पाकिस्तान में महिला उम्मीदवारों की बढ़ी संख्या ने चुनावी माहौल को रोचक बना दिया है. सभी अहम पार्टियों ने महिलाओं को टिकट दिए हैं.
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25 जुलाई को पाकिस्तान में राष्ट्रीय संसद और चारों प्रांतों की असेंबलियों के लिए एक साथ वोट डाले जाएंगे. इस बार वहां बड़ी संख्या में महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं और खूब प्रचार कर रही हैं. बताया जाता है कि पुरुषों के मुकाबले उनकी रैलियों में भीड़ भी ज्यादा जुट रही है.
पाकिस्तानी नेशनल असेंबली की 272 सामान्य सीटों पर 171 महिला उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रही हैं. पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ी है. दो साल पहले देश में हुए निकाय चुनाव में भी काफी संख्या में महिलाओं ने चुनाव में जीत दर्ज की थी.
निकाय चुनाव की जीत ने पाकिस्तानी महिलाओं में जोश भर दिया है. यही वजह है कि इस बार के आम चुनाव इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में महिला प्रत्याशी मैदान हैं.
ये है पाकिस्तान की पूरी कहानी
पाकिस्तान बनने से अब तक की पूरी कहानी
पाकिस्तान का 70 साल का इतिहास उथल पुथल से भरा है. एक ऐसा देश जो ना सिर्फ पाकिस्तानी सेना के हाथों की कठपुतली रहा है, बल्कि राजनेताओं के सियासी दाव पेंच भी उसका इम्तिहान लेते रहे हैं. जानिए पाकिस्तान में कब क्या हुआ..
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1947
अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना देश के गवर्नर जनरल बने जबकि लियाकत अली खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन इसके एक साल बाद ही जिन्नाह का निधन हो गया जो टीबी की बीमारी से पीड़ित थे.
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1951
प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की रावलपिंडी में हत्या कर दी गई. कंपनी बाग में वह एक सभा में मौजूद थे कि उन पर दो गोलियां दागी गईं. पुलिस ने मौके पर ही हमलावर को ढेर कर दिया. लियाकत अली को झटपट अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. उनके बाद बंगाली मूल के ख्वाजा नजीमुद्दीन पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री बने.
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1958
पाकिस्तान को 1956 में पहला संविधान मिला. लेकिन सियासी खींचतान के बीच 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा ने संविधान को निलंबित कर मार्शल लॉ लगा दिया. फिर कुछ दिनों बाद ही सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने मिर्जा को हटाया और खुद देश के राष्ट्रपति बन बैठे. पाकिस्तान में पहली बार सत्ता सेना के हाथ में आई.
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1965
पाकिस्तान में अमेरिका जैसी राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने वाले अयूब खान ने 1965 में चुनाव कराने का फैसला किया. वह खुद पाकिस्तान मुस्लिम लीग के उम्मीदवार बने जबकि उनके सामने विपक्ष ने जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को उतारा. फातिमा जिन्ना को भरपूर वोट मिले लेकिन अयूब खान इलेक्ट्रोल कॉलेज के जरिए चुनाव जीत गए.
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1969
फातिमा जिन्ना के खिलाफ विवादास्पद जीत और भारत के साथ 1965 में हुई जंग के नतीजों से अयूब खान की छवि को बहुत नुकसान हुआ. जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों के बीच उन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ दिया और सत्ता अपने आर्मी चीफ जनरल याहया खान को सौंप दी. देश में फिर मार्शल लॉ लगा और सभी असेंबलियां भंग कर दी गईं.
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1970
पाकिस्तान में आम चुनाव कराए गए. पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के नेता शेख मुजीबउर रहमान की पार्टी आवामी लीग को जीत मिली. नेशनल असेंबली की कुल 300 सीटों में से आवामी लीग को 160 सीटें मिली. 81 सीटों के साथ जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी दूसरे नंबर पर रही. लेकिन आवामी लीग की जीत को स्वीकार नहीं किया गया.
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1971
चुनाव नतीजों को लेकर छिड़े विवाद ने एक युद्ध की जमीन तैयार की. इसमें भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की मदद की और 1971 में बांग्लादेश के नाम से भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए देश का उदय हुआ. बुनियादी तौर पर भारत का विभाजन धर्म के नाम पर हुआ. लेकिन एक धर्म होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान एक साथ नहीं रह पाए.
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1972
पाकिस्तान की टूट के लिए याहया खान के शासन को जिम्मेदार माना गया, जिसके कारण उनका सत्ता में रहना मुश्किल होने लगा. ऐसे में, उन्होंने देश की सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. देश में लगे मार्शल लॉ को हटाया गया और जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. 1972 में ही भुट्टो ने पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शुरू किया.
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1973
पाकिस्तान में फिर एक नया संविधान लागू हुआ जिसके तहत पाकिस्तान को एक संसदीय लोकतंत्र बनाया गया, जिसमें प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख हो. इस तरह भुट्टो राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री पद पर आ गए. भुट्टो ने 1976 में जनरल जिया उल हक को अपना चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया, जो आगे चल कर उनके लिए मुसीबत बन गए.
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1977
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. भुट्टो की पार्टी को जबरदस्त जीत मिली. लेकिन विपक्ष ने चुनावों में धांधली के आरोप लगाए और देश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया. मौके का फायदा उठाते हुए जिया उल हक ने भुट्टो का तख्तापलट किया और संविधान को निलंबित कर देश में फिर से मार्शल लॉ लगा दिया.
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1978
जिया उल हक ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. उन्होंने सेना प्रमुख का पद भी अपने ही पास रखा. भुट्टो को जिया की "हत्या के साजिश" के आरोप में दोषी करार देकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. इसी साल जिया उल हक देश के इस्लामीकरण की अपनी नीति के तहत विवादित हूदूद ऑर्डिनेंस लाए, जिसमें कुरान के मुताबिक सजाएं देने का प्रावधान किया गया.
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1985
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए, लेकिन पार्टी के आधार पर नहीं. मार्शल लॉ हटाया गया और नई नेशनल असेंबली ने बीते आठ साल के जिया के कामों पर मुहर लगाई और उन्हें राष्ट्रपति चुना गया. मोहम्मद खान जुनेजो प्रधानमंत्री बनाए गए. इससे पहले 1984 में जिया उल हक ने अपनी इस्लामीकरण की नीति पर एक जनमत संग्रह भी कराया जिसमें 95 समर्थन का दावा किया गया.
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1988
बढ़ते मतभेदों के बीच जिया उल हक ने संसद को भंग कर दिया और जुनेजो की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया. 90 दिनों के भीतर उन्होंने देश में नए आम चुनाव कराने का वादा किया. लेकिन 17 अगस्त 1988 को वह अपने 31 अन्य साथियों के साथ एक विमान हादसे में मारे गए. 1978 से लेकर 1988 तक जिया उल हक ने पाकिस्तान पर एक छत्र राज किया.
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1990
भ्रष्टाचार के आरोपों में बेनजीर को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी. राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने संसद को भंग कर भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया. चुनाव हुए और जिया के दौर में सियासत का ककहरा सीखने वाले नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री चुने गए. इसके साल भर बाद पाकिस्तान की संसद ने शरिया बिल को मंजूर किया और इस्लामिक कानून पाकिस्तान की न्याय प्रणाली का हिस्सा बने.
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1993
राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने नवाज शरीफ सरकार को भी भ्रष्टाचार और नकारेपन के आरोपों में चलता कर दिया. इसी साल खुद उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया. देश में फिर चुनाव हुए जिनमें जीत दर्ज कर बेनजीर भुट्टो दूसरी बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के एक सदस्य फारूक लेघारी को देश का राष्ट्रपति चुना गया.
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1996
राष्ट्रपति लेघारी ने नेशनल असेंबली को भंग कर बेनजीर सरकार को बर्खास्त कर दिया जो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी. इस तरह, दस साल के भीतर देश चौथी बार आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा था. 1997 के चुनाव में नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) को जबरदस्त जीत मिली और वह दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने.
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1998
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान प्रांत के चघाई की पहाड़ियों में परमाणु परीक्षण किया. इससे चंद दिन पहले भारत ने पोखरण 2 परमाणु परीक्षण किया था. परमाणु परीक्षण के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन इससे भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु हथियारों की होड़ को रोका नहीं जा सका.
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1999
कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की जगह ख्वाजा जियाउद्दीन अब्बासी को सेना प्रमुख बनाना चाहते थे. लेकिन जैसे ही इसका पता मुशर्रफ को लगा तो उन्होंने नवाज शरीफ का ही तख्तापलट कर दिया और उन्हें नजरबंद कर लिया. इस तरह पाकिस्तान की बागडोर चौथी बार एक सैन्य शासक के हाथ में आई.
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2000
सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ के तख्तापलट को उचित ठहराया और तीन साल के लिए उन्हें सारे अधिकार दे दिए. इसी साल नवाज शरीफ और उनका परिवार निर्वासन में सऊदी अरब चले गए. 2001 में मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए और सेना प्रमुख का पद भी उन्होंने अपने पास ही रखा.
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2002
पाकिस्तान में फिर से आम चुनाव हुए और ज्यादातर सीटें पीएमएल (क्यू) ने जीती. इस पार्टी को मुशर्रफ ने ही बनाया था जिसमें उनके वफादारों को अहम पद मिले. जफरउल्लाह खान जमाली (फोटो में सबसे दाएं) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए. लेकिन वह दो साल ही पद पर रह पाए. 2004 में उनकी जगह शौकत अजीज को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया.
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2007
राष्ट्रपति मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी को बर्खास्त कर दिया जिसके बाद देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. आखिरकार चौधरी को बहाल किया गया लेकिन मुशर्रफ ने देश में इमरजेंसी लगा दी. इस बीच पाकिस्तानी संसद ने पहली बार अपना पांच साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा कर लिया.
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2007
आम चुनावों में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की नेता बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान लौटीं. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे वापस लिए गए. लेकिन रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई. उनकी हत्या उसी कंपनी बाग में हुई जहां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को कत्ल किया गया था.
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2008
बेनजीर की मौत के बाद चुनावों में पीपीपी को सहानुभूति लहर का फायदा हुआ और नेशनल असेंबली की ज्यादातर सीटें उसके खाते में आईं. यूसुफ रजा गिलानी देश के प्रधानमंत्री बने जबकि बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी ने राष्ट्रपति का पद संभाला. आरोपों और विवादों के बीच पीपीपी की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
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2013
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए और पीएमएल (एन) सत्ता में आई. नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. क्रिकेट से राजनेता बने इमरान की पार्टी 2013 के चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी ताकत बन कर उभरी. 17 प्रतिशत वोटों के साथ उसने राष्ट्रीय संसद की 35 सीटें जीतीं और खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में उसकी सरकार बनी.
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2017
भ्रष्टाचार के आरोपों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें किसी सार्वजनिक पद पर रहने और चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री पद अपने विश्वासपात्र शाहिद खाकान अब्बासी को सौंपा. नवाज शरीफ अपने खिलाफ मुदकमों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. पाकिस्तानी सेना से टकराव के कारण भी वह चर्चा में आए.
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2018
पाकिस्तान में फिर चुनाव हुए. सेना पर आरोप लगे कि वह किसी भी तरह से नवाज शरीफ और उनकी पार्टी को सत्ता से बाहर रखना चाहती थी. चुनाव मैदान में इमरान खान को सेना का समर्थन मिला. चुनाव प्रक्रिया में धांधली के आरोप भी लगे. फिलहाल इमरान पाकिस्तान के पीएम हैं. लेकिन पाकिस्तान बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है. कर्ज से लेकर फंड की कमी तक की चुनौतियां इमरान के सामने हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Farmer
2019
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. इमरान खान ने अपने चुनाव प्रचार में पाकिस्तान को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की बात की थी. इमरान खान की तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान अभी आर्थिक संकट से निकल नहीं पाया है. भारत के साथ चल रहे तनाव से पाकिस्तान को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
इस बार लगभग सभी पार्टियों ने महिलाओं को टिकट दिए हैं. इसे बदलाव की बयार ही कहेंगे कि सिंध सीट से हिंदू महिला उम्मीदवार भी चुनाव में ताल ठोक रही हैं. मौजूदा 2018 के आम चुनाव में इस बार 105 महिला उम्मीदवार विभिन्न दलों से उम्मीदवार बनाई गई हैं, जबकि सत्तर महिला प्रत्याशी बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान अखाड़े में हैं.
बताया जाता है कि बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख की एक चचेरी बहन नूरजहां भी चुनावी अखाड़े में हैं. वह खैबर पख्तूनख्वा की असेंबली सीट पीके-77 से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. उनके अलावा एक महिला उम्मीदवार ऐसी सीट से चुनाव लड़ रही हैं जहां कभी महिलाओं को मतदान करने की भी इजाजत नहीं थी. उस महिला उम्मीदवार का नाम हमीदा रशीद है. वह पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी से चुनाव लड़ रही हैं.
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने सबसे ज्यादा 19 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है. इनमें 11 पंजाब से पांच सिंध से और खैबर पख्तूनख्वा से तीन महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है. पाकिस्तान का लोकतंत्र मुल्क गठन के बाद से ही संगीनों के साये में कैद रहा है. पाकिस्तान के मौजूदा संसदीय चुनाव में अपनी भागीदारी के जरिए वहां की महिलाएं बंदिशों की बेड़ियां तोड़ना चाहती हैं.
चीन ने पाकिस्तानी सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे
00:44
पाकिस्तान में महिला सशक्तिकरण की जब भी बात की जाती है, तब सिर्फ राजनीतिक और आर्थिक सशक्तिकरण पर चर्चा होती है लेकिन सामाजिक सशक्तिकरण की चर्चा नहीं होती. भले ही पाकिस्तानी महिलाओं को कई कानूनी अधिकार मिल चुके हों, लेकिन जब तक वह राजनीतिक रूप से सशक्त नहीं होगी, उनका कल्याण नहीं होने वाला.
पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ओस्लो की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 153 देशों में पाकिस्तान की आधी आबादी की दयनीयता चौथे स्थान पर है. रिपोर्ट में पाकिस्तानी महिलाओं की न्याय, सुरक्षा, समावेश और वित्तीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है. इन विषम परिस्थितियों के बावजूद पाकिस्तान आम चुनाव में महिला उम्मीदवारों की मौजूदगी मुल्क में आशा की किरण जैसी है.
रमेश ठाकुर/आईएएनएस
पाकिस्तान का आर्मी चीफ बनने की तमन्ना
पाकिस्तान की आर्मी चीफ बनना चाहती है ये लड़की
पाकिस्तान में लड़कियों के लिए जो सपना कभी असंभव सा दिखता था, वह धीरे धीरे संभव हो रहा है. सेना में जाने का उनका सपना साकार हो रहा है. अब वहां लड़कियों के लिए कैडेट कॉलेज खोला गया है.
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बड़ा सपना
मर्दान के गर्ल्स कैटेड कॉलेज में पढ़ने वाली 13 साल की दुरखाने बानुरी की आखों में एक बड़ा सपना पल रहा है. वह पाकिस्तान की पहली महिला सेना प्रमुख बनना चाहती है. वह कहती हैं, "जब एक महिला प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और स्टेट बैंक की गवर्नर बन सकती हैं, तो फिर सेना प्रमुख क्यों नहीं."
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पहला गर्ल्स कैडेट कॉलेज
इस्लामाबाद से 110 किलोमीटर दूर मर्दान के इस कॉलेज में बानुरी जैसी 70 लड़कियां पढ़ती हैं. यह पाकिस्तान में अपनी तरह का पहला कॉलेज हैं जहां लड़कियों को सेना में जाने के लिए तैयार किया जा रहा है. पाकिस्तानी सेना में महिलाओं की भागादारी बढ़ाने की दिशा में इसे अहम कोशिश माना जा रहा है.
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कैडेट कॉलेज के फायदे
अब से पहले पाकिस्तान में सिर्फ लड़कों के कैडेट कॉलेज रहे हैं, जहां पढ़ने वालों को सेना की नौकरियों में प्राथमिकता दी जाती है. पाकिस्तान में सेना में जाने का मतलब है कि भविष्य सुरक्षित होना. कैडेट कॉलेजों में पढ़ने वालों को बेहतरीन ट्रेनिंग मिलती हैं. उन्हें अच्छे से अच्छे संसाधन मुहैया कराए जाते हैं.
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बेहतरी की उम्मीद
देश भर में ऐसे कैडेट कॉलेजों में सैकड़ों लड़के पढ़ते हैं. लेकिन लड़कियों को वहां पढ़ने की अनुमति नहीं है. ऐसे में मर्दान में बना विशेष कॉलेज अपवाद दिखता है. रिटायर्ड ब्रिगेडियर नूरीन सत्ती का कहना है, "ऐसे कॉलेज लड़कियों को सशस्त्र सेनाओं, विदेश सेवा और सिविल सर्विस का हिस्सा या फिर डॉक्टर इंजीनियर बनने में मदद करेंगे."
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कड़ी ट्रेनिंग
खाकी वर्दी और सिर पर लाल टोपी के साथ दुरखाने और उसकी क्लासमेट परेड ग्राउंड में मार्च करती हैं, इंस्ट्रक्टर के निर्देश पर कदमताल करती हैं. साथ वे फिजीकल ट्रेनिंग और मार्शल आर्ट ट्रेनिंग में हिस्सा लेती हैं. सेना में जाना है तो कड़ा अनुशासन और शारीरिक रूप से चुस्त दुरुस्त रहना ही होगा.
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सेना की ताकत
पाकिस्तान में सेना को सबसे ताकतवर संस्थान के रूप में देखा जाता है. देश के 70 साल के इतिहास में आधे समय तक सेना ने ही देश पर राज किया है. माना जाता है कि देश में चुनी हुई सरकार रहने पर भी रक्षा और विदेश नीति सेना ही तय करती है.
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मुशर्रफ ने खोले दरवाजे
सेना में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है. जो भी महिलाएं सेना में रहती हैं, उनकी जिम्मेदारी प्रशासनिक कार्यों तक सीमित रही है. लेकिन 2003 में सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने महिलाओं के लिए सेना, नौसेना और वायुसेना की युद्धक शाखाओं के दरवाजे खोल दिए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कितनी महिलाएं
पाकिस्तानी सेना ने कभी नहीं बताया कि उसके यहां कितनी महिलाएं काम करती हैं. एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर एएफपी को बताया कि लगभग सात लाख सैनिकों वाली पाकिस्तानी सेना में लगभग चार हजार महिलाएं हैं.
तस्वीर: Reuters
पहली फाइटर पायलट
आयशा फारूक 2013 में पाकिस्तान की पहली महिला फाइटर पायलट बनीं. आयशा उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने बीते 10 साल में वायुसेना में ट्रेनिंग ली, लेकिन लड़ाकू विमान उड़ाने वाली वह पहली हैं. हाल के सालों में पाकिस्तानी वायुसेना में शामिल होने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है.