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समाज

अभी भी प्यास बुझाते हैं पाकिस्तान के माशिकी

११ मई २०२१

दक्षिण एशिया के कई देशों में माशिकी सैकड़ों सालों से लोगों की प्यास बुझाते रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान में आज भी लोगों को पानी पिलाने वाले माशिकी चिंता में हैं कि उनका पेशा और कितने दिन जिंदा रह पाएगा.

Dürre in Thar Pakistan
तस्वीर: DW/R. Saeed

पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में मोहम्मद रमजान मश्क कहे जाने वाले बकरी के चमड़े से बने एक बड़े थैले में पानी भरते हैं और फिर उसे लेकर कई सीढ़ियां चढ़ कर एक घर में पहुंचाते हैं. रमजान पिछले 40 सालों से भी ज्यादा से माशिकी यानी लोगों को पानी पिलाने वाले का काम कर रहे हैं. लेकिन जैसे जैसे पानी वाली कंपनियां और टैंकर शहर के लोगों तक पानी पहुंचा रहे हैं, यह सदियों पुराना पेशा अब गायब हो रहा है.

लेकिन कम से कम रमजान के पाक महीने में मोहम्मद रमजान की सेवाओं की बहुत मांग रहती है. इस महीने में गर्मी की वजह से रोजा रखना काफी चुनौती भरा हो सकता है. रमजान से पानी लेने वाले कराची के निवासी मोहम्मद इमरान कहते हैं, "रमजान में इन बेचारे माशिकियों को चार-पांच मंजिला ऊंची इमारतों में हमारे घरों तक पानी पहुंचाने में बड़ी कठिनाई होती है. लेकिन टैंकर वाले अक्सर हमारे फोन तक नहीं उठाते और पैसे भी बहुत लेते हैं. हम इनके बड़े एहसानमंद हैं."

कराची में रहने वाले करीब दो करोड़ लोगों के लिए रोज 120 करोड़ गैलन पानी चाहिए होता है. लेकिन अधिकारी कहते हैं कि शहर के दो मुख्य पानी के स्त्रोतों से सिर्फ करीब 58 करोड़ गैलन पानी ही मिल पाता है. इसमें से कुछ पानी जर्जर हालत में पड़े बुनियादी ढांचे और पानी की चोरी की वजह से बर्बाद भी हो जाता है. जानकारों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और भारत द्वारा नदियों के ऊपरी हिस्सों में बनाए गए बांधों की वजह से भी पानी की आपूर्ति कम हो जाती है.

पाकिस्तान में रमजान के दौरान रोजेदारों को पानी पीने के लिए मश्कियों का बड़ा सहारा रहता है.तस्वीर: Sabir Mazhar/AA/picture alliance

संकरी सीढ़ियां चढ़ते हुए मोहम्मद रमजान थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुकते हैं. उनके चमड़े के मश्क में 35 लीटर तक पानी भरा जा सकता है. रमजान कहते हैं, "रमजान के महीने में लोगों के लिए पानी लेने की जगहों पर जाकर पानी लेना खास तौर पर मुश्किल हो जाता है. ऐसे में मैं उनके लिए पानी ले जाता हूं, इस उम्मीद में कि अल्लाह मुझे इसके लिए आशीर्वाद देंगे...मैं अपनी जीविका भी इसी से चलाता हूं."

दक्षिण एशिया में ऐसे माशिकी सैकड़ों सालों से रहे हैं. प्राचीन काल में ये यात्रियों और जंग के दौरान योद्धाओं को पानी पिलाते थे. लेकिन रमजान को चिंता है कि उनके जैसे माशिकियों के दिन अब जल्द ही लदने वाले हैं. वो कहते हैं, "हर जगह टैंकरों से पानी जा रहा है; मिनरल वॉटर कंपनियां घर घर पानी पहुंचा रही हैं. इस वजह से ऐसा लगता है कि माशिकी का पेशा अब ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगा."

सीके/एए (रॉयटर्स)

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