अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की झिड़की से नाराज पाकिस्तान का "सदाबहार मित्र" चीन समर्थन में आया है. ट्रंप के ट्वीट के बाद पाकिस्तान ने अमेरिकी राजदूत को सम्मन किया.
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पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में तैनात अमेरिकी राजदूत डैविड हेल को अपने विदेश मंत्रालय में तलब किया है. अमेरिकी दूतावास ने भी सम्मन की पुष्टि की है. दूतावास ने एक बयान जारी कर कहा, "इस मीटिंग के पहलुओं के बारे में हमारी कोई प्रतिक्रिया नहीं है."
अमेरिकी राष्ट्रपति ने 2018 के पहले ट्वीट में पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की. ट्वीट के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 25.5 करोड़ डॉलर की सालाना सहायता राशि भी रोक दी. ट्रंप के मुताबिक अमेरिका ने बीते 15 साल में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी. अमेरिकी राष्ट्रपति का आरोप है कि पाकिस्तान ने इस सहायता के बदले में अमेरिका को सिर्फ गुमराह किया. ट्वीट में ट्रंप ने यह भी कहा कि, "जिन आतंकवादियों को हम अफगानिस्तान में खोजते हैं, वे उन्हें सुरक्षित ठिकाने देते हैं."
पाकिस्तान ने ट्रंप के बयानों पर नाराजगी भरी टिप्पणी की है. रक्षा मंत्री से लेकर विदेश मंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति के ट्वीट की आलोचना की है. वरिष्ठ विश्लेषक इम्तियाज गुल मानते हैं कि पहले से खराब चल रहे पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते अब और बुरे दौरे में जाएंगे.
दो खेमों में बंटा दक्षिण एशिया
अमेरिका हक्कानी नेटवर्क के प्रति पाकिस्तान की नरमी से नाराज है. हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना पर कई कातिलाना हमले किये हैं. अमेरिकी सेना के पूर्व टॉप कमांडर माइक मुलेन तो हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का अभिन्न अंग भी करार दे चुके हैं.
क्यों दुर्दांत माना जाता है हक्कानी नेटवर्क
अफगानिस्तान में तैनात विदेशी सेनाओं के लिए हक्कानी नेटवर्क सबसे बड़ा खतरा रहा है. आखिर हक्कानी नेटवर्क को इस इलाके में सबसे दुर्दांत आतंकवादी संगठन क्यों माना जाता है?
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सोवियत अफगान युद्ध का अवशेष
हक्कानी नेटवर्क का गठन जलालुद्दीन हक्कानी ने किया था जिसने अफगानिस्तान में 1980 के दशक में सोवियत फौजों से जंग लड़ी थी. उस समय मुजाहिदीन को अमेरिका का समर्थन हासिल था. 1995 में हक्कानी नेटवर्क तालिबान के साथ मिल गया और दोनों गुटों ने अफगान राजधानी काबुल पर 1996 में कब्जा कर लिया. 2012 में अमेरिका ने इस गुट को आतंकवादी संगठन घोषित किया.
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इस्लामी विचारक
1939 में अफगान प्रांत पकतिया में जलालुद्दीन हक्कानी का जन्म हुआ. उसने दारुल उलूम हक्कानिया से पढ़ाई की. इसे पाकिस्तान के बड़े धार्मिक नेता मौलाना समी उल हक के पिता ने 1947 में शुरू किया था. दारुल उलूम हक्कानिया तालिबान और दूसरे चरमपंथी गुटों के साथ अपने संबंधों के लिए जाना जाता है.
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तालिबान मंत्री बने जलालुद्दीन हक्कानी
तालिबान के शासन में जलालुद्दीन हक्कानी को अफगान कबायली मामलों का मंत्री बनाया गया. 2001 में अमेरिका के हमलों के बाद तालिबान का शासन खत्म होने तक वह इस पद पर था. तालिबान नेता मुल्ला उमर के बाद जलालुद्दीन को अफगानिस्तान में सबसे प्रभावशाली चरमपंथी माना जाता था. जलालुद्दीन के अल कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन से भी गहरे संबंध थे.
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हक्कानी नेटवर्क कहां है
रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि इस गुट का कमांड सेंटर अफगान सीमा से लगते पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान के मीरनशाह शहर में है. अमेरिकी और अफगान अधिकारियों का दावा है कि हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की सेना का समर्थन है हालांकि पाकिस्तानी अधिकारी इससे इनकार करते हैं. अमेरिका का कहना है कि इस गुट के लड़ाकों ने अफगानिस्तान में विदेशी सेना, स्थानीय फौज और नागरिकों पर हमले किये हैं.
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हक्कानी विरासत
माना जाता है कि 2015 में जलालुद्दीन हक्कानी की मौत हो गयी लेकिन इस गुट ने पहले इस तरह की खबरों को खारिज किया. नेटवर्क का नेतृत्व अब जलालुद्दीन के बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी के हाथ में है. सिराजुद्दीन तालिबान का भी उप प्रमुख है.
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सिराजुद्दीन हक्कानी कौन है?
इस बारे में बहुत पुख्ता जानकारी तो नहीं लेकिन जानकारों का कहना है कि उसने अपना बचपन पाकिस्तान के मीरनशाह में बिताया है. पेशावर के उपनगर में मौजूद दारुल उलूम हक्कानिया में पढ़ाई की है. सिराजुद्दीन को सैन्य मामलों का जानकार माना जाता है. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि सिराजुद्दीन वैचारिक रूप से अपने पिता की तुलना में ज्यादा कट्टर हैं.
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अनास हक्कानी को मौत की सजा
अनास हक्कानी जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है. उसकी मां संयुक्त अरब अमीरात से है. अनास फिलहाल अफगान सरकार की गिरफ्त में है और उसे मौत की सजा सुनायी गयी है. हक्कानी नेटवर्क ने अनास को फांसी की सजा होने पर अफगानिस्तान को कड़े नतीजे भुगतने की चेतावनी दी है.
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कितना बड़ा है हक्कानी नेटवर्क
अफगान मामलों के जानकार और रिसर्च संस्थानों का कहना है कि इस गुट के साथ तीन से पांच हजार लड़ाके हैं. नेटवर्क को मुख्य रूप से खाड़ी के देशों से धन मिलता है. हक्कानी नेटवर्क अपहरण और जबरन वसूली के जरिये भी अपने अभियानों के लिए धन जुटाता है.
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आतंकवादी गुटों से संबंध
हक्कानियों का क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी संगठनों जैसे कि अल कायदा, तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान, लश्कर ए तैयबा और मध्य एशियाई इस्लामी गुटों से अच्छा संबंध है. जलालुद्दीन हक्कानी ना सिर्फ बिन लादेन बल्कि अल कायदा के वर्तमान प्रमुख अयमान अल जवाहिरी के भी काफी करीब थे.
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अफगानिस्तान समेत कई मुद्दों पर अमेरिका और भारत करीब आ रहे हैं. यह नजदीकी पाकिस्तान को असहज कर रही है. इस्लामाबाद को लगने लगा है कि अमेरिका भारत के सुर में सुर मिला रहा है. ऐसी मुश्किल घड़ी में पाकिस्तान को अपने सदाबहार दोस्त चीन का साथ मिला है. ट्रंप के ट्वीट के अगले ही दिन चीन ने आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में पाकिस्तान की भूमिका को सराहा. इस्लामाबाद की पीठ थपथपाते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, "पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बड़ा योगदान दिया है और बलिदान भी. आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौती से निपटने में पाकिस्तान ने जबरदस्त भूमिका निभाई है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसे स्वीकार करना चाहिए."
यह पहला मौका नहीं है जब चीन पाकिस्तान के समर्थन में आया है. दक्षिण एशिया की राजनीति अब पूरी तरह दो खेमों में बंट चुकी है. एक तरफ अमेरिका और भारत नजर आते हैं, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन. आतंकवाद, आर्थिक सहयोग और रणनैतिक साझेदारी जैसे मामलों में भी यह खेमे साफ तौर पर आमने सामने खड़े नजर आते हैं.
कैसे पड़ी कड़वाहट
11 दिसंबर 2001 के दिन अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद वॉशिंगटन ने अफगानिस्तान में अल कायदा और तालिबान के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ा. इस अभियान के तहत अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना सहयोगी बनाया. अफगानिस्तान तक पहुंचने लिए पाकिस्तान के सैन्य अड्डों और एयरपोर्टों का इस्तेमाल किया गया. अफगानिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ जंग आज भी जारी है.
वक्त बीतने के साथ काबुल और वॉशिंगटन यह आरोप लगाने लगे कि पाकिस्तान आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह दे रहा है. 2011 में अमेरिकी कमांडो दस्ते ने पाकिस्तानी शहर एबटाबाद में अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार गिराया. बिन लादेन के पाकिस्तान में मिलने के बाद से ही दोनों देशों के मीठे रिश्ते कड़वाहट में बदलते गए.
क्या भूल गये सब ओसामा बिन लादेन को
ओसामा बिन लादेन की मौत के छह साल बाद आज अल-कायदा की स्थिति कमजोर पड़ गयी है. लेकिन अब भी दुनिया से आतंकवाद का खात्मा नहीं हुआ. अल-कायदा के खिलाफ अमेरिका की जीत जरूर हुई थी लेकिन अब दुनिया आईएस से परेशान है.
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अल-कायदा की जगह
आतंकवादी समूह अल कायदा और इसके प्रमुख ओसामा बिन लादेन को भुलाने में अमेरिका से ज्यादा इस्लामिक स्टेट का हाथ रहा है. आईएस ने ना केवल मध्यपूर्व में अल-कायदा की खाली जगह को भरा बल्कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र पर भी अपना दबदबा कायम किया, जहां कभी अल-कायदा सक्रिय था.
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आईएस का खौफ
आज तालिबान के कई गुटों समेत दक्षिण एशिया के कई आतंकवादी समूह, इस्लामिक स्टेट (आईएस) के करीब जा रहे हैं. आईएस ने पिछले कुछ सालों में ही इराक और सीरिया के कई इलाकों में अपना दबदबा कायम किया. दुनिया भी आज ओसामा बिन लादेन को भूल कर, आईएस प्रमुख अबु-बकर बकदादी से खौफ खा रही है.
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लादेन की मौत
मई 2011 में जब अमेरिकी सुरक्षा बलों ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद शहर में लादेन को मारा था तो पूरी दुनिया ने चैन की सांस ली थी. लादेन अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन था जिस तक पहुंचने में अमेरिका को छह साल से भी अधिक का समय लगा. इस दौरान पाकिस्तान पर भी आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगे
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कायम कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद
आज भले ही अल-कायदा कमजोर पड़ गया हो लेकिन कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा फलती फूलती जा रही है. बिन लादेन को मरे सालों हो गये लेकिन उसकी मौत से लेकर अब तक कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद नये चरम पर पहुंच गया है.
अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि अल कायदा के पतन का सबसे अधिक लाभ आईएस को मिला है और आज यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों ही देशों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है. लेकिन इनके काम करने के तरीके में बड़े अंतर है.
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तरीके में अंतर
आईएस ने सीरिया और इराक के कुछ क्षेत्रों में सफलतापूर्वक अपने केंद्र स्थापित किये हैं वहीं अल-कायदा ने कभी अपने क्षेत्र स्थापित नहीं किये. आईएस ने वित्तीय संसाधनों के लिये इराक और सीरिया के तेल क्षेत्रों में भी अपना नियंत्रण स्थापित किया.
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बाकी है अल-कायदा
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि दक्षिण एशिया में अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठन अब भी सक्रिय हैं और आतंकी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. विशेषज्ञों को आशंका है कि अगर अफगानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद नहीं किया गया तो अल-कायदा वहां फिर से जड़ें जमा सकता है.
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कहां है अल-जवाहिरी
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अल कायदा प्रमुख अल-जवाहिरी पाकिस्तान के कराची शहर में छुपा हो सकता है. कुछ अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि अल-कायदा को कमजोर समझना अमेरिका की भूल हो सकती है. क्योंकि वह भी अमेरिका के खिलाफ किसी साजिश में शामिल हो सकती है.