'ऑनर किलिंग' के पीड़ितों को कब्रिस्तान में भी सम्मान नहीं
९ नवम्बर २०२५
फत्तू शाह, पाकिस्तान के सिंध प्रांत का एक सुदूर गांव है. यहां का सबसे नजदीकी शहर घोटकी है. इस गांव से वहां पहुंचने में एक घंटे से ज्यादा का समय लगता है. कपास के खेतों से होकर गुजरती यह सड़क संकरी हो जाती है. फिर दूर-दूर तक फैली खेती की जमीन पर बने मिट्टी की ईंटों वाले घरों के चारों ओर होते हुए आगे बढ़ती है.
यह एक ऐसी यात्रा है जो आयशा धारेजो ने अनगिनत बार की है. पिछले 15 वर्षों से वह उस जगह पर शोध कर रही हैं जिसे स्थानीय लोग ‘अपमानित महिलाओं का कब्रिस्तान' कहते हैं.
धारेजो ने डीडब्ल्यू को बताया, "हर कब्र एक ऐसी महिला की कहानी बयां करती है जिसे खामोश कर दिया गया है.” ‘ऑनर किलिंग' के पीड़ितों को जहां दफन किया गया वहां ना तो कब्र के पत्थर हैं और ना ही कोई नाम. कुछ कब्रों पर टूटी हुई ईंटें जमीन में गड़ी हुई हैं, लेकिन ज्यादातर पर कुछ भी नहीं है. यह बगल वाले मुख्य कब्रिस्तान से बिल्कुल अलग है.
धारेजो ने बताया कि ऑनर किलिंग के शिकार, चाहे महिलाएं हों या पुरुष, उन्हें मरने के बाद भी सम्मान नहीं मिलता. उनके शवों को ना तो नहलाया जाता है और ना ही दफनाने के लिए तैयार किया जाता है. कोई रस्म, कोई अंतिम संस्कार नहीं होता. मृतकों को जल्दी से गड्ढों में डाल दिया जाता है और जानवरों को दूर रखने के लिए मिट्टी से ढक दिया जाता है.
जरका शार पास के गांव की एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह उन चंद लोगों में से एक हैं जो सार्वजनिक रूप से बोलने को तैयार हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि यह कब्रिस्तान एक सदी से भी ज्यादा पुराना है.
उन्होंने कहा, "जिला अभी भी सामंती जमींदारों के प्रभाव में है. ये लोग रोजगार, मजदूरी और आजीविका पर नियंत्रण रखते हैं.”
शार ने आगे कहा कि ऐसी व्यवस्था में, स्थानीय रीति-रिवाज अक्सर राज्य के कानून पर भारी पड़ जाते हैं. ‘ऑनर किलिंग' जैसी जड़ जमाई प्रथाओं पर सवाल उठाने से निवासियों को खतरा हो सकता है. इससे अंततः चुप्पी की संस्कृति मजबूत होती है.
समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी है ऑनर किलिंग
तथाकथित ‘ऑनर किलिंग' पीड़ित के रिश्तेदारों की ओर से सोच-समझकर की गई हत्याएं होती हैं. इन रिश्तेदारों का मानना होता है कि पीड़ित के व्यवहार ने परिवार को शर्मसार किया है.
पाकिस्तान में, महिलाओं और कुछ पुरुषों को अपना जीवनसाथी चुनने, विपरीत लिंग के व्यक्ति से बात करने, अपनी जाति या धर्म से बाहर शादी करने या आमतौर पर अनैतिक माने जाने वाले व्यवहार के लिए मार दिया जाता है. पाकिस्तान में ऑनर किलिंग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 में, पूरे पाकिस्तान में कम से कम 405 लोग ‘ऑनर किलिंग' के शिकार हुए. इनमें सबसे ज़्यादा संख्या सिंध और पंजाब प्रांतों में थी.
आधिकारिक आंकड़े साल-दर-साल स्थिर रहे हैं. हालांकि, शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ऐसे अपराधों की अक्सर कम रिपोर्टिंग होती है. वास्तविक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होने की संभावना है.
धारेजो ने कहा कि पाकिस्तान में इन हत्याओं का ‘परंपरा' से कोई लेना-देना नहीं है, सिवाय इसके कि ये लंबे समय से चली आ रही हैं. उन्होंने आगे कहा कि ये हत्याएं ऊपरी तौर पर दिखने वाली नैतिकता या आदर्शों के नाम पर नहीं की जाती, बल्कि अक्सर लेन-देन से जुड़ी होती हैं. यानी इनके पीछे कोई स्वार्थ या फायदा होता है.
वह बताती हैं, "परिवारों और कबीलाई अदालतों के बीच सौदेबाजी में महिलाओं के शरीर का इस्तेमाल मुद्रा के रूप में होता है. हत्याएं अक्सर संपत्ति के विवादों को छुपाती हैं या ब्लड मनी के लेन-देन को बढ़ावा देती हैं.”
अपने संगठन ‘सिंध सुहाई साथ' के माध्यम से, धारेजो इन मामलों का दस्तावेज तैयार कर रही हैं. साथ ही, वह ‘सम्मान-आधारित' और घरेलू हिंसा के पीड़ितों को वित्तीय, कानूनी और भावनात्मक सहायता उपलब्ध करा रही हैं.
‘उसने मुझे चलने लायक नहीं छोड़ा'
इन महिलाओं में से एक हैं सोबिया बतूल शाह. जब वह 22 वर्ष की थीं, तो उनके छह पुरुष रिश्तेदार सिंध प्रांत के नौशहरो फिरोज शहर स्थित उनके घर में जबरन घुस गए थे. इन रिश्तेदारों में उनके अलग रह रहे पिता सैयद भी शामिल थे.
पिता ने अपनी बेटी पर अपने पति से तलाक मांगकर परिवार की बदनामी करने का आरोप लगाया. उन्होंने अपनी इस हरकत को ‘जायज' बताया और उन पुरुषों ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया. एक ने तो कुल्हाड़ी से उनके पैर काटने की कोशिश की.
शाह ने कहा, "मैं उस दिन को कभी नहीं भूलूंगी. जैसे ही वे मुझे मारने की कोशिश कर रहे थे, मैंने चीखकर कहा कि मैं तलाक नहीं दूंगी, ताकि वे रुक जाएं. उन्होंने मुझे अपाहिज बना दिया. यही मेरा सबसे बड़ा दर्द है. उन्होंने मुझे चलने लायक नहीं छोड़ा.”
शाह ने डीडब्ल्यू को बताया कि अब तक उनके चार ऑपरेशन हो चुके हैं. उनके पैरों में प्लास्टर चढ़ा हुआ है और वह अब भी बैसाखी के सहारे चलती हैं. जब वह दूसरी मंजिल पर अदालती सुनवाई के लिए जाती हैं, तो उनके भाई शौकत अली शाह उन्हें अपने कंधों पर उठाकर इमारत में ले जाते हैं.
लड़कियां कहां जाएं जब अदालत की सुरक्षा भी जान ना बचा सके
धारेजो के संगठन ने शाह को उनके पिता के खिलाफ तीन पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराने में मदद की. अब वह जेल में हैं. उन्हें 14 साल तक की जेल की सजा हो सकती है. लेकिन शाह अपने बाकी हमलावरों के खिलाफ न्याय की लड़ाई जारी रखी हुई हैं.
शाह जैसे मामले में फैसला आने में दो से पांच साल तक लग सकते हैं. धारेजो कहती हैं कि उम्मीद बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि ऐसे कई मामले हैं जहां कानून ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया है.
‘वह मुझसे पैसे ऐंठने की हर संभव कोशिश कर रहा था'
महज 12 साल की उम्र में, हलीमा भुट्टो की शादी हो गई थी. शादी के कुछ ही दिनों बाद, उनके पति शकील अहमद ने उनके दिवंगत पिता से विरासत में मिली संपत्ति की मांग शुरू कर दी.
कई बार इनकार करने के बाद, उसने हलीमा को उनकी मां के घर घोटकी वापस भेज दिया. वह अगले 18 वर्षों तक वहीं रहीं. शादीशुदा होने के बावजूद वह परित्यक्ता की जिंदगी जीती रहीं.
अहमद फिर से सामने आया, लेकिन सुलह करने नहीं, बल्कि एक ऐसे आरोप के साथ जो घोटकी के सामंती समाज में मौत का वारंट साबित हो सकता था. उसने दावा किया कि उसका अपने देवर के साथ संबंध था.
हलीमा ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह आरोप पूरी तरह से झूठा था. वह मेरी संपत्ति फिर से चाहता था और उसे पाने का उसने एक दूसरा तरीका ढूंढ लिया था. मैं एक अच्छे और आर्थिक रूप से मजबूत परिवार से थी. वह मुझसे पैसे ऐंठने की हर संभव कोशिश कर रहा था, चाहे इसके लिए मुझे जान से ही क्यों ना मारना पड़े.”
हलीमा ने कहा कि उनके पास अपनी जान बचाने का एकमात्र तरीका यह था कि वह घोटकी छोड़कर इस्लामाबाद चली जाएं. पंद्रह महीने से भी ज्यादा समय तक, हलीमा इस्लामाबाद के प्रेस क्लब के बाहर धरने पर बैठी रहीं. वह हर उस व्यक्ति से बात करती रहीं जो उनकी बात सुनने को तैयार था. कई बार, उन्होंने भूख हड़ताल भी की और सरकार पर देश के सामंती अभिजात वर्ग के खिलाफ कार्रवाई न करने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, "मैंने सार्वजनिक रूप से लड़ाई लड़ी, ताकि मेरे पति मुझे मार ना सकें.”
उनका संघर्ष आखिरकार पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा, जहां 2011 में उनके पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया. अदालत ने उन्हें तलाक की अनुमति दी और उनके माता-पिता द्वारा छोड़ी गई संपत्ति उन्हें वापस कर दी.
पिछले महीने घोटकी स्थित अपने घर पर उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "यह सिर्फ मेरी लड़ाई नहीं थी. यह हर उस महिला की लड़ाई थी जो ऐसी ही स्थिति का सामना करती है. मेरा मानना है कि आप अपने अधिकार पा सकती हैं, बस हार मत मानो.”
पुलिस का कहना है कि 'ऑनर किलिंग' का खात्मा होगा
घोटकी जिला पुलिस मुख्यालय में, डीडब्ल्यू ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) मुहम्मद अनवर खेतरान से ‘ऑनर किलिंग' से जुड़ी समस्या पर बात की. उन्होंने कहा, "यह सम्मानजनक नहीं है. यह घृणित है. इसे समाज से मिटा दिया जाएगा.” हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि बदलाव में लंबा समय लगेगा.
उन्होंने बताया, "एक या दो पीढ़ियों में, यह प्रथा पूरी तरह से बंद हो जाएगी. बदलाव आने में कुछ दिन नहीं, बल्कि दशकों लगेंगे.”
क्या ईरानी मौलवी ऑनर किलिंग रोकने के खिलाफ हैं?
उन्होंने हाल के वर्षों में हुई ठोस प्रगति की ओर इशारा किया. इसमें पूरे प्रांत में पुलिस थानों में महिला पुलिस अधिकारियों, हेल्पलाइनों और महिला एवं बाल संरक्षण प्रकोष्ठों की संख्या में वृद्धि हुई है.
सिंध के नौशहरो फिरोज जिले के एसएसपी मीर रोहल खोसो ने डीडब्ल्यू को बताया कि शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक विकास से बदलाव संभव होगा. उन्होंने जोर देकर कहा, "जब एक महिला शिक्षित होती है और उसे आर्थिक आजादी मिलती है, तो वह परिवार में अपने अधिकारों को जानती है.”
खोसो ने आगे कहा कि उनके जिले में ‘ऑनर किलिंग' में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. उन्होंने इसका श्रेय सख्त कार्रवाई और पारिवारिक विवादों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के पालन को दिया.
एक्टिविस्ट धारेजो अक्सर पुलिस अधिकारियों के साथ काम करती हैं. डीडब्ल्यू से बात करते हुए, उन्होंने उनके प्रयासों की सराहना की. साथ ही, महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाने की जरूरत पर उनकी टिप्पणियों को दोहराया.
हालांकि, उन्होंने कहा कि असली चुनौती यह है कि पाकिस्तान में बिना किसी रोक-टोक के चल रहे सामंती और पितृसत्तात्मक सत्ता ढांचे को सीधे चुनौती देने की हिम्मत नहीं दिखाई जा रही है.
वह कहती हैं, "महिलाएं खतरनाक परिस्थितियों में रहती हैं, क्योंकि उनके पास आर्थिक विकल्प नहीं होता है. अगर हम पीढ़ीगत बदलाव का इंतजार करते रहे, तो हम इस सच्चाई से मुंह मोड़ लेंगे कि यह हिंसा उन लोगों को फायदा पहुंचाती है जो फिलहाल सत्ता में हैं.”
पुलिस से बात करने के लिए डीडब्ल्यू के साथ आई धारेजो ने कहा कि वह अपना काम जारी रखेंगी, ताकि महिलाओं को फत्तू शाह में मौजूद एक कब्रिस्तान या सिंध प्रांत के इस हिस्से में मौजूद कम से कम तीन ऐसे दूसरे कब्रिस्तानों में नहीं जाना पड़े.