पाकिस्तान के जंग मीडिया ग्रुप के मुख्य संपादक मीर शकील उर रहमान की गिरफ्तारी की गूंज यूरोपीय संघ तक सुनाई दे रही है. आलोचक कहते हैं कि इमरान खान अपनी सरकार के प्रदर्शन पर सवाल उठाने वालों को निशाना बना रहे हैं.
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शकील उर रहमान पाकिस्तान के सबसे बड़े मीडिया ग्रुप के मालिक और मुख्य संपादक हैं. पिछले महीने उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर 1980 के दशक में गैरकानूनी तरीके से एक संपत्ति खरीदने के आरोप हैं. पाकिस्तान के राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) का आरोप है कि रहमान ने 1986 में गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन को लीज पर लिया और 2016 में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कार्यकाल में जमीन की मिल्कियत अपने नाम ट्रांसफर करा ली. 1980 के दशक में शरीफ पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री थे.
एनएबी के प्रवक्ता नवाजिश अली ने डीडब्ल्यू को बताया कि रहमान को संपत्ति के गलत सौदे और टैक्स चोरी के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. उन्होंने इस बारे में जारी जांच का ताजा विवरण देने से इनकार कर दिया. रहमान के जंग मीडिया समूह से जुड़े एक खोजी पत्रकार उमर चीमा का कहना है, "एनएबी ने पहले ही रहमान को गिरफ्तार करने का मन बना लिया है. उन्हें रहमान के खिलाफ जब कुछ नहीं मिला तो उन्होंने 34 साल पुराने संपत्ति की खरीद के एक मामले को खोला है."
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प्रेस को कहां कितनी आजादी है?
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
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1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
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2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
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4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
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5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
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6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
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7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
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8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
तस्वीर: dapd
9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
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10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
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11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
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अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
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पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.
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पाकिस्तानी पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने रहमान की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया है और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले का नाम दिया है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि रहमान की गिरफ्तारी से उनके इस दावे की पुष्टि हुई है कि पाकिस्तान में सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा रही है और देश में अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को चुप कराना चाहती है.
इस्लामाबाद में रहने वाले एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और स्तंभकार अदनान रहमत कहते हैं, "स्पष्ट तौर पर रहमान की गिरफ्तारी का मकसद पाकिस्तान के सबसे बड़े मीडिया समूह को नुकसान पहुंचाना है. सरकार मीडिया को इसलिए निशाना बना रही है ताकि वह अपनी कवरेज में विपक्ष को जगह ना दे. यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी बंदिशें लगाई जा रही हैं."
अंतरराष्ट्रीय निंदा
यूरोपीय संघ में विदेश मामलों और सुरक्षा नीति की प्रवक्ता विर्जिनी बाटू हेनरिकसन ने पाकिस्तानी अधिकारियों से आग्रह किया है कि रहमान के खिलाफ मुकदमे में पूरी निष्पक्षता बरती जाए. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ पाकिस्तान में मानव अधिकारों, लोकतंत्र और अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू किए जाने के मामले में प्रगति को लेकर पूरी तरह के प्रतिबद्ध है.
न्यूयॉर्क स्थित कमेटी टू प्रोटेक्स जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) और पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने भी रहमान की गिरफ्तारी की कड़ी आलोचना की है. आरएसएफ में एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए निदेशक डेनियल बस्टार्ड ने एक बयान में कहा, "पूरी तरह से हास्यास्पद और फर्जी आधार पर रहमान की गिरफ्तारी को छह हफ्तों से भी ज्यादा समय हो गया है. आप किसे पागल बना रहे हैं. उनकी गिरफ्तारी का पूरी तरह कोई कानूनी आधार नहीं है."
आरएसएफ के हालिया प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में 180 देशों के बीच पाकिस्तान को 145वां स्थान दिया गया है. पिछले साल के मुकाबले पाकिस्तान तीन पायदान नीचे खिसका है.
विपक्षी समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि 2018 में इमरान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए स्थान सिमट रहा है. पत्रकार चीमा कहते हैं, "रहमान की गिरफ्तारी प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है और उन्हें परेशान करने के लिए एनएबी को इस्तेमाल किया जा रहा है."
दूसरी तरफ सरकार ऐसे सभी आरोपों से इनकार करती है. सूचना और प्रसारण से जुड़े मामलों पर प्रधानमंत्री इमरान खान की विशेष सहायक फिरदौस आशिक आवान कहती हैं, "वित्तीय गड़बड़ियों के लिए हुई गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ना ठीक नहीं है."
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इमरान खान को कितना जानते हैं आप?
पाकिस्तान में बदहाल अर्थव्यवस्था और कुशासन का आरोप झेल रहे प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें लगातार बढ़ रहीं हैं. क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान का अब तक का सफर बेहद दिलचस्प है, चलिए जानते हैं.
तस्वीर: Saiyna Bashir/REUTERS
पूरा नाम?
क्या आप इमरान खान का पूरा नाम जानते हैं? उनका पूरा नाम है अहमद खान नियाजी इमरान, लेकिन बतौर क्रिकेटर और राजनेता वह दुनिया के लिए हमेशा इमरान खान रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
करियर की शुरुआत
इमरान खान के क्रिकेट करियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में हुई, जब उन्होंने 1968 में लाहौर की तरफ से सरगोधा के खिलाफ पहला फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच खेला.
तस्वीर: picture-alliance/Dinodia Photo Library
पढ़ाई से पहले क्रिकेट
1970 में वह पाकिस्तान की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बन गए. यानी उनकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई थी और उनके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर का आगाज हो चुका था.
तस्वीर: Getty Images
इंग्लिश क्रिकेट में धाक
बाद में वह पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां भी उनके खेल के चर्चे होने लगे. वह 1974 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी इलेवन के कप्तान बने. उन्होंने काउंटी क्रिकेट भी खेला.
तस्वीर: picture-alliance/Dinodia Photo Library
पाकिस्तान की कप्तानी
इमरान खान 1982 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान बने. बतौर कप्तान उन्होंने 48 टेस्ट मैच खेले जिनमें से पाकिस्तान ने 14 जीते, आठ हारे और बाकी ड्रॉ रहे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Dupont
वनडे करियर
इमरान ने 139 एकदिवसीय मैचों में पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व किया. इनमें से 77 जीते, 57 हारे और एक मैच का कोई नतीजा नहीं निकला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
वर्ल्ड चैंपियन
पाकिस्तान ने अब तक सिर्फ एक बार क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता है और 1992 में यह कारनामा इमरान खान की कप्तानी में हुआ था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Holland
सबसे सफल कप्तान
इमरान पाकिस्तान के लिए सबसे सफल कप्तान साबित हुए, जिनकी तुलना अकसर भारत के पूर्व कप्तान कपिल देव से हुई है. दोनों ऑलराउंडरों के रिकॉर्ड भी प्रभावशाली रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B.K. Bangash
सियासत में कदम
इमरान खान ने 1996 में पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी बना कर सियासत में कदम रखा. 2013 के आम चुनाव में उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही और 2018 में पहले पर.
तस्वीर: Aamir QureshiAFP/Getty Images
निजी जीवन
इमरान खान अपनी निजी जिंदगी को लेकर भी सुर्खियों में रहते हैं. 65 साल की उम्र में उन्होंने तीसरी शादी की. इससे पहले सेलेब्रिटी जमैमा और टीवी एंकर रेहाम खान उनकी पत्नी रह चुकी हैं.
तस्वीर: PIT
गंभीर आरोप
रेहाम खान ने अपनी किताब में इमरान पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि किसी महिला को इमरान की पार्टी में तभी बड़ा पद मिलता है जब वह इमरान के साथ हमबिस्तर हो.
तस्वीर: Facebook/Imran Khan Official
पाकिस्तान के ट्रंप
कई लोग इमरान खान पर पॉपुलिस्ट होने का आरोप लगाते हैं. चरमपंथियों के प्रति उनकी नरम सोच पर कई लोग सवाल उठाते हैं. कई कट्टरपंथियों से उनके करीबी रिश्ते रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B.K. Bangash
अमेरिका के आलोचक
प्रधानमंत्री बनने से पहले इमरान खान आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग और उसमें पाकिस्तान की भागीदारी पर सवाल उठाते रहे हैं. वे इसे पाकिस्तान की कई मुसीबतों की जड़ मानते थे. लेकिन पीएम बनने के बाद उन्हें पता चला कि अमेरिका से रिश्ते कितने जरूरी हैं.
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भ्रष्टाचार के खिलाफ
इमरान खान हमेशा से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाते रहे थे. पूर्व पीएम नवाज शरीफ खास तौर से उनके निशाने पर रहे. लेकिन आज वो खुद बदहाल अर्थव्यवस्था और कुशासन का आरोप झेल रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Mughal
लोकप्रियता
इमरान खान युवाओं में बेहद लोकप्रिय रहे हैं. नया पाकिस्तान बनाने का उनका नारा युवाओं की जुबान पर रहा. 2012 में वह एशिया पर्सन ऑफ द ईयर चुने गए. लेकिन अब उनकी छवि बदल रही है. उन पर अपने चुनावी वादों को पूरा ना करने के आरोप लग रहे हैं.
तस्वीर: AP
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लेकिन दक्षिण एशियाई मामलों के जानकार मिषाएल कूगलमन रहमान की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित मानते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "वह उस मीडिया संस्थान की एक बड़ी हस्ती हैं जो सरकार के मुताबिक नहीं चल रहा है. तीन दशक से भी ज्यादा पुराने मामले के आधार पर उन्हें गिरफ्तार किया गया है जिसे लेकर बहुत सारे सवाल हैं. कोई फैसला सुनाए बिना, कोई अटकलबाजी लगाए बिना इतना जरूर कहा जा सकता है कि यह खेल काफी खतरनाक है."
बदले की भावना?
प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही इमरान खान के रिश्ते रहमान के मीडिया ग्रुप जंग के साथ अच्छे नहीं रहे हैं. इमरान खान और उनकी पार्टी का आरोप है कि जंग ग्रुप पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का समर्थन करता है. इमरान खुद रहमान और जंग समूह पर देश के खिलाफ काम करने के आरोप लगा चुके हैं.
पाकिस्तान की ताकतवर सेना के साथ जंग के अलावा डॉन मीडिया समूह के रिश्ते भी अच्छे नहीं रहे हैं. बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि सेना ही इमरान खान को सत्ता में लेकर आई है.
रहमत कहते हैं, "रहमान की गिरफ्तारी उन मीडिया समूहों के खिलाफ इमरान खान के सख्त रुख का हिस्सा है जो सरकार की आलोचना करने की हिम्मत दिखाते हैं या फिर विपक्ष और खासकर नवाज शरीफ की पार्टी के नेताओं को कवरेज देते हैं." हाल के सालों में रहमान के जियो टीवी का प्रसारण तक कई बार बंद कराया गया है.