बार बार आमने सामने हो रहे हैं.
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पूर्वी यूक्रेन/क्रीमिया
2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप को यूक्रेन से अलग कर दिया. तब से क्रीमिया यूक्रेन और रूस के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है. यूक्रेन क्रीमिया को वापस पाना चाहता है. पश्चिमी देश इस विवाद में यूक्रेन के पाले में है.
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कोरियाई प्रायद्वीप
उत्तर और दक्षिण कोरिया हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहते हैं. उत्तर कोरिया भड़काता है और दक्षिण को तैयारी में लगे रहना पड़ता है. दो किलोमीटर का सेनामुक्त इलाका इन देशों को अलग अलग रखे हुए हैं. उत्तर को बीजिंग का समर्थन मिलता है, वहीं बाकी दुनिया की सहानुभूति दक्षिण के साथ है.
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कश्मीर
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा कश्मीर दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य मौजूदगी वाला इलाका है. दोनों देशों के बीच इसे लेकर तीन बार युद्ध भी हो चुका है. 1998 में करगिल युद्ध के वक्त तो परमाणु युद्ध जैसे हालात बनने लगे थे.
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साउथ ओसेटिया और अबखासिया
कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे इन इलाकों पर जॉर्जिया अपना दावा करता है. वहीं रूस इनकी स्वायत्ता का समर्थन करता है. इन इलाकों के चलते 2008 में रूस-जॉर्जिया युद्ध भी हुआ. रूसी सेनाओं ने इन इलाकों से जॉर्जिया की सेना को बाहर कर दिया और उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे दी.
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नागोर्नो-काराबाख
नागोर्नो-काराबाख के चलते अजरबैजान और अर्मेनिया का युद्ध भी हो चुका है. 1994 में हुई संधि के बाद भी हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस इलाके को अर्मेनिया की सेना नियंत्रित करती है. अप्रैल 2016 में वहां एक बार फिर युद्ध जैसे हालात बने.
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पश्चिमी सहारा
1975 में स्पेन के पीछे हटने के बाद मोरक्को ने पश्चिमी सहारा को खुद में मिला लिया. इसके बाद दोनों तरफ से हिंसा होती रही. 1991 में संयुक्त राष्ट्र के संघर्षविराम करवाया. अब जनमत संग्रह की बात होती है, लेकिन कोई भी पक्ष उसे लेकर पहल नहीं करता. रेगिस्तान के अधिकार को लेकर तनाव कभी भी भड़क सकता है.
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ट्रांस-डिनिएस्टर
मोल्डोवा का ट्रांस-डिनिएस्टर इलाका रूस समर्थक है. यह इलाका यूक्रेन और रूस की सीमा है. वहां रूस की सेना तैनात रहती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पश्चिम और मोल्डोवा की बढ़ती नजदीकी मॉस्को को यहां परेशान कर सकती है.
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लेकिन पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की राजनीतिक पार्टी जम्मू कश्मीर पीपल्स नेशनल पार्टी के चेयरमैन जुल्फिकार अहमद एडवोकेट कश्मीर एकजुटता दिवस को 'धोखेबाजी' बताते हैं. उनका कहना है, "यह एकजुटता के नाम पर सबसे बड़ा झूठ है. भारत और पाकिस्तान, दोनों कश्मीरियों के इलाकों पर कब्जा जमाए बैठे हैं. पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र से वादा किया था कि वह अपनी सेनाएं कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान से निकाल लेगा, ये क्या कश्मीरियों से एकजुटता दिखाएंगे."
उनका कहना है कि यह दिन कश्मीरियों के धर्मनिरपेक्ष संघर्ष को छिपाने के लिए शुरू किया गया है. उनकी राय है, "अस्सी के दशक में नेशनल इंस्टीट्यूट फेडरेशन ने कश्मीर की आजादी के लिए संघर्ष शुरू किया था, जिसकी वजह से कश्मीरियों को दुनिया भर में समर्थन भी मिल रहा था. फिर जमात ए इस्लामी ने इस जद्दोजहद को नुकसान पहुंचाने के लिए कश्मीर दिवस को मनाना शुरू किया, जिसका मकसद कश्मीरियों को धर्म और संप्रदाय के आधार पर बांटना था और पूरे कश्मीर को छोड़कर सिर्फ घाटी पर बात करना था. इसीलिए हम इस दिन को नहीं मनाते."
कश्मीरी विद्वानों का विचार है कि जब तक पाकिस्तान कश्मीरी राष्ट्रवादियों की मांगों को मानते हुए उनकी आजादी का समर्थन नहीं करता, तब तक कश्मीरी राष्ट्रवादी कभी पाकिस्तान सरकार का समर्थन नहीं करेंगे. जाने माने कश्मीरी विद्वान खलीक अहमद कहते हैं, "पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर को पाकिस्तान में मिला दिया जाए, लेकिन कश्मीरी राष्ट्रवादी संगठन ना तो पाकिस्तान के साथ रहना चाहते हैं और ना ही भारत के साथ. बल्कि वे तो आजादी चाहते हैं."