पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में पुलिस ने हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारियों को लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) तक पहुंचने से रोका.
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भारत और पाकिस्तान की सीमा से महज आठ किलोमीटर दूर जसकूल में पुलिस को बड़े बड़े कंटेनर लगा कर रास्ता बंद करना पड़ा. प्रदर्शनकारी धरने पर बैठे रहे और मांग करते रहे कि पुलिस रास्ता साफ करे. ये लोग भारत सरकार के 5 अगस्त को संविधान के अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू कश्मीर से विशेषाधिकार छीन लिए जाने के फैसले के खिलाफ अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं. शुक्रवार को शुरू हुए इस प्रदर्शन को आजादी मोर्चे का नाम दिया गया है और इसे जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) ने आयोजित किया है. जेकेएलएफ कश्मीर की आजादी की मांग करता है और उसे पाकिस्तान और भारत दोनों का ही हिस्सा मानने से इंकार करता है. भारत का आरोप है कि पाकिस्तान इस संगठन की आर्थिक रूप से मदद कर रहा है. कश्मीर के अलग अलग हिस्सों में इसके सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया है.
प्रदर्शनों के शुरू होने पर इमरान खान ने ट्वीट कर शांति बनाए रखने की अपील की पर साथ ही कश्मीरियों को भारत से संभल कर रहने की चेतावनी भी दी. खान ने लिखा, "मैं आजाद कश्मीर में रहने वाले कश्मीरियों के गुस्से को समझता हूं जो भारत अधिकृत कश्मीर में अपने साथी कश्मीरियों को पिछले दो महीने से कर्फ्यू में देख रहे हैं. लेकिन आजाद कश्मीर से अगर कोई भी एलओसी पार कर कश्मीरियों की मदद करने के लिए जाएगा तो वह भारत के उसी प्रचार का हिस्सा बन जाएगा जो कश्मीरियों के संघर्ष को नजरअंदाज कर, उनकी मदद करने वालों को पाकिस्तान द्वारा भेजे गए इस्लामी आतंकवादी बताता है."
डॉयचे वेले से बातचीत में जेकेएलएफ के अध्यक्ष तौकीर गिलानी ने कहा कि खान के शब्द दिखाते हैं कि उन्होंने एलओसी को भारत और पाकिस्तान के बीच स्थाई सीमा मान लिया है. गिलानी ने कहा, "हमने यह प्रदर्शन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कश्मीर के विशेषाधिकार छीन लिए जाने के फैसले के खिलाफ आयोजित किए हैं. हमारी मांग है कि भारत सरकार कर्फ्यू खत्म करे, लोगों को आजादी से बाहर निकलने का अधिकार मिले और गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहा किया जाए."
गिलानी कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप भी चाहते हैं, "हमारी मांग है कि भारत और पाकिस्तान दोनों कश्मीर के अपने अपने हिस्सों से अपनी फौज हटाएं और उसे "डीमिलिटराइज्ड जोन" घोषित करें. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र को यहां सक्रिय होना होगा और आने वाले सालों में एक जनमत संग्रह कराना होगा."
पाकिस्तान पर आरोप लगाते हुए गिलानी ने कहा कि कश्मीर मुद्दे पर इस्लामाबाद सिर्फ बातें ही बनाता रहा है, "संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार एलओसी के दोनों ओर से लोग सीमा पार कर सकते हैं. लेकिन पाकिस्तान हमारे प्रदर्शन को रोक रहा है. इसका मतलब यह हुआ कि उसने इसे स्थाई सीमा के रूप में स्वीकार लिया है."
कश्मीर मुद्दे की पूरी रामकहानी
कश्मीर मुद्दे की पूरी रामकहानी
आजादी के बाद से ही कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक फांस बना हुआ है. कश्मीर के मोर्चे पर कब क्या क्या हुआ, जानिए.
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1947
बंटवारे के बाद पाकिस्तानी कबायली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.
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1948
भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पास किया जिसमें पूरे इलाके में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई.
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1948
लेकिन प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से सैनिक हटाने से इनकार कर दिया. और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.
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1951
भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह का जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.
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1953
जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. जम्मू कश्मीर की नई सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगाई.
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1957
भारत के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.
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1962-63
चीन ने 1962 की लड़ाई भारत को हराया और अक्साई चिन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.
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1965
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गए.
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1971-72
दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.
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1984
भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब न हुआ.
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1987
जम्मू कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर उग्रवाद भड़काने का आरोप लगाया, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.
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1990
गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गए. जम्मू कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले अफ्सपा कानून लगा.
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1999
घाटी में 1990 के दशक में हिंसा जारी रही. लेकिन 1999 आते आते भारत और पाकिस्तान फिर लड़ाई को मोर्चे पर डटे थे. कारगिल की लड़ाई.
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2001-2008
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की कोशिशें पहले संसद पर हमले और और फिर मुबई हमले समेत ऐसी कई हिंसक घटनाओं से नाकाम होती रहीं.
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2010
भारतीय सेना की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत पर घाटी उबल पड़ी. हफ्तों तक तनाव रहा और कम से कम 100 लोग मारे गए.
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2013
संसद पर हमले के दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी गई. इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में दो लोग मारे गए. इसी साल भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मिले और तनाव को घटाने की बात हुई.
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2014
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गए. लेकिन उसके बाद नई दिल्ली में अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात पर भारत ने बातचीत टाल दी.
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2016
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में आजादी के समर्थक फिर सड़कों पर आ गए. अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और गतिरोध जारी है.
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2019
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 46 जवान मारे गए. इस हमले को एक कश्मीरी युवक ने अंजाम दिया. इसके बाद परिस्थितियां बदलीं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है.
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2019
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्थता करने की मांग की. लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा.
तस्वीर: picture-alliance
2019
5 अगस्त 2019 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस संशोधन के मुताबिक अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. लद्दाख को भी एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. धारा 35 ए भी खत्म हो गई है.
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6 सितंबर की एक रिपोर्ट के अनुसार 5 अगस्त के बाद से भारत ने करीब चार हजार लोगों को हिरासत में लिया. हालांकि इनमें से कइयों को बाद में छोड़ भी दिया गया. लेकिन कश्मीर में प्रदर्शन होने के डर से भारत सरकार ने यह कदम उठाया. इसके बाद से भारत के पाकिस्तान के साथ संबंध काफी खराब हुए हैं. 12 सितंबर को डॉयचे वेले से बातचीत के दौरान जर्मनी में पाकिस्तान के राजदूत ने कहा था कि अगर भारत फिर से पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंध चाहता है, तो उसे कश्मीर में लगाए गए कर्फ्यू को खत्म करना होगा.
जानकारों का मानना है कि 1980 के दशक में कश्मीर में पाकिस्तान के हस्तक्षेप ने इस पूरे मुद्दे को काफी नुकसान पहुंचाया है. इसके बाद से एक उदारवादी कश्मीरी आंदोलन पर धर्म का रंग चढ़ गया. माना जाता है कि अगर पाकिस्तान ने उस वक्त यह हस्तक्षेप ना किया होता, तो इस पूरे मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय सहयोग मिल सकता था. स्टॉकहोम स्थित एक कश्मीरी संगठन नॉर्डिक कश्मीर ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष तलत भट्ट का कहना है, "पाकिस्तान की कश्मीर नीति दोहरे मानदंडों और पाखंड पर आधारित है. एक तरफ तो इस्लामाबाद कहता है कि वह भारत अधिकृत कश्मीर की आजादी के हक में है और दूसरी तरफ वह अपने हिस्से के कश्मीर में लोगों का दमन करता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पूरा का पूरा कश्मीर - भारत वाला हिस्सा भी और पाकिस्तान वाला भी - विवादित है." भट्ट का संगठन भी एक आजाद कश्मीर की मांग उठा रहा है.
ब्रसेल्स स्थित साउथ एशिया डेमोक्रेटिक फोरम के अध्यक्ष सीगफ्रीड ओ वुल्फ का कहना है कि कश्मीर मुद्दे में पाकिस्तान का हस्तक्षेप हमेशा ही मामले को पेचीदा बनाएगा. वुल्फ के अनुसार इसकी एक बड़ी वजह यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की हैसियत इस्लामी आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले की है और ऐसे में उसे कश्मीर के लोगों का मसीहा नहीं समझा जा सकता. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "पाकिस्तान की विदेश नीति का एक मकसद है भारत को कमजोर करना. इसके लिए वह कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा है. आज जो स्थिति है, उसके लिए पाकिस्तान ने ही भारत को मजबूर किया है."
पाकिस्तान की रणनीति के बारे में वुल्फ कहते हैं, "पाकिस्तान को लगता है कि अगर भारत ने कश्मीर मसले में सैन्य हस्तक्षेप किया, तो इससे भारत की आर्थिक स्थिति और उसके अंतरराष्ट्रीय रुतबे पर असर पड़ेगा." इस बीच भारत लगातार पाकिस्तान से आतंकवादियों के सीमा पार करने की बात कर रहा है और पाकिस्तान इन आरोपों का खंडन कर रहा है. पाकिस्तान का दावा है कि कश्मीर और वहां के लोगों को वह सिर्फ राजनयिक और राजनीतिक तरीके से ही मदद कर रहा है.
पाकिस्तान में अभी तहरीक ए इंसाफ की सरकार है. इमरान खान प्रधानमंत्री हैं. पाकिस्तान में भी बहुपार्टी लोकतांत्रिक व्यवस्था है. भारत की तरह वहां पर भी कई सारी राजनीतिक पार्टियां हैं.
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पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन)
पार्टी के चेयरमैन नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ हैं. 1988 में स्थापित इस पार्टी का चुनाव निशान शेर है.
तस्वीर: Imago
पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ
इमरान खान की पार्टी का चुनाव चिन्ह क्रिकेट का बैट है. युवाओं में इमरान बहुत लोकप्रिय हैं.
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पाकिस्तान पीपल्स पार्टी
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बेहद मजबूत समझी जाने वाली पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की स्थापना 1967 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने की थी. अब उनके नवासे बिलावुल भुट्टो जरदारी पार्टी के प्रमुख हैं. पार्टी का चुनाव चिन्ह तीर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मुत्तेहिदा कौमी मूवमेंट
एमक्यूएम की स्थापना 1984 में अल्ताफ हुसैन ने की थी. पार्टी का चुनाव चिन्ह पतंग है और पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में उसका बहुत दबदबा माना जाता है. एमक्यूएम को विभाजन के बाद पाकिस्तान में जाकर बसे मुहाजिरों की पार्टी माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
आवामी नेशनल पार्टी
आवामी नेशनल पार्टी पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह में बड़ी ताकत रही थी. पार्टी का चुनाव निशान लाल टोपी है.
तस्वीर: DW/Faridullah Khan
जमीयत उलेमा ए इस्लाम (एफ)
मौलाना फजलुर रहमान के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा ए इस्लाम (एफ) पाकिस्तान की एक सुन्नी देवबंदी राजनीतिक पार्टी है. पार्टी की चुनाव चिन्ह किताब है. यह पार्टी 1988 में जमीयत उलेमा ए इस्लाम में विभाजन के बाद अस्तित्व में आई.
तस्वीर: Banaras Khan/AFP/Getty Images
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एफ)
यह पार्टी एक सिंधी धार्मिक नेता पीर पगाड़ा से जुड़ी हुई है. पार्टी का चुनाव चिन्ह गुलाब का फूल है. (तस्वीर पाकिस्तानी संसद की है.)
तस्वीर: DW/I. Jabbeen
जमीयत उलेमा ए इस्लाम
इस पार्टी का मकसद पाकिस्तान को एक ऐसे देश में तब्दील करना है जो शरिया के मुताबिक चले. हालांकि जनता के बीच उसका ज्यादा आधार नहीं है. नेशनल असेंबली में उसके अभी सिर्फ चार सदस्य हैं. पार्टी तराजू के निशान पर चुनाव लड़ती है और सिराज उल हक इसके प्रमुख हैं.
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पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू)
यह पार्टी नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) से टूट कर बनी है. पार्टी के मुखिया शुजात हुसैन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के दौर में कुछ समय के लिए देश के प्रधानमंत्री रहे. पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल है.