पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, आसिया बीबी बरी
एस खान, इस्लामाबाद
३१ अक्टूबर २०१८
पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए ईशनिंदा के आरोपों में मौत की सजा पाने वाली एक ईसाई महिला आसिया बीबी को बरी कर दिया है. कट्टरपंथी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं.
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बुधवार को पाकिस्तान के चीफ जस्टिस साकिब निसार ने फैसला सुनाया कि अगर आसिया बीबी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है तो उसे रिहा कर कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष की तरफ से इस मामले में पेश किए गए सबूत आसिया बीबी को दोषी साबित करने के लिए नाकाफी साबित हुए हैं.
आसिया बीबी को 2009 में गिरफ्तार किया गया था. उसके एक पड़ोसी ने कहा कि आसिया बीबी ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बातें कही थीं. इसके एक साल बाद आसिया बीबी को ईशनिंदा कानून के तहत मौत की सजा सुना दी गई. हालांकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया था.
लाहौर हाई कोर्ट ने 2014 में आसिया बीबी की मौत की सजा को सही ठहराया. उस वक्त मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे 'गंभीर अन्याय' करार दिया था. इसके बाद 2015 में आसिया के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में मौत की सजा के खिलाफ अपील की.
आसिया बीबी: एक गिलास पानी के लिए मौत की सजा
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
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खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
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भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
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ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
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पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
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मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
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हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
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न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
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ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
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अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
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कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
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बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.
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इस तरह, पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने आसिया के मामले में निचली अदालत के दो फैसलों को पलट दिया है. आसिया बीबी के वकील सैफुल मुलूक ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "अदालत के फैसले ने साबित कर दिया है कि गरीब, अल्पसंख्यक और समाज के निचले तबके के लोगों को इस देश में तमाम कमियों के बावजूद न्याय मिलता है. यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा और खुशी वाला दिन है."
आसिया बीबी का मामला बहुत सुर्खियों में रहा है. जनवरी 2011 में पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या उन्हीं के अंगरक्षक मुमताज कादरी ने कर दी थी. कादरी ने कहा कि तासीर ईशनिंदा कानून में बदलाव कराने की कोशिश कर रहे थे और आसिया बीबी के समर्थक थे, इसीलिए उसने उनकी हत्या की.
सलमान तासीर की हत्या के दो महीने बाद ईशनिंदा कानून के एक और आलोचक तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की चरमपंथियों ने हत्या कर दी थी. इस हत्या की जिम्मेदारी तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान ने ली.
अब आसिया बीबी को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने भी तारीफ की है. इस्लामाबाद में रहने वाले एक विश्लेषक अयूब मलिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह एक ऐतिहासिक फैसला है और इससे धार्मिक सौहार्द्र बढ़ाने में मदद मिलेगी."
लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता फरजाना बारी का कहना है कि यह फैसला सरकार के लिए एक कड़ा इम्तिहान है, जिस पर कट्टरपंथी तत्व हंगामा करेंगे. उनका मानना है कि सरकार को ईसाई समुदाय के लोगों की जिंदगी और संपत्ति की रक्षा के लिए कदम उठाने होंगे.
कट्टरपंथी संगठन अधिकारियों को चेतावनी दे रहे हैं कि उन्हें आसिया बीबी को बरी किए जाने की बड़ी कीमत चुकानी होगी. इसके बाद सरकार ने राजधानी इस्लामाबाद में सुरक्षा कड़ी कर दी है.
कट्टरपंथी संगठन तहरीक ए लब्बैक के एक प्रवक्ता पीर एजाज शाह ने बुधवार को अदालत का फैसला आने के बात कहा, "हम मौत को गले लगाना पसंद करेंगे लेकिन हमें (आसिया बीबी के मुद्दे पर) अपने रुख से समझौता मंजूर नहीं है." वहीं कराची के एक पत्रकार मुबशर जैदी ने ट्विटर पर लिखा कि जल्द ही आसिया बीबी को देश के बाहर ले जाया जा सकता है.
कौन हैं ये अहमदिया मुसलमान
पाकिस्तान के भीतर एक ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जो स्वयं को मुस्लिम तो कहता है, लेकिन मोहम्मद को आखिरी पैगंबर नहीं मानता. पाकिस्तान इस समुदाय को मुस्लिम नहीं मानता. जानिए कौन हैं ये अहमदी.
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कौन है अहमदी
अहमदी समुदाय स्वयं को मुसलमान कहता है लेकिन मोहम्मद को आखिरी पैगंबर नहीं मानता. आम तौर पर इस्लाम में मोहम्मद को आखिरी पैगंबर माना जाता है.
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किसने की स्थापना
इस समुदाय के संस्थापक थे मिर्जा गुलाम अहमद. इनका जन्म साल 1835 में पंजाब के कादियान में हुआ. इसलिए इन्हें मानने वाले लोगों को अहमदी या कादियानी भी कहा जाता है.
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कहां कितने अहमदी
वेबसाइट वर्ल्डएटलस डॉट कॉम के आंकड़ों मुताबिक अहमदी समुदाय दुनिया के 209 देशों में फैला है. सबसे ज्यादा अहमदी मुसलमान, दक्षिण एशिया, इंडोनेशिया, पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका समेत कैरेबियाई देशों में फैले हैं. अधिकतर देशों में यह एक अल्पसंख्यक समुदाय है.
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मुस्लिम ही नहीं
अधिकतर मुस्लिम समुदाय इन्हें मुस्लिम नहीं मानता. पाकिस्तान में अहमदियों का खुद को मुसलमान कहना गैरकानूनी है. इनकी कुल आबादी का ठोस अनुमान लगाना मुश्किल है. अहमदी मूवमेंट की बेवसाइट का दावा है कि दुनिया में तकरीबन 10 करोड़ अहमदी समुदाय के लोग रहते हैं.
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मुस्लिम सुधार समूह
ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारत में पहली बार साल 1889 में आधिकारिक रूप से अहमदिया मुस्लिम जमात (एएमजे) नाम की संस्था की स्थापना की गई. एएमजे का मुख्यालय लंदन में है. इसके मुताबिक जर्मनी में करीब 40 हजार अहमदिया मुसलमान रहते हैं. यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता मुस्लिम सुधार समूह होने का भी दावा करता है.
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पाकिस्तान का मसला
पाकिस्तान में 1974 में बनाए गए एक कानून के तहत इन्हें गैर मुसलमान घोषित किया गया. एक दशक बाद एक और कानून आया, जिसमें अहमदी लोगों के खुद को मुसलमान कहने और मस्जिद बनाने पर रोक लगाई गई. कट्टरपंथियों ने उनके धार्मिक स्थलों को बंद करवा दिया.
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जर्मनी में 40 हजार अहमदिया
20वीं सदी की शुरुआत में अहमदिया जर्मनी आए. साल 1920 से यह समुदाय जर्मनी में अपनी मस्जिदों का संचालन करने लगा. पाकिस्तान में अहमदी समुदाय खुद को मुसलमान नहीं कह सकता. 1970 के दशक में जब पाकिस्तान में अहमदी समुदाय को गैर इस्लामिक मानने का कानून पारित हुआ तो उसके बाद बड़ी संख्या में अहमदी पाकिस्तान छोड़ जर्मनी आ गए.
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अहमदी मुसलमानों के देश
वर्ल्डएटलस डॉट कॉम के मुताबिक सबसे अधिक अहमदी लोग नाइजीरिया में रहते हैं. यहां इनकी संख्या करीब 28 लाख है. इसके बाद तंजानिया में, जहां इनकी संख्या 25 लाख है. भारत में भी करीब 10 लाख अहमदी रहते हैं.
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यहां भी फैले
चौथे और पांचवे नंबर पर नाइजर और घाना का नंबर आता है. नाइजर में करीब 970,000 हजार तो घाना में 635,000 हजार अहमदी मुस्लिम रहते हैं. छठे स्थान पर पाकिस्तान का नंबर आता है जहां इनकी संख्या 600,000 के लगभग है.
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अन्य देश
सातवें नंबर पर कांगो, आठवें पर सिएरा लियोन, नवां नंबर कैमरुन का आता है. दसवें स्थान पर इंडोनेशिया का स्थान आता है. यहां भी तकरीबन 400,000 हजार अहमदी मुसलमान रहते हैं.