पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में आजादी की आवाजें तेज हो रही हैं. कश्मीर के मुद्दे को हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने वाले पाकिस्तान से क्यों आजादी चाहते हैं कश्मीरी, पढ़िए.
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भारतीय कश्मीर और खासकर श्रीनगर में प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों का लाठी चार्ज या फिर गोलियां दागने की खबरें अकसर आती हैं. लेकिन नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तानी कश्मीर में ऐसे प्रदर्शनों की खबर आपने आखिरी बार कब देखी थी? यह सही है कि पाकिस्तानी कश्मीर में समस्याएं हैं, लेकिन हिंसक प्रदर्शन शायद ही कभी देखे गए हों. अब ऐसा हो रहा है.
हाल के समय में पाकिस्तानी कश्मीर से लगातार बड़े प्रदर्शनों की खबरें मिलती रही हैं. पाकिस्तान में आधिकारिक तौर पर "आजाद कश्मीर" कहे जाने वाले इस हिस्से की राजधानी मुजफ्फराबाद में 22 अक्टूबर को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं. रिपोर्टों के मुताबिक, पुलिस ने पीपल्स नेशनल अलायंस (पीएनए) नाम के एक संगठन की रैली में आए लोगों को तितर बितर करने की कोशिश की. पीएनए एक आजाद कश्मीर की वकालत करता है. खबरें हैं कि प्रदर्शन के दौरान कम से कम 100 लोग घायल हुए जबकि दर्जनों कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया.
प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि आजाद कश्मीर की मौजूदा विधानसभा को संवैधानिक सभा का दर्जा दिया जाए और इस इलाके को गिलगित बल्तिस्तान के साथ मिलाया जाए. समूचे विवादित जम्मू कश्मीर राज्य का जो हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में है, उसे उसने दो हिस्सों में बांट रखा है. एक को पाकिस्तान "आजाद कश्मीर" कहता है और दूसरे को गिलगित बल्तिस्तान.
आजादी के बाद से ही कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक फांस बना हुआ है. कश्मीर के मोर्चे पर कब क्या क्या हुआ, जानिए.
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1947
बंटवारे के बाद पाकिस्तानी कबायली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.
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1948
भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पास किया जिसमें पूरे इलाके में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई.
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1948
लेकिन प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से सैनिक हटाने से इनकार कर दिया. और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.
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1951
भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह का जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.
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1953
जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. जम्मू कश्मीर की नई सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगाई.
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1957
भारत के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.
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1962-63
चीन ने 1962 की लड़ाई भारत को हराया और अक्साई चिन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.
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1965
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गए.
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1971-72
दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.
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1984
भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब न हुआ.
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1987
जम्मू कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर उग्रवाद भड़काने का आरोप लगाया, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.
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1990
गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गए. जम्मू कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले अफ्सपा कानून लगा.
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1999
घाटी में 1990 के दशक में हिंसा जारी रही. लेकिन 1999 आते आते भारत और पाकिस्तान फिर लड़ाई को मोर्चे पर डटे थे. कारगिल की लड़ाई.
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2001-2008
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की कोशिशें पहले संसद पर हमले और और फिर मुबई हमले समेत ऐसी कई हिंसक घटनाओं से नाकाम होती रहीं.
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2010
भारतीय सेना की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत पर घाटी उबल पड़ी. हफ्तों तक तनाव रहा और कम से कम 100 लोग मारे गए.
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2013
संसद पर हमले के दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी गई. इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में दो लोग मारे गए. इसी साल भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मिले और तनाव को घटाने की बात हुई.
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2014
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गए. लेकिन उसके बाद नई दिल्ली में अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात पर भारत ने बातचीत टाल दी.
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2016
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में आजादी के समर्थक फिर सड़कों पर आ गए. अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और गतिरोध जारी है.
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2019
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 46 जवान मारे गए. इस हमले को एक कश्मीरी युवक ने अंजाम दिया. इसके बाद परिस्थितियां बदलीं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है.
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2019
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्थता करने की मांग की. लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा.
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2019
5 अगस्त 2019 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस संशोधन के मुताबिक अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. लद्दाख को भी एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. धारा 35 ए भी खत्म हो गई है.
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22 अक्टूबर से पहले इस महीने की शुरुआत में भी पाकिस्तानी पुलिस ने हजारों कश्मीरियों को नियंत्रण रेखा के पास जाने से रोका. ये लोग जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने और इस इलाके को दो हिस्सों में बांटने के भारत सरकार के फैसले पर विरोध जताने जा रहे थे. इस "फ्रीडम मार्च" की शुरुआत 4 अक्टूबर को हुई. इसका आयोजक जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ ) था जो पूरे कश्मीर की भारत और पाकिस्तान, दोनों से आजादी चाहता है.
पाकिस्तानी कश्मीर में जेकेएलएफ के अध्यक्ष तौकीर गिलानी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि प्रदर्शनकारियों को नियंत्रण रेखा की तरफ जाने से रोकने के पाकिस्तानी प्रशासन के फैसले से साफ होता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा को स्थायी सीमा मान लिया गया है और अब यह विवादित क्षेत्र नहीं रहा.
उन्होंने कहा, "हमने इस रैली का आयोजन कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले का विरोध करने के लिए किया था. हम मांग कर रहे हैं कि भारतीय अधिकारी कश्मीर में कर्फ्यू हटाएं, लोगों को आजादी से घूमने फिरने दें और सभी कैदियों को रिहा किया जाए."
उन्होंने कहा, "हम यह भी मांग करते हैं कि भारत और पाकिस्तान, कश्मीर के सभी हिस्सों से अपने सैनिक हटाएं और इसे एक विसैन्यीकृत क्षेत्र घोषित किया जाए. विसैन्यीकरण के बाद संयुक्त राष्ट्र को इस इलाके का नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहिए और फिर आने वाले सालों में वहां जनमत संग्रह कराया जाए."
गिलानी कहते हैं कि कश्मीर की तकलीफों पर पाकिस्तान सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है. उनके मुताबिक, "संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव दोनों तरफ के कश्मीरियों को नियंत्रण रेखा के आरपार आने जाने की अनुमति देता है. लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने आवाजाही को रोक दिया है, जिसका मतलब है कि उसने इसे स्थायी सीमा समझ लिया है."
विश्लेषक मानते हैं कि भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले ने पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर में भी आजादी के आंदोलन को तेज कर दिया है. अदील खान लंदन में रहते हैं और उन्होंने कश्मीर संकट पर जागरूकता बढ़ाने के लिए हाल में एक मुहिम शुरू की है. वह कहते हैं, "भारत और पाकिस्तान, दोनों से कश्मीर की आजादी की मांग करने वाले प्रगतिशील संगठन अब एक साथ आ रहे हैं. पीएनए एक ऐसा ही गठबंधन है, जिसने आजाद कश्मीर के प्रशासन के सामने कुछ मांगें रखी हैं."
देश का संविधान किसी राज्य को विशेष नहीं कहता लेकिन इसके बावजूद कई राज्यों को "विशेष दर्जा" प्राप्त है. वहीं कई राज्य अकसर यह मांग करते नजर आते हैं कि उन्हें यह दर्जा मिले. लेकिन क्या होता है राज्यों का "विशेष दर्जा."
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क्या है राज्यों का "विशेष दर्जा"
संविधान में किसी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने जैसा कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन विकास पायदान पर हर राज्य की स्थिति अलग रही है जिसके चलते पांचवें वित्त आयोग ने साल 1969 में सबसे पहले "स्पेशल कैटेगिरी स्टेटस" की सिफारिश की थी. इसके तहत केंद्र सरकार विशेष दर्जा प्राप्त राज्य को मदद के तौर पर बड़ी राशि देती है. इन राज्यों के लिए आवंटन, योजना आयोग की संस्था राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) करती थी.
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क्या माने जाते थे आधार
पहले एनडीसी जिन आधारों पर विशेष दर्जा देती थी उनमें था, पहाड़ी क्षेत्र, कम जनसंख्या घनत्व या जनसंख्या में बड़ा हिस्सा पिछड़ी जातियों या जनजातियों का होना, रणनीतिक महत्व के क्षेत्र मसलन अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इलाके, आर्थिक और बुनियादी पिछड़ापन, राज्य की वित्तीय स्थिति आदि. लेकिन अब योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ले ली है. और नीति आयोग के पास वित्तीय संसाधनों के आवंटन का कोई अधिकार नहीं है.
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14वें वित्त आयोग की भूमिका
केंद्र सरकार के मुताबिक, 14वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में राज्यों को दिए जाने वाले "विशेष दर्जा" की अवधारणा को प्रभावी ढंग से हटा दिया था. केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश के मसले पर कहा कि केंद्र, प्रदेश को स्पेशल कैटेगिरी में आने वाला राज्य मानकर वित्तीय मदद दे सकता है. लेकिन सरकार आंध्र प्रदेश को "विशेष राज्य" का दर्जा नहीं देगी.
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"विशेष दर्जा" का क्या लाभ
नीति आयोग से पहले योजना आयोग विशेष दर्जे वाले राज्य को केंद्रीय मदद का आवंटन करती थी. ये मदद तीन श्रेणियों में बांटी जा सकती है. इसमें, साधारण केंद्रीय सहयोग (नॉर्मल सेंट्रल असिस्टेंस या एनसीए), अतिरिक्त केंद्रीय सहयोग (एडीशनल सेंट्रल असिस्टेंस या एसीए) और विशेष केंद्रीय सहयोग (स्पेशल सेंट्रल असिस्टेंस या एससीए) शामिल हैं.
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क्या है मतलब
विशेष दर्जा प्राप्त राज्य में केंद्रीय नीतियों का 90 फीसदी खर्च केंद्र वहन करता है और 10 फीसदी राज्य. वहीं अन्य राज्यों में खर्च का 60 फीसदी ही हिस्सा केंद्र सरकार उठाती है और बाकी 40 फीसदी का भुगतान राज्य सरकार करती है.
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किन राज्यों के पास है दर्जा
एनडीसी ने सबसे पहले साल 1969 में जम्मू कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्जा दिया था. लेकिन कुछ सालों बाद तक इस सूची में अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा शामिल हो गए. साल 2010 में "विशेष दर्जा" पाने वाला उत्तराखंड आखिरी राज्य बना. कुल मिलाकर आज 11 राज्यों के पास यह दर्जा है.
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अन्य राज्यों की मांग
देश के कई राज्य "विशेष दर्जा" पाने की मांग उठाते रहे हैं. इसमें आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार की आवाजें सबसे मुखर रही है. लेकिन अब तक इन राज्यों को यह दर्जा नहीं दिया गया है.
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वह कहते हैं, "पीएनए की मांगें नई नहीं हैं. लेकिन उनके आंदोलन ने हाल के महीनों में रफ्तार पकड़ी है. आजाद कश्मीर में प्रगतिशील समूह अपनी विदेश नीति और अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण चाहते हैं." पाकिस्तानी कश्मीर के प्रधानमंत्री राजा फारूक हैदर खान एक स्वतंत्र विदेश नीति के समर्थक हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था का नियंत्रण पाकिस्तानी कश्मीर के प्रशासन को देने के लिए पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार कभी राजी नहीं होगी.
अदील खान कहते हैं, "प्रदर्शनकारी पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर में बदलाव की मांग कर रहे हैं, मिसाल के तौर पर संस्थानों के प्रमुखों में बदलाव. वे नए सिरे से चुनावों की मांग कर रहे हैं जिनमें आजादी समर्थक उम्मीदवार हिस्सा ले सकें." फिलहाल आजाद कश्मीर में लागू संविधान के तहत सिर्फ पाकिस्तान समर्थक उम्मीदवारों को चुनावों में हिस्सा लेने की अनुमति है.
स्टॉकहोम के नॉर्डिक कश्मीर ऑर्गेनाइजेशन के निदेशक तलत भट कहते हैं कि कश्मीर पर भारत के कदम के बाद, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान के प्रगतिशील समूहों ने मिल कर पीएनए का गठन किया है, जो एक स्वतंत्र, धर्मनिरपेक्ष और संयुक्त कश्मीर की वकालत करता है.
भट कहते हैं, "पीएनए ने 21 अक्टूबर को मुजफ्फराबाद पहुंचने से पहले दो हफ्तों तक छोटे बड़े शहरों में रैलियां कीं. लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा की तरफ बढ़ने वाले प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने हमला किया. अधिकारियों को डर था कि अगर प्रदर्शनकारी विधानसभा पर जमा हो गए, तो फिर उनके साथ धरने पर ज्यादा से ज्यादा लोग बैठेंगे. फिर यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठेगा."
भट कहते हैं कि 22 अक्टूबर को पुलिस और प्रदर्शनकारियों की झड़प ने दिखा दिया है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भी लोग आजाद नहीं हैं. वह कहते हैं कि पाकिस्तानी हिस्से वाले कश्मीर में भी लोगों का इंटरनेट बंद कर दिया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे भारतीय कश्मीर में होता है.
विश्लेषकों का कहना है कि भारत पाकिस्तानी कश्मीर में झड़पों का फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है. 22 अक्टूबर की झड़पों पर भारतीय मीडिया में चल रही रिपोर्टों में यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि कश्मीर लोगों की परेशानियों का जिम्मेदार अगर कोई है तो वह पाकिस्तान है, जो विश्लेषकों के अनुसार, शायद पूरा सच नहीं है.
दुनिया में कई जगहों पर अलग देशों को लेकर आंदोलन चल रहे हैं. विभिन्न ऐतिहासिक, राजनीतिक और आर्थिक कारणों से हो रहे ये आंदोलन दुनिया को नए देश दे सकते हैं.