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पाकिस्तान की चुनावी हवा अमेरिका विरोधी

२१ अक्टूबर २०१२

2013 के चुनावों की तैयारी में जुटी पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियां अमेरिका विरोधी भावना को भड़का रही हैं. 'अमेरिका के दोस्त देशद्रोही हैं' जैसे नारे लग रहे हैं. सरकार मान रही हैं कि यह भावना चुनाव में अहम भूमिका निभाएगी.

तस्वीर: AP

दक्षिणी पाकिस्तान के सुक्कुर शहर में मौलाना फजलउर रहमान की रैली में अमेरिका नाम बार बार आया. रहमान ने कहा, "अमेरिका ने धार्मिक युद्धों को बढ़ावा दिया, कट्टरपंथ, रुढ़िवादिता और जातीय संघर्षों ने हमारे देश को कमजोर किया. देश अमेरिकी एजेंडे पर चलने की वजह से ही इतनी परेशानियों का सामना कर रहा है."

रहमान की जमात ए उलेमा इस्लाम फजल पार्टी तालिबान का समर्थन करती है. पार्टी चाहती है कि पाकिस्तान में शरीया कानून लागू हो. रहमान का वादा है कि अगर अगले साल चुनावों में उनकी जीत हुई तो पाकिस्तान कट्टर इस्लाम की राह पर चलेगा.

'भरोसमंद नहीं है अमेरिका'

रहमान अकेले नेता नहीं हैं जो अमेरिका विरोधी हवा का फायदा उठाना चाह रहे हैं. विश्लेषकों के मुताबिक जिन पार्टियों और नेताओं के पास पाकिस्तान की मूल समस्याओं का हल नहीं है, वे अमेरिका विरोधी हवा का सहारा ले रहे हैं. कई नेता नहीं बता पा रहे हैं कि वे आतंकवाद, भ्रष्टाचार, खस्ता हो चुकी अर्थव्यवस्था और महंगाई से कैसे निपटेंगे. राजनीतिक विश्लेषक रसूल बक्स रईस कहते हैं, "कुछ राजनीतिक और धार्मिक पार्टियों का एजेंडा अमेरिका विरोधी भावनाओं पर केंद्रित है. वे इसे अगले साल के चुनाव जीतने के लिए एक मौका मानती हैं."

तस्वीर: AP

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच बीते 60 साल से घनिष्ठ संबंध हैं, लेकिन इसके बावजूद देश में अमेरिका विरोधी भावनाएं मजबूत होती जा रही हैं. कई पाकिस्तानियों को लगता है कि अमेरिका अपना मतलब साधने के लिए पाकिस्तान का दोस्त बना हुआ है. वे आरोप लगाते हुए कहते हैं कि 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिका ने इस्लामाबाद को हथियार देने से इनकार कर दिया. 1970 और 1990 के दशक में परमाणु कार्यक्रम के चलते पाकिस्तान को अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा. रईस कहते हैं, "बड़े पैमाने पर देखा जाए तो ऐसा लगता है कि अमेरिका पाकिस्तान का दोस्त नहीं है. और इसके पीछे एक बड़ा कारण उसकी छवि है, जो ऐसी बन गई है कि अमेरिका भरोसमंद नहीं है."

'सबसे बड़ी पीड़ा'

रक्षा और राजनीतिक मामलों के विश्लेषक हसन असकरी रिजवी कहते हैं कि जैसे जैसे चुनाव करीब आएंगे, वैसे वैसे अमेरिका विरोधी भावनाएं ज्यादा उफान पर आएंगी.

बीते साल जर्मनी की कोनराड आडेनाउर फाउंडेशन ने एक सर्वे किया. सर्वे में पाकिस्तान के 38 फीसदी लोगों ने अमेरिका को 'सबसे बड़ी पीड़ा' कहा. सिर्फ नौ फीसदी लोगों ने परंपरागत दुश्मन समझे जाने वाले भारत को पाकिस्तान के लिए खतरा बताया.

तस्वीर: dapd

रहमान अमेरिका विरोधी बयान देने वाले पहले नेता नहीं है. पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान और तहरीक ए इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान भी अमेरिका से नाखुश हैं. 2013 चुनावों की तैयारियों में जुटे इमरान खान इस वक्त पाकिस्तान में अमेरिका विरोध का सबसे मुखर राजनीतिक चेहरा हैं. इसी महीने इमरान ने अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ प्रदर्शन की अगुवाई की. पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में जारी ड्रोन हमलों का विरोध करते हुए वह कहते हैं, "इन ड्रोन हमलों को बंद करने के लिए हम अमेरिका तक जा सकते हैं."

पीपीपी की दिक्कत

अमेरिका के प्रति बढ़ता गुस्सा पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी पीपीपी के लिए दिक्कत पैदा कर रहा है. राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और उनके सहयोगी जानते है कि देश अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक मदद पर चल रहा है. अमेरिकी पैसे से खस्ताहाल अर्थव्यवस्था किसी तरह सरक रही है और सेना पर होने वाले खर्च का भी इंतजाम हो रहा है. पीपीपी के विदेश मंत्रालय की संसदीय सचिव पालवाशा खान कहती हैं, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है, इस रिश्ते में इतना सब कुछ किए जाने के बाद भी अमेरिका विरोधी भावनाएं खत्म नहीं हो रही हैं. ऐसा कुछ है जिस पर दोनों देशों को ध्यान देने की जरूरत है."

लेकिन साथ ही पीपीपी को भी यह डर सताने लगा है कि अमेरिकी के प्रति उसकी उदार छवि का नुकसान चुनाव में हो सकता है. बीते साल नाटो के हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत का मुद्दा आए दिन उछल रहा है. नाटो का सप्लाई रूट खोलने के लिए सरकार की आलोचना हो रही है. जमात ए इस्लामी जैसे दल नारा देकर कह रहे हैं कि 'अमेरिका के दोस्त देशद्रोही' हैं. अमेरिका का विरोध कर रही पार्टियां तमाम मतभेदों के बावजूद चुनाव के बाद मिलकर सरकार बनाने के लिए भी तैयार दिख रही हैं.

ओएसजे/आईबी (डीपीए)

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