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गर्म होते पहाड़ों में मछली पाल कर मुनाफा कमा रहे हैं लोग

१८ सितम्बर २०१९

दो साल पहले राजा इकबाल हुसैन दुबई से नौकरी छोड़ उत्तरी पाकिस्तान के अपने गांव लौट आए ताकि मछली पालन शुरू कर सकें. गिलगित बल्तिस्तान के पहाड़ी इलाके में गर्मी बढ़ने के बाद किसान खेती की बजाय मछली पालन में जुट गए हैं.

Pakistan Raja Iqbal Hussain, Rückkehrer aus Dubai
राजा इकबाल हुसैनतस्वीर: Reuters/P. Muhammad

36 साल के राजा इकबाल हुसैन तीन बच्चों के पिता हैं और दुबई की नौकरी में उन्हें हर महीने बमुश्किल 50 हजार पाकिस्तानी रुपये (करीब 321 डॉलर) मिलते थे. अब उन्हें मछली पालने में मुनाफा होने लगा है जो अगले साल और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है. गीजर जिले के हुसैन कहते हैं, "मैं अपने व्यापार से यहां काफी अच्छी कमाई कर रहा हूं."

अपने गांव में नदी के पास ही उन्होंने तालाब खुदवाया है. इसमें 50,000 से ज्यादा मछलियां हैं और उसमें भी अधिकतर ट्राउट मछली है. इकबाल इन्हें कच्चा 1,200 पाकिस्तानी रुपये प्रति किलो के भाव से बेचते हैं. पकाने के बाद इनकी कीमत 1,800 रुपये प्रति किलो हो जाती है. अगर बोट से मछली पकड़नी हो तो ग्राहकों को 2,000 रुपये अलग से देने पड़ते हैं.

तस्वीर: Zillay Ali

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की एक नई रिपोर्ट बताती है कि तेजी से बढ़ते तापमान के कारण इलाके की घाटियों में आपदा का प्रकोप बढ़ गया है. ऐसे में पारंपरिक खेती पर संकट मंडरा रहा है. एक किसान ने बताया कि खेती की उत्पादकता 2010-15 के मुकाबले आधी रह गई है. यहां हालात सुधरने की उम्मीद नहीं दिख रही भारी बारिश के कारण फसलें तबाह हो रही हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी और भूखमरी का प्रकोप पाकिस्तान के इस पहाड़ी इलाके में बहुत ज्यादा है. गिलगित बल्तिस्तान के आधे से ज्यादा लोग कुपोषित हैं. सरकार के सहयोग से मछली पालन बढ़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के बीच गीजर इलाके में यह पोषण और पक्की आय का साधन बन रहा है.

अब्दुल वाहिद जसरा इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट(आईसीआईएमओडी) के पाकिस्तान प्रमुख हैं. उनका कहना है कि तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इनसे निकला पानी जगह झगह झीलों की शक्ल ले रहा है. इस ठंडे पानी को मछली पालन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इन झीलों में अत्ताबाद लेक भी शामिल है जो हुंजा घाटी में 2010 में हुए घातक भूस्खलन के बाद सामने आया था. अब्दुल वाहिद जसरा कहते हैं, "पहाड़ी समुदायों के पास आय के बहुत सीमित साधन हैं, यह सेक्टर उनके लिए कमाई के कई रास्ते बना सकता है." जसरा ने यह भी कहा कि पड़ोस में मौजूद चीन निर्यात का एक बड़ा बाजार बनने के साथ ही  फैक्ट्रियों और परिवहन में निवेश का जरिया भी बन सकता है. 

आमतौर पर इस इलाके में गेहूं, आलू और जौ उगाई जाती है इसके साथ ही अंगूर, सेब, खुबानी की फसल भी होती है. हालांकि भारी बारिश, कीटों की मार और मौसमी बीमारियों के कारण इन फसलों पर काफी बुरा असर पड़ा है. दूसरी तरफ मछली पालन से पूरे साल आमदनी होती है. इस पर जलवायु परिवर्तन का भी कोई असर नहीं है.

गीजर में ट्राउट की ब्रीडिंग खूब हो रही है हालांकि इसके लिए पहले अधिकारियों की मंजूरी लेनी होती है. आईसीआईएमओडी और पाकिस्तान एग्रीकल्चर रिसर्च काउंसिल ने गिलगित में एक रिसर्च सेंटर खोला है और एक लैबोरेट्री भी बना रहे हैं ताकि ठंडे पानी में पैदा होने वाली और मछलियों के बारे में जानकारी जुटाई जा सके.

इकबाल के ग्राहकों में स्थानीय होटल, सैलानी और यहां के आम लोग शामिल हैं. ट्राउट जल्दी खराब हो जाती है. बढ़िया पैकिंग और परिवहन का साधन नहीं होने की वजह से वह इन्हें बड़े शहरों के बाजारों तक नहीं भेजना शुरू नहीं कर पाए हैं. दूसरे कई स्थानीय किसानों ने भी तालाब बनाए हैं. सुंडी गांव के खुर्शीद अमन ने दो अपने घर के पास दो छोटे छोटे तालाब बनवाए हैं जिनमें 5,000 मछलियां हैं. एक सरकारी विभाग में नौकरी के अलावा वह सैलानियों और स्थानीय लोगों को मछली बेच कर भी अच्छी कमाई कर लेते हैं. अमन बताते हैं, "चिकेन की तुलना में महंगा होने के बावजूद बहुत से लोग मछली खरीदना पसंद करते हैं."

बीते तीन साल में सरकार ने 60 निजी फिश फार्मों को बनाने के लिए सहयोग दिया है. ऐसे 10 और फार्म तैयार हो रहे हैं. तकनीकी और आर्थिक मदद के अलावा सरकार ने इस साल 4 लाख छोटी मछलियां किसानों को दीं ताकि वो अपना कारोबार बढ़ा सकें. बढ़िया मुनाफा देख कर थोड़े ही वक्त में लोगों ने इस में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है. पारंपरिक खेती की तुलना में इसमें निवेश और मेहनत कम है. स्थानीय प्रशासन मछलियों की कीमत तय करने के बारे में भी सोच रहा है ताकि मछलियां आम लोगों की पहुंच में रह सकें.  इसके साथ ही महिलाओं को भी इस काम में शामिल किया जा रहा है ताकि वो घर के पिछवाड़े में तालाब बना कर छोटे स्तर पर इस काम को कर सकें. इतना ही नहीं सामुदायिक फार्म भी बनाए जा रहे हैं. इससे होने वाली आय को समुदाय के लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं , शिक्षा और दूसरी साझी जरूरतों पर खर्च किया जाता है.

एनआर/आरपी(रॉयटर्स)

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