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पाकिस्तान की बाढ़ से भीगे जर्मन अखबार

२२ अगस्त २०१०

रंग कुछ भी हो, धर्म कोई भी हो, मुसीबत में पड़ा इंसान लाचारगी में होता है, ख़ासकर अगर वह विश्व के सबसे खतरनाक देश पाकिस्तान में रहता हो. पाकिस्तान के हालात जर्मन अखबारों का मुख्य मुद्दा बने हैं. भारत की मदद भी मुद्दा.

तस्वीर: AP

जर्मन पत्रिका डी त्साइट ने अपने पाठकों से बाढ़ पीडितों की मदद के लिए अपील की है, ताकि गलत लोग मदद के लिए सामने न आएं और यह देश और ख़तरनाक बन जाए. आगे कहा गया है, ''पाकिस्तान टूटने के कगार पर, परमाणु अस्त्रों सहित और भ्रष्टाचार में डूबा हुआ एक देश है, जो आतंक का निर्यात करता है और तालिबान की मदद करता है. और ऐसे एक देश की हम मदद करेंगे? बहुत से लोग ऐसा सोचते होंगे. लेकिन आज पाकिस्तान का जो रूप दिख रहा है, उसे हमने तैयार किया है. पश्चिम के देशों ने पाकिस्तान की सैनिक और सुरक्षा मशीनरी को पाला पोसा है. पहले रूस के खिलाफ और फिर आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में. और वहां पचास करोड़ नहीं जुटेगा, संयुक्त राष्ट्र को जब भूखे और बीमार लोगों की खातिर उसकी जरूरत है? पाकिस्तान की तड़पती जनता को यह अजीब लगेगा: जब हम तुम्हारे लिए जंग में शामिल होते हैं, तो अरबों की राशि बहा दी जाती है. लेकिन जब हम गले तक पानी मे डुबे हुए हैं, तुम्हारी भनक तक नहीं मिलती. पाकिस्तान को दुनिया के साथ एक नए डील की जरूरत है. एक मुल्क हथियार नहीं होता है. और मुसीबत में पड़ा इंसान मुसीबत में होता है.''

लेकिन यह भी सच है कि सिर्फ राहत के कदमों के जरिये हैती के भूकंप या पाकिस्तान में आई भयानक बाढ़ जैसी घटनाओं से निपटा नहीं जा सकता है. ऐसी आपदाएं भविष्य में और जटिल होने वाली हैं, उनकी संख्या बढ़ने वाली है. इसलिए डी त्साइट की राय में मदद का एक विश्वव्यापी नेटवर्क तैयार करना पड़ेगा. पत्रिका में कहा गया है, ''ऐसे नेटवर्क में बहुपक्षीय, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय संस्थाओं के बीच सहयोग होना चाहिए. एक ऐसा नेटवर्क, जो सही मूल्यांकन कर सके और जल्द कदम उठा सके. युद्ध या प्राकृतिक आपदाओं के कारण अगर किसी देश में विकास का आधार नष्ट हो जाए, तो जल्द पुनर्निर्माण के लिए मानवीय मदद की व्यवस्था की जा सके, ताकि राजनीतिक उद्देश्यों से संकट का दुरुपयोग न हो. ऐसे एक नेटवर्क का विस्तार करना पड़ेगा, क्योंकि विश्वव्यापी चुनौतियों के कारण मुसीबत में फंसे लोगों की संख्या बढ़ती रहेगी.''

तस्वीर: AP

पाकिस्तान की मदद इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कोई भी देश ऐसी भयानक प्राकृतिक आपदा से अकेले नहीं निपट सकता. लेकिन पाकिस्तान के मामले में इस्लामी देशों का संगठन ओआईसी अजीब ढंग से खामोश है. इसकी आलोचना करते हुए बर्लिन के दैनिक डेर टागेसश्पीगेल में कहा गया है,

''ओआईसी के होमपेज पर छठे स्थान पर सदस्य देशों, उनके नागरिकों और संस्थाओं और सदिच्छा वाले सभी लोगों के नाम संगठन के महासचिव की एक अपील छापी गई है कि वे बाढ़पीड़ितों की मदद करें. बस इतना ही. लेकिन अगर कहीं कोई कार्टून बनाने वाला रसूल मुहम्मद का अपमान करे तो ओआईसी तुरतं मुसलमानों की आहत भावनाओं के लिए उठ खड़ा होता है. और प्राकृतिक आपदाओं के शिकारों की देखभाल की जिम्मेदारी वे काफ़िरों पर छोड़ दे रहे हैं, जहां तक तालिबान उनके कामों में रुकावट न डाले.''

पाकिस्तान के दक्षिण में जकोबाबाद के ऐतिहासिक नगर को बाढ़ के चंगुल से बचाने की कोशिश जारी है. शहर की 90 फीसदी आबादी को सुरक्षित स्थानों में पहुंचाया गया है. शहर को बचाने के लिए सैनिकों ने एक बांध तोड़ दी है. लेकिन इसके नतीजे भी भयानक हैं. सैकड़ों गांव, जो इस बांध की वजह से अब तक सुरक्षित थे, अब पानी में डूब गए हैं. डेर टागेसश्पीगेल में इस सिलसिले में कहा गया है, ''जहां भी नज़र जाती है, धूप के तले एक विशाल सागर दिखता है. 20 हजार की आबादी वाले शहर शिकारपुर में नाटकीय दृश्य देखे जा सकते हैं. राहत सामग्रियों वाले ट्रकों के पीछ बच्चे बूढ़े सभी दौड़ते रहते हैं. उनकी जान बची है, लेकिन बदन पर कपड़ों के सिवाय उनके पास कुछ नहीं रह गया है. वे ट्रकों पर कूदने की कोशिश करते हैं, पुलिस के सिपाही लाठीचार्ज करते हैं. हर कहीं तंबुओं में ऐसे लोग दिखते हैं, जिनके चेहरे पर तबाही की तस्वीर खुदी हुई है.''

पाकिस्तानी मीडिया में बाढ़पीड़ितों की मदद के लिए सेना के कामों की तारीफ़ की जा रही है. सेना की भूमिका के बारे में नॉय त्स्युरिषर त्साइटुंग का कहना है, ''नवंबर 2007 में जब कयानी ने मुशर्रफ के हाथों से सेना की कमान संभाली थी, तो सेना की इज्जत धूल में लुटी हुई थी. अगस्त 2008 में मुशर्रफ के इस्तीफे के बाद जनरलों की इज्जत काफी बढ़ी, क्यों देश के रक्षकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. सरकार की आलोचना बढ़ती जा रही है. समाचार साधनों का कहना है कि वह बाढ़ से निपटने के काबिल नहीं है. साथ ही बाढ़पीड़ित क्षेत्रों में सेना के कामों की सराहना की जा रही है. अखबारों और टीवी रिपोर्टों में बाढ़ पीड़ितों का हवाला दिया जा रहा है कि वे सेना के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं.''

बर्लिन के वामपंथी दैनिक नॉएस डॉएचलांड में कहा गया है कि पिछले हफ्ते शुक्रवार से भारत इंतजार कर रहा है कि बाढ़ पीड़ितों के लिए वित्तीय मदद की उसकी पेशकश का कोई जवाब मिले. समाचार पत्र में इस सिलसिले में पूछे जाने पर विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा कि भारत के साथ पाकिस्तान के दूसरे तरीके के संबंध हैं. पाकिस्तान के दैनिक नवा इक्त में कहा गया है कि भारत की मदद की पेशकश जले पर नमक छिड़कना है. धन्यवाद कहते हुए उसे ठुकराना चाहिए.

रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: ओ सिंह

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