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पाकिस्तान की असहाय सैनिक शक्ति

अना लेमान / राम यादव२६ सितम्बर २००८

पाकिस्तान में इस्लामाबाद के मैरियट होटल पर आत्मघाती बम प्रहार इस सप्ताह जर्मन पत्र-पत्रिकाओं की टीका-टिप्पणियों का केंद्रबिंदु रहा.

मैरियट होटलः नहीं रही पुरानी रौनकतस्वीर: AP

बर्लिन के दैनिक देयर टागेसश्पीगल ने लिखाः

"यह हमला पाकिस्तान के नये नेताओं और पश्चिम के विरुद्ध युद्ध का बिगुल है. इस इस्लामी देश में और भी फूट डालना और लोगों को सरकार की नीतियों के विरुद्ध भड़काना भी उस का एक लक्ष्य है."

पाकिस्तान के नये राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने टेलीविज़न पर आ कर आतंकवादी "कैंसर के नासूर" को मिटा डालने का जो प्रण लिया, उस पर फ्रांकफ़ुर्टर अल्गेमाइने त्साइटुँग की टिप्पणी थीः

"ज़ोरदार शब्द मददगार नहीं होते. पाकिस्तानी सरकार और सेना को पूरे दृढ़संकल्प के साथ अब उन उग्र इस्लामवादियों से भिड़ना होगा, जिन्हें ग़लत रणनीतिक जोड़-तोड़ के फेर में बहुत ज़्यादा देर तक गुप्तचर सेवा आईएसआई का स्तनपान कराया गया. इस काम में अब बहुत धीरज और विश्व-समुदाय के सहयोग की ज़रूरत पड़ेगी."

विचलित कर देने वाली बात

चेक राजदूत इवो ज़्दारेक का ताबूततस्वीर: AP

श्टुटगार्टर त्साइटुँग ने लिखा कि यह बहुत विचलित कर देने वाली बात है कि एक ऐसा देश, जिस के पास संसार की सातवीं सबसे बड़ी सेना है, आतंकवाद के सामने एकदम असहाय दिखाई पड़ता हैः

"इस्लामाबाद में मैरियट होटल पर बमप्रहार पाकिस्तान के मर्म पर निशाना था. पश्चिमी जीवनशैली वाले देश के ऐसे प्रतीक पर यह निशाना साधा गया था, जिसके चारो ओर कड़ा पहरा रहता है. अल क़ायदा और संसार भर के ऐसे इस्लामवादी, जो हिंसा के बल पर घोर पुरातनपंथी इस्लाम थोपना चाहते हैं, आतंक की अति करने पर उतारू हैं. उन्होंने पाक-अफ़ग़ान क्षेत्र को निर्णायक युद्ध की रणभूमि बना दिया है. वे यहाँ सरकरें गिराना चाहते हैं, अराजकता फैलाना चाहते हैं और पश्चिमी जगत को भी नीचा दिखाना चाहते हैं. फ़िलहाल उन्हे एक-के-बाद-एक सफलता मिल भी रही है."

दैनिक फ्रांकफ़ुर्टर रुंडशाऊ का मत है कि पाकिस्तान इस समय एक प्रकार के "अफ़ग़ानीकरण" के दौर से गुज़र रहा हैः

"तालिबान और भी शक्तिशाली हो गये हैं. सरकार भारी सैनिक बलप्रयोग के द्वारा विद्रोहियों के हाथों से छीने गये क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में लाने के लिए प्रयत्नशील है. लेकिन, तालिबान का आगे बढ़ना जारी है. उनका आतंक देश के अब उन हिस्सों में फैलता जा रहा है, जो कुछ समय पहले तक अपेक्षाकृत सुरक्षित समझे जाते थे. ज़रदारी ने यदि अतिवादियों से डट कर लोहा लेने की ठानी, तो मैरियट होटल पर हमला और अधिक ख़ून-ख़राबे की शुरुआत बनेगा."

अराजकता के लिए जिहाद

साप्ताहिक पत्र दी त्साइट का मत है कि अल क़ायदा जिहाद के द्वारा दुनिया भर में अराजकता और अमेरिका की पराजय चाहता है, जबकि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में धार्मिक दकियानूसी की विजय. पश्चिम के लिए दोनो एक विकट चुनौती तब बन जायेंगे, जब वे आपस में हाथ मिला लेंगेः

"इस जुड़ाव को हर हाल में तोड़ना होगा. इसका मतलब है कि तालिबान से निपटने की नीति अल क़ायदा के प्रति नीति से अलग होनी चाहिये. तालिबान के सामने कोई पेशक़श करनी होगी और उन्हें बाँधना होगा. अल क़ायदा के साथ यह नीति नहीं चलेगी. यह भी तय है कि जितने ज़्यादा बमधमाके होंगे, उतना ही जल्दी दोनो गुट एकजुट हो जायेंगे, और निकट भविष्य में ही शायद कभी उनके बीच के अंतर भी मिट जायेंगे."

नेपाल का प्रचंड-पथ

अंत में नेपाल. नेपाल के पहले माओवादी प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल, जो प्रचंड के नाम से कहीं ज़्यादा प्रसिद्ध हैं, इन दिनों जर्मनी में थे. उनकी इस यात्रा की किसी को भनक तक नहीं लगी. उन्होंने ट्रियर में कार्ल मार्क्स का पैतृक घर देखा और फ्रैंकफ़र्ट के प्रेस क्लब में एक पुस्तक का विमोचन किया. वहाँ के दैनिक फ़्रांकफ़ुर्टर अल्गेमाइने त्साइटुँग ने इस बारे में लिखाः

"प्रधानमंत्री महोदय लड़ने-भिड़ने के मूड में भी थे और सादगीपूर्ण भी. उन्होंने अपनी महत्वाकाँक्षी योजना का वर्णन किया, जनसंघर्ष की सफलता का बखान किया... और नेपाल के अपने अलग के क्रांति-पथ-- प्रचंड-पथ-- पर प्रकाश डाला. यह रास्ता मार्क्स, लेनिन, स्टालिन और माओ की शिक्षाओं और उदारवादी पूँजीवाद के मेल से सब के लिए खुशहाली और अच्छे स्वास्थ्य का रास्ता है. लेकिन, सच्चाई यह है कि नेपाल में इस बीच लोग सड़कों पर पुनः प्रदर्शन करने लगे हैं."

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