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'आई एम मलाला' पर रोक

१३ नवम्बर २०१३

पाकिस्तान के कई निजी स्कूलों ने मलाला यूसुफजई की किताब 'आई एम मलाला' पर पाबंदी लगा दी है. क्या वाकई मलाला की किताब इस्लाम और पाकिस्तान का निरादर करती है या स्कूलों को कोई और डर है?

तस्वीर: Andrew Cowie/AFP/Getty Images

मलाला की किताब बैन करने वाले निजी स्कूलों का मानना है कि यह किताब बच्चों के दिमाग को भ्रष्ट करने वाली है. उनका कहना है कि वे अपनी लाइब्रेरियों में यह किताब नहीं रखेंगे.

पाकिस्तान में 2012 में तालिबान की गोली का निशाना बनी मलाला यूसुफजई के अब तक के जीवन और संघर्ष की कहानी सुनाती किताब 'आई एम मलाला' को दुनिया भर में काफी सराहा गया, लेकिन खुद पाकिस्तान में मंजर कुछ अलग है. कट्टरपंथी समूहों का कहना है कि किताब पैगंबर मुहम्मद और पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना का निरादर करती है. उनका यह भी कहना है कि मलाला की किताब में विवादास्पद लेखक सलमान रुश्दी के और अहमदिया अल्पसंख्यकों के प्रति हमदर्दी भी झलकती है. मलाला का नाम इस साल नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़ में शामिल था.

पिछले साल अक्टूबर में मलाला सहित तीन लड़कियों पर कट्टरपंथियों ने पाकिस्तान की स्वात घाटी में गोलियों से हमला किया. हमले की जिम्मेदारी तालिबान ने ली थी और कहा था कि उस पर हमला 'धर्म निरपेक्षता' का प्रचार करने के कारण हुआ था. प्रारंभिक इलाज के बाद मलाला को ब्रिटेन भेज दिया गया था जहां उसका इलाज हुआ. वह अपने परिवार के साथ ब्रिटेन में रह रही है.

हमले से पहले भी मलाला स्वात में लड़कियों की पढ़ाई के अधिकार के लिए आवाज उठाती रही. वह तालिबान की भी खुले तौर पर आलोचना करती रही. अफगानिस्तान बॉर्डर से लगे खैबर पख्तून ख्वाह के इस इलाके में मलाला की किताब अनौपचारिक तौर पर प्रतिबंधित है.

अभिव्यक्ति का अधिकार

पाकिस्तानी वकील अली जफर ने डॉयचे वेले को बताया कि मलाला की किताब पर लगा प्रतिबंध पाकिस्तान के संविधान में सुनिश्चित किए गए अभिव्यक्ति के अधिकार का खुले तौर पर हनन है. उन्होंने कहा, "इसलिए निजी स्कूलों के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. आप किताब को बैन करने का एकतरफा फैसला नहीं कर सकते हैं."

तस्वीर: Reuters

इस्लामाबाद की कायदे आजम यूनिवर्सिटी में विमेंस स्ट्डीज की प्रोफेसर फरजाना बारी मानती हैं कि यह तय करने का अधिकार सिर्फ सरकार के पास है कि किताब पर प्रतिबंध होना चाहिए या नहीं. उन्होंने कहा, "अगर सरकार को लगता है कि किताब से किसी धार्मिक समूह या समुदाय को ठेस पहुंचती है, या यह किसी भी तरह हिंसा सिखाती है, तो फिर वह जो चाहे वह फैसला कर सकती है."

वैसे तो पाकिस्तान की सरकार ने इस पर कोई आधिकारिक रुख नहीं अपनाया है. लेकिन सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग के एक सदस्य रफीक रजवाना ने बताया कि मलाला की यह किताब 'विवादास्पद' है, और जरूरी होने पर सरकार इस पर रोक लगाएगी.

रजवाना ने डॉयचे वेले से कहा, "किताब में कुछ ऐसे अंश हैं जो पाकिस्तान और इस्लाम को बदनाम करते हैं. ऐसा लगता है जैसे 'आई एम मलाला' एक बड़ी साजिश का हिस्सा हो. यह युवा पाकिस्तानियों को उदारवादी विचारों का बनाने की कोशिश है ताकि वे अपने देश के खिलाफ खड़े हो जाएं. हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते."

अलग अलग मत

पाकिस्तान में जहां एक तरफ उदारवादी सोच के लेग मलाला को देश का गौरव मानते हैं, वहीं दूसरी तरफ ज्यादातर कट्टरपंथी विचारधारा के लोगों का मानना है कि वह इस्लाम और देश के खिलाफ काम कर रही है.

कराची में एक सामाजिक कार्यकर्ता शरीफ अहमद कहते हैं, "क्या यह हैरानी की बात नहीं कि कई पाकिस्तानी मलाला के बारे में तालिबान की ही तरह सोचते हैं? इसका मतलब है कि तालिबान की विचारधारा पाकिस्तान में लोकप्रिय है." उन्होंने कहा मलाला ने कई लोगों की असलियत सामने ला दी है, उनकी भी जो कट्टरपंथी नहीं हैं.

पाकिस्तान में कई लोगों का मानना है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मलाला को जबरदस्ती बड़ा बना कर पेश किया जा रहा है. दक्षिण एशिया के कई दक्षिणपंथी समूहों का मानना है कि मलाला का प्रचार इस बात का सबूत देता है कि उसके पीछे बड़ी 'अंतरराष्ट्रीय लॉबी' का हाथ है.

कराची में ही शिया समुदाय के लिए काम करने वाले सैयद अली मुजतबा जैदी ने कहा, "मुझे नहीं लगता मलाला नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन की हकदार है. मेरे ख्याल में पाकिस्तान में उससे बेहतर कई दूसरे लोग हैं जिनका नाम मलाला की जगह इस पुरस्कार के लिए शामिल किया जाना चाहिए था." उन्होंने कहा कि सिर्फ इसलिए कि तालिबान ने उस पर गोली चलाई, वह पुरस्कार की हकदार नहीं हो जाती.

16 साल की मलाला के समर्थक मानते हैं कि मलाला को नापसंद करने वाले लोग उसके खिलाफ मुहिम चला रहे हैं. उन्होंने कहा मलाला की किताब पर लगा बैन भी यही दिखाता है.

रिपोर्ट: शामिल शम्स/ एसएफ

संपादन: आभा मोंढे

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