चीन ने पाकिस्तान को कोरानो वैक्सीन की पांच लाख डोज मुफ्त में देने का ऐलान किया है. आर्थिक संकट से जूझ रही पाकिस्तान की सरकार यह तोहफा पाकर खुश है.
विज्ञापन
हाल के दिनों में पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण तेजी से फैला है. अब तक देश में कोरोना के मामले सवा पांच लाख के आंकड़े को पार कर गए हैं जबकि इसमें मरने वालों की तादाद 11 हजार से ज्यादा है. अधिकारी संक्रण की रफ्तार को रोकने के लिए टीके को बहुत अहम मान रहे हैं. ऐसे में, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ट्वीट कर चीन की दरियादिली का स्वागत किया है. उन्होंने लिखा, "पाकिस्तान चीन की तरफ से टीके की पांच लाख डोज तोहफे में दिए जाने को बहुत सराहता है."
चीन ने सिर्फ पाकिस्तान को नहीं, बल्कि कई और देशों को इसी तरह का तोहफा दिया है. फिलीपींस, कंबोडिया और म्यांमार जैसे कई देशों ने भी चीन से मुफ्त वैक्सीन मिलने की पुष्टि की है.
इससे पहले कुरैशी ने पत्रकारों से कहा था, "चीन ने हमें भरोसा दिया है कि पांच लाख डोज की शिपमेंट बिल्कुल मुफ्त होगी और जनवरी के आखिर तक पहुंच जाएगी." उन्होंने कहा कि चीन ने कहा कि चीन ने फरवरी के अंत तक और दस लाख डोज भेजने का वादा किया है. पाकिस्तान ने पहले ही सिनोफार्म कंपनी की बनाई वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई है.
ये भी पढ़िए: कोरोना वैक्सीन के हैं ये साइड इफेक्ट
कोरोना वैक्सीन के हैं ये साइड इफेक्ट
कोरोना की वैक्सीन जितनी जल्दबाजी में बनी हैं, उसे देखते हुए कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि इसे लेना ठीक भी रहेगा या नहीं. जानिए कौन सी कंपनी की वैक्सीन के क्या साइड इफेक्ट हैं ताकि आपके सभी शक दूर हो जाएं.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
तस्वीर: Robin Utrecht/picture alliance
बड़े साइड इफेक्ट का खतरा?
अब तक जिन जिन टीकों को अनुमति मिली है, परीक्षणों में उनमें से किसी में भी बड़े साइड इफेक्ट नहीं मिले हैं. यूरोप की यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए), अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन तीनों ने इन्हें अनुमति दी है. एक दो मामलों में लोगों को वैक्सीन से एलर्जी होने के मामले सामने आए थे लेकिन परीक्षण में हिस्सा लेने वाले बाकी लोगों में ऐसा नहीं देखा गया.
तस्वीर: Mark Lenninhan/AFP/Getty Images
बायोनटेक फाइजर
जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर जो टीका बनाया है वह बाकी टीकों से अलग है. वह एमआरएनए का इस्तेमाल करता है यानी इसमें कीटाणु नहीं बल्कि उसका सिर्फ एक जेनेटिक कोड है. यह टीका अब कई लोगों को लग चुका है. अमेरिका में एक और ब्रिटेन में दो लोगों को इससे काफी एलर्जी हुई. इसके बाद ब्रिटेन की राष्ट्रीय दवा एजेंसी एमएचआरए ने चेतावनी दी कि जिन लोगों को किसी भी टीके से जरा भी एलर्जी रही हो, वे इसे ना लगवाएं.
तस्वीर: Jacob King/REUTERS
मॉडेर्ना
अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना का टीका भी काफी हद तक फाइजर के टीके जैसा ही है. परीक्षण में हिस्सा लेने वाले करीब दस फीसदी लोगों को थकान महसूस हुई. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके चेहरे की नसें कुछ वक्त के लिए पेरैलाइज हो गई. कंपनी का कहना है कि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ऐसा टीके में मौजूद किसी तत्व के कारण हुआ या फिर इन लोगों को पहले से ऐसी कोई बीमारी थी जो टीके के कारण बिगड़ गई.
तस्वीर: Dado Ruvic/Reuters
एस्ट्रा जेनेका
ब्रिटेन और स्वीडन की कंपनी एस्ट्रा जेनेका के टीके के परीक्षण को सितंबर में तब रोकना पड़ा जब उसमें हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति ने रीढ़ की हड्डी में सूजन की बात बताई. इसकी जांच के लिए बाहरी एक्सपर्ट भी बुलाए गए जिन्होंने कहा कि वे यकीन से नहीं कह सकते कि सूजन की असली वजह वैक्सीन ही है. इसके अलावा बाकी के टीकों की तरह यहां भी ज्यादा उम्र के लोगों में बुखार, थकान जैसे लक्षण कम देखे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/J. Porzycki
स्पूतनिक वी
रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को अगस्त में ही मंजूरी दे दी गई थी. किसी भी टीके को तीन दौर के परीक्षणों के बाद ही बाजार में लाया जाता है, जबकि स्पूतनिक के मामले में दूसरे चरण के बाद ही ऐसा कर दिया गया. रूस के अलावा यह टीका भारत में भी दिया जाना है. जानकारों की शिकायत है कि इसके पूरे डाटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए साइड इफेक्ट्स के बारे में ठीक से नहीं बताया जा सकता.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी स्पूतनिक की तरह विवादों में घिरी है. सरकार ने इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अनुमति दी है लेकिन इसके भी तीसरे चरण के परीक्षणों के बारे में जानकारी नहीं है और ना ही यह बताया गया है कि यह कितनी कारगर है. भारत में महामारी पर नजर रख रही संस्था सेपी की अध्यक्ष गगनदीप कांग ने कहा है कि वे सरकार के फैसले को समझ नहीं पा रही हैं और अपने करियर में उन्होंने कभी ऐसा होते नहीं देखा.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
बच्चों के लिए टीका?
आम तौर पर पैदा होते ही बच्चों को टीके लगने शुरू हो जाते हैं लेकिन कोरोना के टीके के मामले में ऐसा नहीं होगा. इसकी दो वजह हैं: एक तो बच्चों पर इसका परीक्षण नहीं किया गया है और ना ही इसकी अनुमति है. और दूसरा यह कि महामारी की शुरुआत से बच्चों पर कोरोना का असर ना के बारबार देखा गया है. इसलिए बच्चों को यह टीका नहीं लगाया जाएगा. साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी फिलहाल यह टीका नहीं दिया जाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Pixsell/D. Stanin
सुरक्षित टीका क्या होता है?
जर्मनी में कोरोना पर नजर रखने वाले रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट की वैक्सीनेशन कमिटी के सदस्य के सदस्य क्रिस्टियान बोगडान बताते हैं कि किसी टीके से अगर एक वृद्ध व्यक्ति की उम्र 20 प्रतिशत घटती है लेकिन साथ ही अगर 50 हजार में से सिर्फ एक व्यक्ति को उससे एलर्जी होती है, तो वे ऐसे टीके को सुरक्षित मानेंगे. उनके अनुसार यूरोप में इसी पैमाने पर टीकों को अनुमति दी जा रही है.
तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance
9 तस्वीरें1 | 9
देश के कोने कोने में वैक्सीन
चीन पाकिस्तान का सबसे अहम साझेदार है. वह अरबों डॉलर की लागत से पाकिस्तान में सड़कें, बिजली संयंत्र और रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है. पिछले दिनों जब चीन ने अपने वैक्सीन के ट्रायल शुरू किए तो पाकिस्तान को भी इसमें शामिल किया. हालांकि पाकिस्तान में टीकाकरण अभियानों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. वहां पोलियो टीकाकरण में बहुत सारी बाधाएं आती रही हैं जिसकी वजह आज तक पाकिस्तान से इसे खत्म नहीं किया गया है.
इससे पहले रिपोर्टें आई थीं कि पाकिस्तान में कोरोना की चीनी वैक्सीन के ट्रायल के लिए पर्याप्त वोलंटियर नहीं मिल रहे हैं. अधिकारी कहते हैं कि कट्टरपंथी लोगों में कई गलतफहमियां फैला रहे हैं, जिससे उनका काम मुश्किल हो रहा है. इसीलिए सरकार ने टीके को लेकर जागरूकता के अभियान शुरू किए हैं.
उधर, भारत ने भी कई देशों को वैक्सीन मुफ्त में देने का ऐलान किया है. इनमें बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, सेशेल्स, मॉरिशस और मालदीव जैसे देश शामिल हैं. वहीं ब्रालीज और मोरक्को जैसे देशों को भारत में तैयार वैक्सीन की व्यावसायिक शिपमेंट हो रही है.
भारत ने भी अपने यहां दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान छेड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि एक हफ्ते के भीतर दस लाख से ज्यादा लोगों को टीका लगवाया जा चुका है. उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणी से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए देश के स्वास्थ्यकर्मियों से बात करते हुए कहा, "हमारी तैयारी इस तरह की रही है कि वैक्सीन तेजी से देश के कोने कोने में पहुंच रही है."