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पाकिस्तानी कश्मीर में क्यों उठी आजादी की आवाजें

शामिल शम्स
२५ अक्टूबर २०१९

पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में आजादी की आवाजें तेज हो रही हैं. कश्मीर के मुद्दे को हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने वाले पाकिस्तान से क्यों आजादी चाहते हैं कश्मीरी, पढ़िए.

Pakistan Kaschmir Protestmarsch
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Mughal

भारतीय कश्मीर और खासकर श्रीनगर में प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों का लाठी चार्ज या फिर गोलियां दागने की खबरें अकसर आती हैं. लेकिन नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तानी कश्मीर में ऐसे प्रदर्शनों की खबर आपने आखिरी बार कब देखी थी? यह सही है कि पाकिस्तानी कश्मीर में समस्याएं हैं, लेकिन हिंसक प्रदर्शन शायद ही कभी देखे गए हों. अब ऐसा हो रहा है.

हाल के समय में पाकिस्तानी कश्मीर से लगातार बड़े प्रदर्शनों की खबरें मिलती रही हैं. पाकिस्तान में आधिकारिक तौर पर "आजाद कश्मीर" कहे जाने वाले इस हिस्से की राजधानी मुजफ्फराबाद में 22 अक्टूबर को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं. रिपोर्टों के मुताबिक, पुलिस ने पीपल्स नेशनल अलायंस (पीएनए) नाम के एक संगठन की रैली में आए लोगों को तितर बितर करने की कोशिश की. पीएनए एक आजाद कश्मीर की वकालत करता है. खबरें हैं कि प्रदर्शन के दौरान कम से कम 100 लोग घायल हुए जबकि दर्जनों कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया.

प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि आजाद कश्मीर की मौजूदा विधानसभा को संवैधानिक सभा का दर्जा दिया जाए और इस इलाके को गिलगित बल्तिस्तान के साथ मिलाया जाए. समूचे विवादित जम्मू कश्मीर राज्य का जो हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में है, उसे उसने दो हिस्सों में बांट रखा है. एक को पाकिस्तान "आजाद कश्मीर" कहता है और दूसरे को गिलगित बल्तिस्तान.

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22 अक्टूबर से पहले इस महीने की शुरुआत में भी पाकिस्तानी पुलिस ने हजारों कश्मीरियों को नियंत्रण रेखा के पास जाने से रोका. ये लोग जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने और इस इलाके को दो हिस्सों में बांटने के भारत सरकार के फैसले पर विरोध जताने जा रहे थे. इस "फ्रीडम मार्च" की शुरुआत 4 अक्टूबर को हुई. इसका आयोजक जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ ) था जो पूरे कश्मीर की भारत और पाकिस्तान, दोनों से आजादी चाहता है.

पाकिस्तानी कश्मीर में जेकेएलएफ के अध्यक्ष तौकीर गिलानी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि प्रदर्शनकारियों को नियंत्रण रेखा की तरफ जाने से रोकने के पाकिस्तानी प्रशासन के फैसले से साफ होता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा को स्थायी सीमा मान लिया गया है और अब यह विवादित क्षेत्र नहीं रहा. 

उन्होंने कहा, "हमने इस रैली का आयोजन कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले का विरोध करने के लिए किया था. हम मांग कर रहे हैं कि भारतीय अधिकारी कश्मीर में कर्फ्यू हटाएं, लोगों को आजादी से घूमने फिरने दें और सभी कैदियों को रिहा किया जाए."

उन्होंने कहा, "हम यह भी मांग करते हैं कि भारत और पाकिस्तान, कश्मीर के सभी हिस्सों से अपने सैनिक हटाएं और इसे एक विसैन्यीकृत क्षेत्र घोषित किया जाए. विसैन्यीकरण के बाद संयुक्त राष्ट्र को इस इलाके का नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहिए और फिर आने वाले सालों में वहां जनमत संग्रह कराया जाए."

गिलानी कहते हैं कि कश्मीर की तकलीफों पर पाकिस्तान सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है. उनके मुताबिक, "संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव दोनों तरफ के कश्मीरियों को नियंत्रण रेखा के आरपार आने जाने की अनुमति देता है. लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने आवाजाही को रोक दिया है, जिसका मतलब है कि उसने इसे  स्थायी सीमा समझ लिया है."

विश्लेषक मानते हैं कि भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले ने पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर में भी आजादी के आंदोलन को तेज कर दिया है. अदील खान लंदन में रहते हैं और उन्होंने कश्मीर संकट पर जागरूकता बढ़ाने के लिए हाल में एक मुहिम शुरू की है. वह कहते हैं, "भारत और पाकिस्तान, दोनों से कश्मीर की आजादी की मांग करने वाले प्रगतिशील संगठन अब एक साथ आ रहे हैं. पीएनए एक ऐसा ही गठबंधन है, जिसने आजाद कश्मीर के प्रशासन के सामने कुछ मांगें रखी हैं."

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वह कहते हैं, "पीएनए की मांगें नई नहीं हैं. लेकिन उनके आंदोलन ने हाल के महीनों में रफ्तार पकड़ी है. आजाद कश्मीर में प्रगतिशील समूह अपनी विदेश नीति और अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण चाहते हैं." पाकिस्तानी कश्मीर के प्रधानमंत्री राजा फारूक हैदर खान एक स्वतंत्र विदेश नीति के समर्थक हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था का नियंत्रण पाकिस्तानी कश्मीर के प्रशासन को देने के लिए पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार कभी राजी नहीं  होगी.

अदील खान कहते हैं, "प्रदर्शनकारी पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर में बदलाव की मांग कर रहे हैं, मिसाल के तौर पर संस्थानों के प्रमुखों में बदलाव. वे नए सिरे से चुनावों की मांग कर रहे हैं जिनमें आजादी समर्थक उम्मीदवार हिस्सा ले सकें." फिलहाल आजाद कश्मीर में लागू संविधान के तहत सिर्फ पाकिस्तान समर्थक उम्मीदवारों को चुनावों में हिस्सा लेने की अनुमति है.

स्टॉकहोम के नॉर्डिक कश्मीर ऑर्गेनाइजेशन के निदेशक तलत भट कहते हैं कि कश्मीर पर भारत के कदम के बाद, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान के प्रगतिशील समूहों ने मिल कर पीएनए का गठन किया है, जो एक स्वतंत्र, धर्मनिरपेक्ष और संयुक्त कश्मीर की वकालत करता है.

भट कहते हैं, "पीएनए ने 21 अक्टूबर को मुजफ्फराबाद पहुंचने से पहले दो हफ्तों तक छोटे बड़े शहरों में रैलियां कीं. लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा की तरफ बढ़ने वाले प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने हमला किया. अधिकारियों को डर था कि अगर प्रदर्शनकारी विधानसभा पर जमा हो गए, तो फिर उनके साथ धरने पर ज्यादा से ज्यादा लोग बैठेंगे. फिर यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठेगा."

भट कहते हैं कि 22 अक्टूबर को पुलिस और प्रदर्शनकारियों की झड़प ने दिखा दिया है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भी लोग आजाद नहीं हैं. वह कहते हैं कि पाकिस्तानी हिस्से वाले कश्मीर में भी लोगों का इंटरनेट बंद कर दिया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे भारतीय कश्मीर में होता है. 

विश्लेषकों का कहना है कि भारत पाकिस्तानी कश्मीर में झड़पों का फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है. 22 अक्टूबर की झड़पों पर भारतीय मीडिया में चल रही रिपोर्टों में यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि कश्मीर लोगों की परेशानियों का जिम्मेदार अगर कोई है तो वह पाकिस्तान है, जो विश्लेषकों के अनुसार, शायद पूरा सच नहीं है.

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